जमशेदपुर : एनसीएलटी कोलकाता में सदस्यों बलराज जोशी और बिदीसा बनर्जी के बेंच में जमशेदपुर के इंकैब इंडस्ट्रीज (केबुल कंपनी) मामले की सुनवाई शुरू हुई. ज्ञातव्य है कि बेंच ने वेदान्ता के रिज्योल्युशन प्लान फिर से सुनवाई शुरू की है. मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने अपनी बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बीएफआईआर ने बहुत सारी गलतियां की. उसने यह नहीं देखा कि इंकैब कंपनी का नेट वर्थ निगेटिव नहीं था. इंकैब कंपनी के पास लगभग 4000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति थी और दिल्ली उच्च न्यायालय के 06.01.2016 के आदेश के अनुसार मात्र 21.63 करोड़ की देनदारी जिसे एक झटके में इंकैब कंपनी दे सकती थी. बीएफआईआर ने यह पता नहीं किया कि रमेश धमंडी राम गोवानी और उसके तीन लोग इंकैब कंपनी में फर्जी तरीके से 22.09.2008 और 04.05.2009 को निदेशक कैसे बन गये, उसने निदेशकों को इंकैब कंपनी का बैंलेंस सीट जमा करने के लिए मजबूर नहीं किया और इंकैब कंपनी की परिसंपत्तियों का मूल्यांकन कराये बगैर टाटा स्टील को कंपनी दे दी जिसे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने भी मंजूरी दे दी, पर टाटा स्टील को कंपनी यानी जमीन, मजदूर और इसके मशीनों को नहीं लेना था, उसकी नजर सिर्फ इंकैब की जमीन पर थी. अधिवक्ता ने कहा कि टाटा स्टील को इंकैब कंपनी देना संविधान के अनुच्छेद 39 ख और ग के उल्लंघन के साथ कानूनी प्रावधानों का भी उल्लंघन था. उन्होंने आगे कहा कि टाटा स्टील को इंकैब कंपनी सौंपना व्यवहारिक रूप से भी गलत था क्योंकि टाटा स्टील के पास जमशेदपुर में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 10000 करोड़ के निवेश का प्रस्ताव था जबकि इंकैब के पुनर्उद्धार के लिए उस समय भी 100 से 200 रूपये पर्याप्त थे उन्होंने आगे कहा कि यही गलती एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी भी दुहरायी और अब भी दुहरा रही है
उन्होंने आगे कहा कि रिजोल्यूशन प्रोफेशनल, पंकज टिबरेवाल पूर्वी रिजोल्युशन प्रोफेशनल शशि अग्रवाल की तरह ही रमेश धमंडी राम गोवानी और टाटा के एजेंट के तौर पर काम कर रहा है. एनसीएलएटी ने शशि अग्रवाल को इसलिए हटाया था कि उसने देनदारियों की बगैर कोई जांच किये लेनदारों की फर्जी कमिटी बना दी थी. पंकज टिबरेवाल ने वहीं काम किया और पुरानी लेनदारों की कमिटी को ही बहाल रखा और एनसीएलएटी और उच्चतम न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना की, अतः इसे भी तुरंत हटाया जाना चाहिए. इतना ही नहीं पंकज टिबरेवाल ने इंकैब कंपनी की देनदारी को 21.63 करोड़ रुपये से और अधिक बढ़ाकर 4000 करोड़ कर दिया जो शशि अग्रवाल ने 2009 करोड़ किया था ताकि इंकैब कंपनी फिर से परिसमापन में चली जाये. इस नये रिजोल्यूशन प्रोफेशनल पंकज टिबरेवाल ने न केवल बैलेंस सीट नहीं बनाई बल्कि कंपनी की परिसंपत्तियों के मूल्यांकन के बगैर ही एक्सप्रेशन ऑफ इन्ट्रेस्ट जारी कर दिया और वेदांता जैसी जालसाज कंपनी का रिजोल्यूशन प्लान जमा कर दिया. उन्होंने बेंच को आगे बताया कि वेदांता टाटा स्टील के पक्ष