जमशेदपुर : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की अनदेखी के कारण महाराष्ट्र एंड पंजाब को-ऑपरेटिव बैंक डूब चुका है और करोड़ों लोगों के अरबों के रुपये डूबने की स्थिति में है. अब स्थिति यह है कि लोग परेशान है. जनता त्राहिमाम है. ऐसा ही डर झारखंड में भी है. झारखंड स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक, रांची द्वारा विगत 30 सितम्बर को रांची के एक समाचार पत्र में प्रकाशित एक संक्षिप्त बैलेंस सीट के अनुसार बैंक को वर्ष 2018-19 के एक वर्ष की कार्यवधि में तीन सौ करोड़ से अधिक का घाटा दर्शाया गया है. यह बैलेंस सीट बताता है कि बैंक की आर्थिक स्थिति काफी चिंताजनक हो गयी है और यह बैंक भी महाराष्ट्रा एवं महाराष्ट्रा पंजाब स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक तथा देश भर में डूब चुके को-ऑपरेटिव बैंकों की कतार में खड़ा हो गया है. कभी भी इस बैंक के डूबने की खबर सुर्खियों में आ सकती है. इसके बावजूद बैंक प्रबंधन तथा अधिकारी दोनों हाथों से बैंक को लूट तथा लुटवा रहे हैं. सहकारिता अध्ययन मंडल झारखंड के अध्यक्ष तथा सिंहभूम जिला को-ऑपरेटिव बैंक के तीन बार निदेशक रह चुके विजय कुमार सिंह ने उक्त तथ्यों को उजागर करते हुए झारखंड तथा बिहार के बैंकिंग लोकपाल, रिजर्व बैंक के गवर्नर, नाबार्ड तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, निबंधक सहयोग समितियां, झारखंड का ध्यान आकृष्ट करते हुए इस बैंक को बरबादी से बचाने हेतु दस बार स्मार पत्र भेजकर अनुरोध किया है, पर कहीं से कोई कार्रवाई होना तो दूर शिकायती पत्र बैंक के भ्रष्टाचारी अफसरों तथा प्रबंधन के पास ही जांच के लिए भेज दी जाती है. स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय से भी रजिस्टर्ड शिकायत संख्या PMOPG/D/2018/0423285 द्वारा संज्ञान लेकर मुख्य सचिव झारखंड सरकार को कार्रवाई हेतु लिखा गया. नतीजा कहीं से कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण बैंक में लूट और भ्रष्टाचार बढ़ता ही चला गया और बैंक 300 करोड़ से अधिक के घाटे में चला गया. लगता है कि बैंक के डूब जाने तथा जमाकर्ताओं गरीब खाताधारियों एवं कृषक सहकारी संस्थाओं का हजारों करोड़ डूब जाने के बाद ही सरकार, नाबार्ड, और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की आंखें खुलेगी. ऐसी ही अनदेखी के कारण महाराष्ट्र पंजाब को-ऑपरेटिव बैंक डूब चुका है. इस बैंक ने आज तक किसी भी शेयर होल्डर सहकारी संस्थाओं को बैलेंस सीट की एक प्रति नहीं भेजा. धोखा देने के उद्देश्य से एक अखबार के एक ऐसे कोने में एक अति संक्षिप्त अपठनीय तथाकथित बैलेंस सीट छपवाया, जहां किसी की नजर न पड़े जबकि बैंक के ऑडिटर डीएन डोकानिया एण्ड एसोसिएटस ने पूरी बैलेंस सीट विस्तार से बैंक को समर्पित किया था. इस बैलेंस सीट में दिखाये गये हर घाटे को ऑडिटर ने स्पष्ट किया है, जिसे बैंक प्रबंधन ने छिपाने का प्रयास किया है. इसमें वर्ष 2018-19 में 1,47,67,84,510-57 रुपये (लगभग 148 करोड़) का प्रत्यक्ष घाटा, कर्ज एवं सूद राशि माफी मद से 75,65,67,729.63 (लगभग 76 करोड़) के प्रोविजन से घाटा तथा 58,58,39,427.33 (लगभग 59 करोड़) प्राप्ति योग्य सूद ( जो डुब चुका है) का घाटा दिखाया गया है. फिक्स तथा अदर एसेट में भी भारी घोटाला है. कमीशनखोरी के लिए की गयी गलत इनवेस्टमेंट की राशि प्रकाशित बैलेंस सीट में दर्शायी गयी 15,41,91,61,950.01 में से काफी क्षरण हो चुका है. लोन एवं एडवांसमेंट की राशि 2,88,40,28,353.41 रुपये ( लगभग 290 करोड़) रुपये में से आधी से अधिक राशि का न तो मूल आ रहा है न सूद. यह राशि डूबत के खतरे में हैं, जिसकी रिपोर्ट निबंधक सहयोग समिति ने अपने 300 पेज के रिपोर्ट में सरकार को देते हुए सीबीआइ जांच की अनुशंसा की है. अदर एसेट में दिखायी गयी, 1,75,25,33,886.56 (लगभग 175 करोड़ रुपये) की राशि भी संदिग्धता के घेरे में है. इन घोटाले को शेयर होल्डर समितियों से छिपाने के उद्देश्य से 2018-19 में 31 मार्च से पूर्व निर्धारित आमसभा निबंधक सहयोग समिति के आदेश का बावजूद बार-बार टाली जा रही है. ऐसे में आरबीआइ समेत देश भर की एजेंसियों को इस दिशा में काम करने की जरूरत है.