

जमशेदपुर : भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के वार्षिक फ्लैगशीप कार्यक्रम एमएसएमइ कांक्लेव के पहले दो संस्करण की सफलता को देखते हुए सीआईआई झारखंड ने तीसरे संस्करण का आयोजन किया. तीसरे एमएसएमई कॉन्क्लेव में एमएसएमई और एमएसएमई फाइनंस के लिए सरकारी योजनाओ, स्टार्ट-अप और इनोवेशन के अलावा महत्वपूर्ण विषयों पर विचार विर्मश किया गया. कॉन्क्लेव को संबोधित करते हुए सीआईआई झारखंड के वाइस चेयरमैन और हाइको इंजीनियरिंग प्राईवेट लिमिटेड के एमडी और सीईओ तापस साहू ने कहा कि एमएसएमई क्षेत्र में देश भर में औद्योगिक विकास फैलाने की क्षमता है और यह समावेशी विकास की प्रक्रिया में एक प्रमुख भागीदार हो सकता है. एमएसएमई को योगदान का जीडीपी में 8 प्रतिशत, 45 प्रतिशत विनिर्माण उत्पादन का 45 प्रतिशत और देश के निर्यात का 40 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान बड़े पैमाने पर व्यापार में व्यवधान आए है जिसके कारण कुछ व्यवसाय पूरी तरह से बंद हो गए हैं. इस कठिन समय में सभी सेक्टरों में एमएसएमई बुरी तरह प्रभावित हुआ है. वर्तमान आर्थिक स्थिति छोटे उद्योगों के लिए अनुकूल नहीं है क्योंकि सिस्टम में सीमित तरलता है, हालांकि सरकार ने इस क्षेत्र को जीवित रखने के लिए प्रोत्साहन दिया है. इस दौरान सीआईआई नेशनल एमएसएमई काउंसिल के सह अध्यक्ष अशोक सहगल ने कहा कि एमएसएमई भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. हालांकि, भारत के तेजी से बढ़ने के लिए हमें इन एमएसएमई को आने वाले दशक में बड़ी फर्मों में परिपक्व होने की जरूरत है. महामारी की स्थिति ने अन्य विकासशील और कम विकसित देशों में कंपनियों की पर्याप्त आवाजाही को जन्म दिया है जिससे औद्योगीकरण की एक नई लहर शुरू हो गई है. विनिर्माण केंद्र के विस्तार से न केवल उत्पादकता बढ़ेगी बल्कि बड़े पैमाने पर रोजगार भी पैदा होगा. डिजिटलीकरण के लिए, सरकार के डिजिटल इंडिया विजन के साथ तालमेल बिठाते हुए और भारत के वित्तीय सुरक्षा फ्लैगशिप कार्यक्रम के अनुरूप, सीआईआई ने मास्टरकार्ड के साथ साझेदारी में, सूक्ष्म और छोटे व्यवसायों के लिए प्रोजेक्ट डिजिटल सक्षम की अवधारणा की है ताकि उन्हें अपनी बाजार पहुंच का विस्तार करने, विविधता लाने के लिए डिजिटल अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने में मदद मिल सके.