में काम कर रही है जो इंकैब की 177 एकड़ जमीन हड़पना चाहती है. उन्होंने आगे बताया कि यह रिजोल्यूशन प्रोफेशनल ने न केवल कानून और एनसीएलएटी और उच्चतम न्यायालय के आदेशों का घोर उल्लंघन किया है बल्कि जालसाजी कर चार नये रिजोल्यूशन प्रोफेशनल बिना बेंच की जानकारी के बना लिये और अब तक इंकैब कंपनी के 3 करोड़ रूपये हड़प लिए हैं. उन्होंने आगे बताया की रिजोल्यूशन के खर्चे लेनदारों की कमिटी देती है पर यह सारा पैसा रिजोल्यूशन प्रोफेशनल ने कंपनी से गबन कर लिया है. उन्होंने आगे कहा कि वेदांता ने कोई रिजोल्यूशन प्लान नहीं दिया है। उसने यह नहीं बताया है कि कंपनी की डिफाल्टर कि स्थिति कैसे बनी और उसके पास कौन सा प्रोजेक्ट है जो कानूनी तौर पर व्यवहार्य और संभव है. वेदांता ने जालसाजी कर सिर्फ यह कहा है कि वह 545 करोड़ देने को तैयार है. उन्होंने आगे कहा कि वेदांता कंपनी एल्यूमीनियम माईनिंग की कंपनी है और यह इतने छोटे प्रोजेक्ट पर काम नहीं करती और अगर एडजुडिकेटिंग ऑथॉरिटी को 500 करोड़ रूपया ही चाहिये तो 500 करोड़ इंकैब कंपनी के जो रमेश घमंडाराम गोवानी ने गबन किये हैं, 50 करोड़ आरबी सिंह ने और लगभग 4-5 करोड़ शशि अग्रवाल और पंकज टिबरेवाल ने गबन किये हैं उसे माननीय बेंच वसूल कर कंपनी का पुनर्उद्धार कर सकती है. उन्होंने फिर दुहराया कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि इस कंपनी का अधिग्रहण करने की कोई जरूरत नहीं है. अधिग्रहण की जरूरत तब पड़ती है जब कंपनी के पास देनदारी ज्यादा हो और परिसंपत्तियां कम जो इस मामले में नहीं है. यह कंपनी खुद अपना उद्धार कर सकती है, हमें टाटा स्टील और वेंदांता जैसी फर्जी कंपनियां नहीं एडजुटिकेटिंग अथॉरिटी का आदेश चाहिए. इंकैब कंपनी के पास लगभग 4000 करोड़ की परिसंपत्तियां हैं और महज 21 करोड़ की लेनदारी. यह लेनदारी दिल्ली उच्च न्यायालय के 6.1.2016 के आदेश में भी लिखा हुआ है, पर एआरसी, सिटी बैंक और एक्सिस बैंक ने इंकैब की लेनदारियों को कमला मिल्स, फस्क्वा इनवेस्टमेंट, पेगासस और ट्रापिकल वेंचर जैसे प्राइवेट कंपनियों को गैरकानूनी तरीक से बेचा और रमेश घमंडीराम गोवानी जिसने 2006 में इंकैब कंपनी पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर लिया था, रिजोल्यूशन प्रोफेशनल शशि अग्रवाल के साथ मिलकर कंपनी के परिसमापन का सीओसी में रिजोल्यूशन पास करा लिया और एडजुटिकेटिंग अथॉरिटी को गुमराह कर कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित करा लिया. उन्होंने आगे बताया कि एडजुटिकेटिंग अथॉरिटी के 7.2.2020 के उक्त आदेश को एनसीएलएटी ने खारिज कर दिया और शशि अग्रवाल को फर्जीवाड़ा करने के आरोप में हटा दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने कमला मिल्स और शशि अग्रवाल की अपीलें भी खारिज कर दी. उसके बाद आईडीबीआई ने शशि अग्रवाल की रिजोल्यूशन प्रोफेशनल बनने की उसकी अर्हता को उसके द्वारा फर्जीवाड़ा करने के कारण हमेशा के लिए समाप्त कर दिया. उन्होंने आगे बताया कि नये रिजोल्यूशन प्रोफेशनल ने उसके बाद शशि अग्रवाल से भी बड़ा फ्रॉड किया है. उसने देनदारियों को सत्यापित नहीं