जमशेदपुर : पाक अधिकृत कश्मीर के अलावा 64 हजार 817 वर्ग किलोमीटर में फैला गिलगिट-बाल्टिस्तान भी भारत का ही अंग है, जहां की जनसंख्या वर्ष 2017 में करीब 19 लाख थी. यह पाकिस्तान व चीन के कब्जे में है. वहां की अधिकतर जनता ब्रूशस्की, शीना, बाल्टी व उर्दू भाषाएं बोलती है. हिमालय जो उत्तर में हमारे प्रहरी के रूप में खड़ा है, उसकी कंचनजंघा व एवरेस्ट को छोड़ कर अन्य आठ बड़ी चोटियां गिलगिट-बाल्टिस्तान में ही स्थित हैं. यहां सात हजार मीटर से ऊंची 50 चोटियां हैं. भारत का सिल्क रूट यहीं से जाता था. यहां खनिज का पर्याप्त भंडार है. यहां का जल भंडार पूरे पाकिस्तान में सिंचाई व पेजयजल की आवश्यकता को पूरी करता है. चीन द्वारा हाइड्रो पॉवर प्लांट नहीं बनाये जा रहे हैं. चीन की पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) की बड़ी संख्या यहां रहती है. गौरतलब है कि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार गिलगिट-बाल्टिस्तान उसका भाग नहीं है. इस कारण वहां की जनता को पाकिस्तान की ओर से किसी तरह की सुविधा नहीं मिलती है. कमोबेश यही स्थित चीन के साथ भी है.
ऐसे में गिलगिट-बाल्टिस्तान यूनाइटेड मूवमेंट द्वारा भारत के शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग की जाती रही है. साथ ही आरोप लगाया जाता रहा है कि भारत उन्हें भूल चुका है. इन सबके मद्देनजर देश में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र ने देशवासियों के बीच जागरूकता फैलाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिया है, ताकि लोगों में इसके प्रति जागरूकता आये और किसी प्रकार केंद्र सरकार इस मसले पर विचार कर उचित कदम उठाये. इसी कड़ी को बढ़ाते हुए केंद्र की ओर से आगामी 7 फरवरी को नार्दर्न टाउन स्थित मोती लाल नेहरू स्कूल के प्रेक्षागृह में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया है, जिसमें कैप्टन आलोक बंसल मुख्य वक्ता होंगे. यह जानकारी केंद्र के क्षेत्रीय संयोजक डॉ बिरेंद्र सिंह ने बिष्टुपुर स्थित श्रीकृष्ण सिन्हा संस्थान में एक संवाददाता सम्मेलन में दी. संवाददाता सम्मेलन में केंद्र के अध्यक्ष अवधेश पाठक, सचिव जयप्रकाश ओझा, अधिवक्ता सीबी ओझा, कन्हैया लाल अग्रवाल, प्रांत सह संयोजक (विधि विभाग) प्रभात शंकर तिवारी व अन्य सदस्य उपस्थित थे.