
जमशेदपुर : टाटा स्टील के निबंधित पुत्र-पुत्रियों ने टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष को पत्र लिखकर मांग की है कि उनकी नौकरी दिलायी जाये. इसको लेकर ट्यूब-टिस्को निबंधित पुत्र-पुत्री संघ के बैनर तले एक ज्ञापन सौंपा गया है. इसमें कहा गया है कि टाटा स्टील मैनजमेंट के कुछ अधिकारियों की लालच और टाटा वर्कस यूनियन की लचीलेपन के कारण, वर्षों से कड़ी मेहनत द्वारा अर्जित की गई टाटा स्टील की साख पर दाग लगाने की नोबत आ गई है. अगर किसी राजनैतिक दल द्वारा टाटा स्टील में आर्थिक नाकेबंदी कर दी जाती है तो यह किसी काले अध्याय से कम नही होगा क्योंकि आज़ादी के बाद शायद ही किसी 100 वर्ष पुराने कंपनी मे आर्थिक नाकेबंदी की गई हो. इन राजनीतिक दलों की अन्य मुख्य मांगों में 75% आदिवासी औऱ मूलवासी को टाटा स्टील में रोजगार देना भी है. अगर वर्ष 2019 से लंबित निट कंपनी एवं लिखित परीक्षा के माध्यम से समय पर निबंधितो का नियोजन हो जाता तो आज ये 75% आदिवासी और मूलवासी के रोजगार का मसला एक झटके में हल हो जाता क्योंकि जितने भी निबंधित पुत्र-पुत्रियां है उनमें से कुछ एससी, कुछ एसटी, कुछ ओबीसी तथा कुछ जनरल है तथा सभी के सभी मूलवासी तो झारखंड के है ही. अगर आज समय रहते निबंधितो का नियोजन टाटा स्टील में हो जाता तो स्थानीयता के नियोजन के नाम पर किसी भी राजनीतिक दल को यूं टाटा स्टील पर उंगली उठाने का मौका नही मिलता. टाटा स्टील के कुछ अधिकारियों के लालच और टाटा वर्कस यूनियन की मौन सहमति ने टाटा स्टील कंपनी की पूरी कार्यशैली को आज कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. इसका सबसे जीता जागता उदाहरण है मार्च, 2021 में निबंधितो की लिखित परीक्षा के फॉर्म भरने के 08 महीने बाद भी नियोजन का नही होना. ऐसी लचीली कार्यशैली तो केवल सरकारी संस्थानों में देखने को मिलती थी. आखिर वो कौन सा कारण है कि जो पूर्व अध्यक्ष के द्वारा वर्ष 2019 में किये गए निट कंपनी की घोषणा के बाद और फॉर्म भरने के इतने महीनों बाद भी निबंधितो का नियोजन नही हो पाया ? टाटा स्टील मैनजमेंट और टाटा वर्कस यूनियन में बैठें हरेक व्यक्ति इस बात को नहीं झुठला सकता कि मात्र निबंधितो के नियोजन से 75% आदिवासी और मूलवासी के नियोजन का मामला हल हो जाता है.