Adityapur : झारखंड में पिछली सरकार (Previous government) की गलतियों का खामियाजा सरायकेला-खरसावां जिले के आदित्यपुर नगर निगम की जनता को भुगतना पड़ रहा है. भले ही पिछली रघुवर सरकार ने आदित्यपुर नगर निगम को करोड़ों की योजनाओं की सौगात देने का ऐलान किया था. पूरे तामझाम से योजनाओं पर काम भी शुरू हो गया, लेकिन योजना धरातल पर उतरने से पहले ही विवादों में घिरती जा रही है. इन तस्वीरों में आप साफ देख सकते हैं, किस कदर लोगों में सरकारी योजना (Government scheme) को लेकर आक्रोश (Anger) है. इतना ही नहीं आपस में ही लोग एक-दूसरे के साथ मरने- मारने पर तुले नजर आ रहे है. ये नजारा आदित्यपुर नगर निगम के वार्ड 3 के सतबोहनी का है. जहां जलापूर्ति योजना के लिए जलमीनार (Water tower) बनना है. वैसे ये योजना तो जनता की है, तो फिर जनता आक्रोशित क्यों है. वो इसलिए आक्रोशित है, क्योंकि जहां जलमीनार बनना है, वहां एक मंदिर (Temple) है और जलमीनार बनानेवाली एजेंसी मंदिर को तोड़कर वहां जलमीनार बनाना चाहती है.
आखिर योजना धरातल पर लाने वाले पार्षद और निगम के मेयर, डिप्टी मेयर और नगर आयुक्त के साथ जिले के डीसी को क्या यह मामला विवादित नहीं लगा था, जो योजना को मंजूरी दे दी. पिछले उपायुक्त ने यहां विवाद को देखते हुए काम स्थगित करवा दिया था, लेकिन उनके जाते ही संवेदक फिर से काम करने पहुंच गए, नतीजतन नगर निगम के अधिकारियों और दंडाधिकारी को स्थानीय लोगों का कोपभाजन बनना पड़ा. अंत में निगम को बैकफुट पर लौटना पड़ा और दूसरे जगह की मापी करायी गयी. हालांकि अभी वहां वन विभाग से एनओसी मिलने के बाद ही काम आगे बढ़ेगा. यानी योजना 2021 तक पूरा हो सकेगा ये संभव नजर नहीं आ रहा. वैसे ऐसा ही विवाद लगभग सभी वार्डों में देखा जा रहा है. अब इसके लिए जिम्मेवार कौन है, ये तो हम नहीं बता सकते, क्योंकि योजना भले पिछली सरकार ने दी थी, लेकिन योजना के लिए स्थानीय पार्षद, नगर निगम के मेयर, डिप्टी मेयर और जिला प्रशासन ने ही एनओसी दी थी. लेकिन जब विरोध शुरू हुआ तो पार्षद से लेकर मेयर और डिप्टी मेयर नदारत नजर आ रहे हैं.
प्रशासन भले सख्ती बरतने का प्रयास करती है, लेकिन लोगों के आक्रोश को देखते हुए वह भी बीच का रास्ता निकालकर अपना पल्ला झाड़ निकल जाते हैं. चलिए अब आपको हम बता देते हैं कि आखिर ये माजरा क्या है. दरअसल आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में पानी और सिवरेज- ड्रेनेज सिस्टम को दुरूस्त किए जाने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से छः सौ करोंड़ की योजना स्वीकृत की गयी है, जिसे 20121 तक पूरा करना है. लेकिन सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम का हाल बेहाल है, संवेदक काम छोड़कर भाग रहे हैं. इधर पेयजल के लिए चिन्हित स्थलों पर जलमीनारों के लिए जैसे ही संवेदक पहुंच रहे हैं, उन्हें भारी विरोध के कारण अपना बोरिया बिस्तर समेटकर या तो भागना पड़ रहा है, या स्थल परिवर्तित कर नए सिरे से कागजी प्रक्रिया शुरू करनी पड़ रही है. ऐसे में पूरी योजना ही विवादों में घिरती जा रही है. अब तय समय पर काम पूरा हो इसपर संशय बरकरार है, जबकि महज डेढ़ साल ही बच गए हैं, नगर निगम के चुनाव की डुगडुगी बजने में.