किया, उसे एडमिट नहीं किया और नया कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स नहीं बनाया बल्कि शशि अग्रवाल ने जो फर्जीवाड़ा किया था उसी फर्जीवाड़े को रमेश घमंडी राम गोवानी और दूसरे फर्जी कंपनियों यथा पेगासस, ट्रापिकल वेंचर्स, एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और दूसरे फर्जी लोगों के साथ मिलकर वेदांता का यह फर्जी रिजोल्यूशन प्लान एडजुटिकेटिंग अथॉरिटी के समक्ष प्रस्तुत किया है. उन्होंने आगे बताया कि एडजुटिकेटिंग अथॉरिटी ने एक रिजोल्यूशन प्रोफेशनल पंकज टिबरेवाल को बनाया और पंकज टिबरेवाल ने चार और रिजोल्यूशन प्रोफेशनल बिना एडजुटिकेटिंग अथॉरिटी की जानकारी के बनाया और हर महीने कंपनी के 20 लाख रूपये का अमानत में खयानत किया है. इसके अलावे रमेश घमंडीराम गोवानी द्वारा किये गये 500 करोड़ के अमानत में खयानत की जांच नहीं की और इस प्रकार ये रूपये रमेश घमंडीराम गोवानी से वसूल नहीं किये जा सके. ज्ञातव्य है कि मजदूरों का दावा 254 करोड़ रुपये का है जिसमें आरपी ने मनमाने ढंग से 187 करोड़ रुपये स्वीकृत किया है और इस रिजोल्यूशन प्लान में मजदूरों के लिए मात्र 15 करोड़ रुपये की व्यवस्था है. भगवती सिंह ने फिर आज दुहराया कि बताया कि आईआरपी पंकज टिबरेवाल ने टाटा स्टील के साथ मिलकर फर्जीवाड़ा कर इंकैब की अपनी ही 177 एकड़ जमीन को तथाकथित लीज मानकर टाटा को एक आवेदन देकर तथाकथित लीज का नवीनीकरण करने को कहा. टाटा द्वारा तथाकथित रूप से मना करने पर पंकज टिबरेवाल ने माननीय एनसीएलटी में एक फर्जी आवेदन लगा कर प्रार्थना की कि टाटा को एनसीएलटी निर्देश दे कि वह तथाकथित लीज का नवीनीकरण करे. पंकज टिबरेवाल के इस फर्जीवाड़े के चलते टाटा को एनसीएलटी में यह दावा करने का आधार बन गया कि उसने इंकैब को 177 एकड़ जमीन लीज पर दी है. उन्होंने कहा कि रिजोल्यूशन प्लान एक फर्जीवाड़ा है जिसमें वेदांता, टाटा स्टील, रमेश घमंडीराम गोवानी और पंकज टिबरेवाल शामिल है. इंकैब के 177 एकड़ जमीन के मामले में अखिलेश श्रीवास्तव ने अपना पक्ष रखते हुए न्याय निर्णायक अधिकारी, एनसीएलटी, कोलकाता को बताया कि एनसीएलटी ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर इंकैब की जमीन को अपने 7.2.2020 के आदेश द्वारा टाटा स्टील का लीज घोषित कर दिया था. वह आदेश एनसीएलएटी ने अपने 4.6.2021 के आदेश से रद्द कर दिया जिस पर सुप्रीम कोर्ट मुहर लगा चुकी है. इस मसले पर एक रिट भी दाखिल किया गया है. भगवती सिंह ने यह आरोप लगाया कि पंकज टिबरेवाल टाटा, रमेश घमंडीराम गोवानी और वेंदांता जैसी महाभ्रष्ट और बेईमान कंपनी के साथ मिलकर फर्जीवाड़ा कर रहा है. ज्ञातव्य है कि एनसीएलएटी ने झारखंड उच्च न्यायालय में दायर वाद संख्या सीएमपी 187/2020 को ध्यान में रखकर इंकैब की जमीन के मामले में कोई व्यवस्था नहीं दी है. समयाभाव के कारण आर पी के रिजोल्यूशन प्लान वाले आवेदन पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी. कर्मचारियों की तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, मंजरी सिंहा और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया.