पटना : बिहार की राजनीति में अंदरखाने चल रही गतिविधियों और उनसे उभरते संकेतों के मद्देनजर अब चर्चा होने लगी है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार क्या उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की सीएम बनने की हसरत फिर पूरी नहीं होने देंगे? दर असल सीएम नीतीश कुमार की हाल की कुछ गतिविधियां ऐसी रहीं जिनसे इन चर्चाओं को और हवा मिली है. बल्कि राजनीतिक विश्लेषक तो यह कह रहे हैं कि अगर सब कुछ उनके मन मुताबिक नहीं हुआ तो नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदल सकते हैं. जी20 समिट के दौरान राष्ट्रपति की ओर से आयोजित डिनर में नीतीश कुमार की सक्रिय भागीदारी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिलवाने की घटना तो है ही, अभी कल लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर नीतीश कुमार द्वारा बिना शर्त सरकार का समर्थन किया जाना भी इन चर्चाओं को और हवा दे गया है. यही नहीं बिहार में समय पूर्व चुनाव कराने की बात कहे जाने को भी नीतीश कुमार के किसी बड़े खेल का संकेत बताया जा रहा है. लोग चकित हैं कि जिस मध्यावधि चुनाव की बात नीतीश कुमार ने तीन माह पूर्व कही थी, वही बात अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी कह रहे हैं. इससे कयास लगाये जा रहे हैं कि बिहार की राजनीति में लोकसभा चुनाव से पूर्व कोई गेम हो सकता है.
नीतीश ने ‘इंडिया’ छोड़ा तो क्या होगा
लेकनि सवाल यह उठता है कि अगर नीतीश कुमार ने एक बार फिर एनडीए का दामन थामने का फैसला किया तो इससे बिहार की सियासत किस रूप में प्रभावित होगी? राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इससे सबसे अधिक प्रभावित डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का राजनीतिक करियर प्रभावित होगा, जो बिहार का सीएम बनने का सपना पाले बैठे हैं. लेकिन नीतीश कुमार के पाला बदलने से दो स्थितियां पैदा हो सकती हैं. एक यह कि नीतीश कुमार सरकार के मुखिया बने रहें. लेकिन तब तेजस्वी यादव बेरोजगार हो जायेंगे और इसके साथ ही उनके सीएम बनने के सपने पर भी तत्काल ब्रेक लग जायेगी. हालांकि नीतीश कुमार शायद ही यह विकल्प चुनेंगे या चुनेंगे भी तो तभी जब महागठबंधन में उन्हें सम्मानजनक स्थान नहीं मिल पाना पक्का हो जाए. एक स्थिति यह भी बन सकती है कि नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव की घोषणा से पूर्व ही राज्य विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर दें. ऐसा होने पर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव भी कराने का रास्ता साफ हो जायेगा. और इसी की संभावना ज्यादा दिख रही है, क्योंकि वे पहले ही मध्यावधि चुनाव की चर्चा कर चुके हैं और अब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी यही सुर अलाप रहे हैं.
नीतीश को जन समर्थन मिलने का भरोसा
सूत्रों की मानें तो सीएम नीतीश कुमार को भरोसा है कि राज्य में किये गये कार्यों के बल पर विधानसभा चुनाव में उन्हें जनता का समर्थन मिलेगा. यही कारण है कि संसदीय चुनाव की बात हो या विधानसभा चुनावों की, नीतीश कुमार राज्य में किये अपने कार्यों की चर्चा करना नहीं भूलते. राज्य के अधिकारियों को भी वे सरकारी योजनाओं को जल्द से जल्द पूरा कराने के निर्देश देते रहते हैं. महिला आरक्षण विधेयक पर भी खुशी जताते हुए उन्होंने अपनी सरकार की ओर से महिलाओं के लिए किए जा रहे कार्यों की फेहरिस्त गिना दी. उन्होंने आधी आबादी पर पकड़ बनाये रखने के लिए पंचायत और निकाय चुनावों में उनके लिए 50 फीसदी आरक्षण का कानून बनाया और सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं के लिए 35 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया. राज्य में शिक्षक नियुक्ति की जारी प्रक्रिया में भी महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है.
नीतीश ने की थी तेजस्वी के नेतृत्व में 2025 का चुनाव लड़ने की बात
याद रहे कि महागठबंधन का दामन थामने के बाद यही चर्चाएं चलती आ रही हैं कि तेजस्वी यादव बिहार की सत्ता संभालेंगे और नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति करेंगे और उन्हें विपक्ष की ओर से पीएम पद का प्रत्याशी बनाया जायेगा. इसका सबसे पहले संकेत भी नीतीश कुमार ने ही दिया था जब उन्होंने घोषणा की थी कि वर्ष 2025 में विधानसभा का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जायेगा. हालांकि अब वे कह रहे हैं कि वे पीएम पद के प्रत्याशी नहीं हैं, लेकिन इसी उद्देश्य से उन्होंने विपक्षी एकता का प्रयास शुरू किया था, जिसमें शुरू में उन्हें सफलता भी मिली, किन्तु अब उस मुहिम की कमान कांग्रेस ने थाम ली है और नीतीश कुमार किनारे हो गये हैं. शायद इसीलिए उनके विपक्षी महागठबंधन से नाराज चलने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं.
नीतीश की पुनर्वापसी से कुछ नेताओं को हो सकती है परेशानी
दूसरी तरफ नीतीश कुमार की पुनर्वापसी की अटकलों को लेकर एनडीए के कई घटक दलों में भी बेचैनी महसूस की जा रही है, क्योंकि ऐसा होने पर उनके लिए असहज स्थितियां उत्पन्न होंगी. ध्यान रहे कि नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ जाने एवं तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा से जदयू के वरीय नेता उपेंद्र कुशवाहा ने बगावत करते हुए अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल बना ली और अब वे एनडीए के साथ हैं. ऐसे ही नीतीश के साथ रहे पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी उनका साथ छोड़ने के बाद अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) बना ली और वर्तमान में एनडीए के साथ आ गये हैं. रामविलास पासवान की पार्टी (एलजेपी-आर) के नेता चिराग पासवान की नीतीश कुमार से राजनीतिक अदावत जगजाहिर है ही. नीतीश स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि 2020 के चुनाव में जदयू को चिराग पासवान के कारण कम से कम तीन दर्जन सीटें गंवानी पड़ीं. ऐसे में नीतीश की एनडीए वापसी पर इन्हें परेशानी हो सकती है.
नीतीश की पुनर्वापसी में भाजपा को परेशानी नहीं
नीतीश के एनडीए छोड़ने के बाद भाजपा नेता हालांकि अक्सर कहते रहे हैं कि एनडीए में अब उनके लिए कोई जगह नहीं, उनके लिए राजग के जरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं, लेकिन यह भी सभी जानते हैं कि राजनीति में ऐसा मिलना-बिछड़ना होता रहता है. भाजपा ने सीटों के बंटवारे के लिए जो फार्मूला तैयार किया है, उसमें 30 सीटें अपने लिए रखी हैं. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने बराबर (17-17) सीटों पर चुनाव लड़ा था. जेडीयू ने इनमें 16 सीटें जीतीं तो भाजपा ने सभी सीटें जीती थीं. माना जा रहा है कि अगर नीतीश की एनडीए में पुनर्वापसी होती है तो भाजपा अपने कोटे की सीटों में उन्हें बराबर का हिस्सा दे सकती है.