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tata-steel-vp-hrm-suresh-dutt-tripathi-टाटा स्टील के वीपी एचआरएम का अपने अधिकारियों को दो टूक-टाटा स्टील के मैनेजरों को ”कर्मचारी फ्रेंडली” होना चाहिए, वर्क फ्रॉम होम का मतलब 24 x 7 ड्यूटी नहीं, जानें क्या कहते है वीपी एचआरएम सुरेश दत्त त्रिपाठी

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टाटा स्टील के वीपी एचआरएम सुरेश दत्त त्रिपाठी.

जमशेदपुर : पूरा देश और विश्व 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य् दिवस के रुप में मना रहा है. विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष्य में, टाटा स्टील के अपने मुख्य पत्रिका ‘तालमेल’ ने टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट (वीपी) एचआरएम (ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट) सुरेश दत्त त्रिपाठी से से मुलाकात कर उनका एक विशेष साक्षात्कार लिया. इसमें उन्होंने महामारी के कारण पनपे तनाव को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के महत्व के बारे में बात की गयी है. साक्षात्कार के मुख्य अंश को साभार http://www.sharpbharat.com इसके अंश को जारी कर रहा है : (नीचे पूरा इंटरव्यू पढ़े)

सवाल : कोविड-19 महामारी कुछ कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर कैसे प्रभाव डाल सकती है?
सुरेश दत्त त्रिपाठी : यह महामारी विभिन्न लोगों को विभिन्न तरीके से प्रभावित कर रही है. यह वाक्यांश ‘सेम स्टॉर्म, डिफरेंट बोट्स’ की तरह है-महामारी के कारण हममें से प्रत्येक को अलग-अलग अनुभवों और अलग-अलग प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इस अनिश्चित और जटिल स्थिति ने हमारी दैनिक दिनचर्यो पर कई तरह से प्रभाव डाला है. इसके साथ ही, महामारी के कारण सामाजिक संपर्क में कमी ने समस्या को और बढ़ा दिया है. मुझे लगता है कि किसी को भी मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को स्वीकार करना शुरू कर देना चाहिए. इसमें हमारे लिए क्या महत्वपूर्ण है, का ध्यान रखते हुए दैनिक समय-सारिणी, कार्यों की सूची तथा व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के मुताबिक चलना चाहिए. टाटा स्टील परिवार का हिस्सा होने के नाते, मैं सभी को आश्वस्त करना चाहूंगा कि कंपनी यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठा रही है कि हम बेहतर भविष्य के लिए एक साथ मजबूती से आगे बढ़ेंगे. हम अपने सभी सहकर्मियों के कार्य, जीवन संतुलन को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. (नीचे पूरा इंटरव्यू पढ़े)

सवाल : क्या आपको लगता है कि महामारी के थमने पर कुछ कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर किसी दीर्घकालिक प्रभाव की संभावना है ?
सुरेश दत्त त्रिपाठी : इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन जब मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है, तो यह महामारी हममें से प्रत्येक पर प्रभाव डालेगी. हालांकि, सामाजिक संपर्क की कमी, उन सहकर्मियों की चिंता बढ़ा सकती है, जिन्होंने अतीत में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना किया है. ये जटिल मुद्दे हैं और हमें यह जानने की आवश्यकता है कि इन्हें संवेदनशीलता और सावधानी से संभालना है. हमारी भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सहकर्मी सहज महसूस करें और स्वयं को टीम का हिस्सा समझें. (नीचे पूरा इंटरव्यू पढ़े)

सवाल : हमारे कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए कंपनी ने क्या कदम उठाए हैं ?
सुरेश दत्त त्रिपाठी : सबसे महत्वपूर्ण इनैबलर्स में से एक साथ में इस संकट का सामना कर रहा था. हमारी टीम ने निरंतर कार्य किया और व्यवसाय की निरंतरता सुनिश्चित करने में मदद की है. हमारे सभी सहकर्मियों को अपने मैनेजर्स के साथ नियमित रूप से वार्तालाप कर आत्मविश्वास महसूस करना चाहिए और मैनेजर्स को सहानुभूतिपूर्ण एवं सहयोगी बनने की आवश्यकता है. (नीचे पूरा इंटरव्यू पढ़े)

सवाल : आपकी राय में, क्या डिजिटल प्रक्रियाओं ने कार्यबल में संपर्क बनाए रखकर, लॉकडाउन में हमारे कर्मचारियों पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने में योगदान दिया है ?
सुरेश दत्त त्रिपाठी : कुछ भी, जो सहकर्मियों को सामाजिक रूप से जुड़े रहने में मदद करता है, वह लॉकडाउन के प्रभाव और मानसिक रूप से सोशल डिस्टेंसिंग को कम करने के हमारे प्रयासों में महत्वपूर्ण है. ऐसे में कहावत ‘जहां लोग नहीं वहां कुछ नहीं सही है. सामाजिक अलगाव मानसिक स्वास्थ्य का एक कारण है. हम सामाजिक प्राणी हैं जो सामाजिक समूहों से संबंधित हैं और सार्थक परिणामों के लिए मिलकर काम करते हैं. इस कठिन परिस्थिति में डिजिटल संवाद ने हमें आपस में जुड़े रहने में मदद की है. हम मनोबल ऊंचा रखने और सहकर्मियों से जुड़े रहने के लिए रचनात्मक तरीके खोजते रहेंगे. (नीचे पूरा इंटरव्यू पढ़े)

सवाल : काम के दौरान तनाव और चिंता को कम करने के लिए आप व्यक्तिगत रूप से क्या करते हैं ? मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए आपके सुझाव क्या है ?
सुरेश दत्त त्रिपाठी : मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि एक मैनेजर के रूप में, व्यक्ति को कार्य समय का सम्मान करना चाहिए और सभी से 24 घंटे (24×7) उपलब्ध होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. घर से काम करने का मतलब हर समय काम करना नहीं है. मुझे दैनिक दिनचर्या पसंद हैं और मैं अपने काम और व्यक्तिगत जीवन को अलग रखता हूं. निर्दिष्ट कार्यक्षेत्र होने से मदद मिली है. इसके अलावा, मैंने पाक कौशल विकसित करने की कोशिश की है, ईमानदारी से कहूं, तो इसे और सुधार की आवश्यकता है. मैंने पेंटिंग को भी शौक के तौर पर अपनाया है. यह तब भी मदद करता है, यदि किसी की दैनिक दिनचर्या हो और कार्य का समय आपके व्यक्तिगत समय में न बढ़ें. सप्ताहांत को व्यक्तिगत समय मानना चाहिए. हमेशा कुछ समय के लिए स्विच ऑफ करना बेहतर होता है और अक्रियाशील होने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए. लेकिन फिर भी, इस चुनौतीपूर्ण समय में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई भी एक समाधान नहीं है. हममें से प्रत्येक को यह तय करना होगा कि हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है और सबसे पहले इसे स्वीकार करना शुरू करें. परिवार, दोस्तों या आपके मैनेजर्स के साथ छोटी-छोटी बातचीत से तनाव और चिंता को दूर करने में मदद मिलेगी.

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