सरायकेला : झारखंड राज्य का गठन हुआ राज्य के आदिवासी- मूलवासी के सपनों को साकार करने के लिए. यहां के जल, जंगल और जमीन पर उनका हक दिलाने के लिए. क्या वाकई में ऐसा हो रहा है ? झारखंड अलग राज्य बने 20 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज भी यहां के आदिवासी मूलवासी बुनियादी सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. वैसे आज भी यहां के आदिवासी जल, जंगल और जमीन पर अपना अधिकार पाने में नाकाम ही रहे हैं. इसके पीछे आखिर है कौन ? सत्ता पाने के लिए हर बार इन्हें छला ही गया है. सरकार तमाम दावे करती है, लेकिन सरकार और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से आज भी यहां के आदिवासी- मूलवासी संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. अविभाजित बिहार के समय खनिज संपदा से परिपूर्ण रत्न- गर्भा कोल्हान की धरती में उद्योग- धंधे एवं कल कारखाने स्थापित किए जाने के लिए आदित्यपुर स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी आयडा का गठन किया गया, ताकि यहां उद्योग धंधे लगाए जाने के लिए उद्यमियों को जमीन आवंटित की जा सके. इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी और अधिग्रहित जमीनों को अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर उन्हें उद्यमियों को आवंटित करना है, लेकिन आयडा का एक और चेहरा इन दिनों सामने आ रहा है. जहां आयडा बगैर अधिग्रहण और मुआवजा दिए जबरन रैयती खेती वाले जमीनों को उद्यमियों को आवंटित कर रही है. ऐसा ही एक मामला हाल के दिनों में सामने आया है. जिसमें आयडा ने आरआईटी थाना अंतर्गत फेज 1 स्थित खाता संख्या 206, खेसरा संख्या 139, 140, 141, 356, और 357 रकबा 1 एकड़ 48 डिसमिल, मूल रैयत रामेश्वर सरदार, अंचल गम्हरिया की जमीन पटेल इंजीनियरिंग वर्क्स को आबंटित कर दिया. जबकि मूल रैयत के वंशज द्वारा हर साल जमीन के एवज में लगान कटायी जाती है. इसको लेकर मूल रैयत के वंशज साधु सरदार ने जब अपनी जमीन पर दावा ठोका तो सरायकेला एसडीओ ने तत्काल प्रभाव से उक्त भूखंड पर धारा 144 लगाते हुए मामले का निपटारा होने तक उक्त भूखंड पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य होने पर रोक लगा दिया. बावजूद इसके पटेल इंजीनियरिंग वर्क्स द्वारा उक्त भूखंड पर निर्माण का कार्य जारी है. इधर पीड़ित आदिवासी परिवार अपनी जमीन के लिए कानून के शरण में जाकर दर-दर की ठोकरें खा रहा है. इन सबके बीच पिछले महीने आयडा वर्तमान में जियाडा की क्षेत्रीय उप निदेशक श्रीमती रंजना मिश्रा ने पत्रांक संख्या 655 के माध्यम से 16 जून को पटेल इंजीनियरिंग वर्क्स के विवाद के निपटारे को लेकर एक बैठक बुलायी जिसकी अध्यक्षता क्षेत्रीय डिप्टी डायरेक्टर श्रीमती रंजना मिश्रा ने की. इस दौरान अंचल निरीक्षक गम्हरिया मनोज कुमार सिंह, रा.उ. नी विनोद कुमार ओझा, अंचल अमीन, धनंजय प्रमाणिक, आयडा अमीन, मूल रैयत के वंशज साधु सरदार और मनसा सरदार मौजूद रहे. जहां क्षेत्रीय उपनिदेशक श्रीमती रंजना मिश्रा ने मूल रैयत के वंशजों से चाईबासा भू- अर्जन कार्यालय से मूल नक्शा और जमीन अधिग्रहण एवं मुआवजा सम्बंधित पत्राचार किए जाने का हवाला देते हुए 6 जून को पुनः उपस्थित होने को कहा गया.
वही मूल रैयत के वंशजों ने तब- तक विवादित जमीन पर किसी तरह के निर्माण कार्य नहीं किए जाने और अपने परिवार को मिल रहे धमकी से सुरक्षा प्रदान किए जाने की मांग की, जिस पर क्षेत्रीय उपनिदेशक ने लिखित आवेदन देने की बात कही. इधर आज जब तय समय- सीमा के तहत मूल रैयत के वंशज आयडा कार्यालय पहुंचे तो पहले तो उन्हें क्षेत्रीय उपनिदेशक से मिलने नहीं दिया गया. किसी तरह से जब वे क्षेत्रीय उपनिदेशक से मिलने पहुंचे, तो क्षेत्रीय उपनिदेशक श्रीमती रंजना मिश्रा ने जो जवाब दिया उससे ऐसा कहीं से भी नहीं प्रतीत होता है, कि सरकार या सरकारी तंत्र आदिवासियों- मूलवासियों के हितों की रक्षा के लिए बना है. उन्होंने मूल रैयतों से साफ शब्दों में कहा, वे उन्हें नहीं जानतीं हैं, जब दस्तावेज आ जायेगा तब आना. यानी कहीं ना कहीं सरकारी तंत्र आदिवासी- मूलवासी के जमीनों के घालमेल में संलिप्त है. जो निश्चित तौर पर जांच का विषय है. ऐसे में पीड़ित परिवार न्याय के लिए कहां जाए, किसके पास जाए. आखिर सरकारी तंत्र को सरकारी दस्तावेज निकलवाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है ? और जब विवादित भूखंड पर धारा 144 लागू है, तो आबंटी द्वारा विवादित भूखंड पर निर्माण कार्य कैसे कराया जा रहा है ? सबसे अहम सवाल ये, कि जिस थाना क्षेत्र का यह मामला है, क्या उस थाना की जवाबदेही नहीं बनती कि विवादित भूखंड पर निर्माण कार्य को रोक लगाते हुए पीड़ित परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई जाए ।