शार्प भारत डेस्क : मोटापा आज विश्व के साथ-साथ भारतीयों की भी समस्या बनता जा रहा है. मोटापा एक गंभीर बीमारी है. जितना आसान वजन बढ़ाना है, वहीं वजन घटाना उतना ही मुश्किल है. स्वास्थय के दृष्टिकोण से भी मोटापा कई बीमारियों को जन्म देता है. आज हर चार में से एक व्यक्ति मोटापा से ग्रसित है. खराब खानपान और आराम पसंद जीवनशैली के कारण ही मोटापा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है. हर गली मोहल्लों में आज जिम खुल रहे है, जिनमें सबसे ज्यादा लोग पतले होने की कामना लेकर पहुंचते है. कई बार सभी उपाय आजमाने के बाद भी परिणाम नहीं मिलते. इतिहास में दर्ज एक किस्से से हमें एक उपाय मिल सकता है, तो जानिए ऐसी ही एक कहानी को जो तमिलनाडु का है. जो आज भारत के दक्षिणी हिस्से का एक राज्य है, मध्य युगीन भारत में तंजौर के नाम से जाना जाता था. (नीचे भी पढ़ें)
सन 1677 में ईकोजी जो शिवाजी के सौतेले भाई थे, उन्होंने तंजौर को जीतकर मराठा साम्राज्य की स्थापना की. पूरे साम्राज्य का कामकाज बहुत अच्छे से होने लगा, पर मोटापे की समस्या ने महाराज ईकोजी को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया. महाराज की तीन-तीन पत्नियां थी. महारानी दीपाबाई, ऋसईबाई और अनुबाई उनकी तीनों पत्नियों के नाम थे. महारानी दीपाबाई से ईकोजी महाराज सबसे ज्यादा स्नेह किया करते थे. जिसका कारण यह था कि उनके कुलदेवी ने उन्हे सपने में आकर कहा था कि अगला ईकोजी दीपाबाई के गर्भ से ही पैदा होगा और साम्राज्य को आगे लेकर जाएंगा. महाराज के दरबार में समर्थ गुरू रामदास के मित्र रघुनाथ सूरि भी रहते थे. रघुनाथ सूरि भोजन और उसके इंसानों पर प्रभाव पर शोध कर रहे थे. चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, धनवंतरि निघंटु, राजनिघंटु, अष्टांगसंग्रह से लेकर अष्टांगहृदय तक उनको कंठस्थ थे. (नीचे भी पढ़ें)
दीपाबाई महाराज के मोटापा से होने वाली परेशानियों को भांप गई थी. उन्होंने रघुनाथ सूरि से मदद मांगी. रघुनाथ ने अपनी जांच पूरी की और बताया कि महाराज के खाने पीने में कोई परेशानी नहीं है. बस एक चीज की कमी है वो है पान. पान के पत्तों का सेवन और उसके लाभ के बारे में रघुनाथ सूरि ने महाराज और सभी को विस्तार पूर्वक बताया. अपने चार पांच महीने के शोध के आधार पर रघुनाथ सूरि ने बताया कि पान के पत्तों में तेरह-तरह के गुण होते है. इसके पत्तों में कड़वा, तीखा, उष्ण, मधुर, क्षार और कसैला रस होता है. वात, कृमि और कफ के नाश के साथ-साथ यह जठराग्नि को भी आराम पहुंचाने का काम करता है. पान के पत्ते पर बुझे हुए चूने, कत्थे, कस्तूरी और चंदन का घोल लगाकर पत्तों में कर्पूर, कंकोल यानी शीतल चीनी, लौंग, सुपारी, जायफल के साथ-साथ नागरखंड यानी मुस्ता या मोथा के टुकड़े डालकर खाना चाहिए. (नीचे भी पढ़ें)
पान के पत्ते त्रिदोशों में वात का नाश करता हैं और सुपारी कफ का. मोटापा का मुख्य कारण कफ का शरीर में बढ़ोतरी ही है. चूना भी कफ और वात खत्म में कारगर है, वहीं कत्था पित्त नाशक है. कंकोल यानी शीतल चीनी वात-कफ में राहत प्रदान करता है. जायफल हाजमा बढ़ाने का काम करता है, कफ दूर करके गले की बीमारियों का नाश करता है. जायफल के साथ अगर लौंग लेते हैं तो पुरानी बदहजमी ठीक होती है और देह में जितने भी तरह के जहर बनते है, उनका भी खात्मा हो जाता है. मुंह में छालो के लिए लौंग जायफल वाला पान बहुत अच्छा होता है. पान के पत्तों का कैसे इस्तेमाल किया जाए इसपर रघुनाथ सूरि कहते है कि पान के पत्तों का ऐसे ही तुरंत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. (नीचे भी पढ़ें)
ऐसा माना जाता है कि पान के पत्ते के अगले हिस्से में आयु, मूल में यश और बीच में लक्ष्मी होती है. इसलिए पान का पत्तों का इस्तेमाल करने से पहले इन तीनों को हटा देना चाहिए. वैसे आज भी पान लगाने वाले पत्ते में से इन तीन चीजों को हटा देते हैं. रघुनाथ सूरि आगे बताते है कि खाना या पानी के लगभग 24 मिनट के बाद ही पान खाना चाहिए. महाराज ने रघुनाथ से पूछा कि मेरा मोटापा कब तक कम होगा. इसपर रघुनाथ सूरि बोले महाराज इसके उपयोग से साल भर में आप एकदम हिष्ट पुष्ट हो जाएंगे. आधुनिक रिसर्च में भी पान के पत्तो के औषधीय गुण का पता चला है. पान के पत्ते शरीर में ऑक्सीडेशन प्रक्रिया को बढ़ा देती है, जिससे वजन को कंट्रोल करने में सहायक है. यह भूख को प्रभावित किए बिना वजन को संतुलित रखता है. इसके अलावा पान के पत्तों के सेवन से डायबिटीज की बीमारी में फायदा होता है. ओरल हेल्थ, बेहतर पाचन, गैस की समस्या, तेज सिरदर्द और यहां तक कि कैंसर जैसे गंभीर बीमारी से लड़ने में भी पान के पत्तों से मदद मिलती है.