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cait-भारत में व्यापार नियंत्रण पर 1536 कानून,  26134 धाराओं में कारावास का प्रावधान, फिर भी बुरी तरह चरमरा रहा व्यापार : सोंथालिया

राशिफल

जमशेदपुर : देश के व्यापारिक ढांचे को बेहद जटिल एवं अन्यायपूर्ण बताते हुए कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने मंगलवार को रिसर्च संगठन ओबजरवर रिसर्च फ़ाउंडेशन की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए देश के व्यापारिक ढांचे पर बड़ा सवाल खड़ा करते हुए कहा कि रिपोर्ट साफ़ तौर पर यह बताती है कि आजादी के 75वें वर्षों में देशभर में केंद्र एवं राज्य सरकारों के 1536 क़ानूनों के मकड़ जाल में व्यापारियों को न केवल प्रताड़ित किया गया बल्कि क़ानून एवं नियमों के तहत इतनी सारी पाबंदियां लगाई गयी जिसके कारण देश का व्यापारिक ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है. ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस विजन के ज़रिए देश में व्यापार एवं उद्योग की कायाकल्प करने का अभियान छेड़ा हुआ है तथा अब तक देश में हज़ारों निरर्थक क़ानूनों को समाप्त भी किया है. इस दृष्टि से अब देश के व्यापार का सरलीकरण भी किया जाना चाहिए लेकिन यह जिम्मेदारी देश के सभी राज्य सरकारों की भी है क्योंकि अधिकांश क़ानून राज्य सरकारों के हैं. कैट इस गंभीर मुद्दे पर ओआरएफ से बातचीत कर पूरे देश में इस पर तार्किक हल के लिए एक राष्ट्रीय बहस भी शुरू करेगा. (नीचे भी पढ़ें)  

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल और राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोन्थालिया ने  “आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन” जेल्ड फॉर बिज़नेस ” के टाइटल से जारी की गयी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि भारत में व्यापार करने को नियंत्रित करने वाले 1,536 कानून हैं, जिनमें से 678 को केंद्र स्तर पर लागू किया गया है जबकि 858 क़ानून राज्यों के क़ानून है. इन कानूनों के अंतर्गत 69,233 तरीके के पालना के प्रावधान हैं जिनमें से 25,537 केंद्र स्तर पर हैं तथा जबकि 43496 प्रावधान राज्यों के स्तर के हैं. बेहद अचंभित बात है कि इन सभी व्यापार कानूनों में 26,134 प्रावधान में कारावास का प्रावधान है. (नीचे भी पढ़ें)  

खंडेलवाल एवं सोंथालिया ने यह भी बताया कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विभिन्न कानूनों में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं जिनके चलते व्यापारियों पर क़ानून पालना के अतिरिक्त बोझ में वृद्धि होती है तथा देश का व्यापारिक ढांचा भी बेहद अनिश्चित रहता है. उन्होंने बताया कि रिपोर्ट के अनुसार 31 दिसंबर 2021 तक 12 महीनों में, 3,577 रेगुलेटरी परिवर्तन हुए हैं; 1 जनवरी 2019 से 31 दिसंबर 2021 तक के केवल तीन वर्षों में ही क़ानूनी पालना में 11,043 परिवर्तन हुए जिसका अर्थ यह हुआ कि  हर दिन औसतन 10 नियामक परिवर्तन हुए. क्या देश का व्यापारिक ढांचा या व्यापारी इतने सक्षम हैं कि रोज होने वाले इन परिवर्तन के बारे में जान भी लें और क़ानून का पालन भी कर लें ? यह नितांत असंभव है तो फिर ऐसे परिवर्तनों का क्या औचित्य है. उन्होंने कहा कि व्यापारियों को तो छोड़े, खुद अधिकारी भी इतनी जल्दी क़ानूनी परिवर्तनों को नहीं समझ पाते. (नीचे भी पढ़ें)

भारत में व्यापार करने पर 1,536 कानूनों में से आधे से अधिक में कारावास की धाराएं हैं. देश भर के व्यवसायों को जिन 69,233 प्रावधानों का पालन करना होता है, उनमें से 37.8 प्रतिशत (या हर पांच में से लगभग दो) में कारावास की धाराएं होती हैं. कारावास की आवश्यकता वाले आधे से अधिक नियमों में कम से कम एक वर्ष की सजा होती है. केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा बनाये गए कानूनों के जटिल जाल की वजह से देश में व्यापार अपनी क्षमता के मुताबिक बढ़ नहीं पाता है जिसकी वजह से देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने, व्यापार को सुगमता से चलाने तथा ज्यादा रोजगार देने में अनेक प्रकार की बाधाएं आती हैं जिसका सीधा विपरीत प्रभाव देश की जीडीपी पर पड़ता है. सुरेश सोंथालिया ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि देश के पांच राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक के व्यापारिक कानूनों में एक हजार से ज्यादा कारावास के प्रावधान है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक एमएसएमई जो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम करता है और जिसके पास लगभग 150 कर्मचारी हैं उसको 500 से 900 तरह की कानूनी पालनायें एक वर्ष में करनी पड़ती है जिसके कारण उस पर 12 से 18 लाख रुपये का अतिरिक्त भार पड़ता है. इस तरह का अतिरिक्त भार व्यापार की क्षमता को घटाता है और व्यापारियों को हतोत्साहित करना है. कानूनों की पालना में व्यापारियों को बड़ी मात्रा में अतिरिक्त धन का बोझ उठाना पड़ता है जिसकी भरपाई कहीं से नहीं होती. (नीचे भी पढ़ें)  

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि व्यापार पर लगे कानूनों में अपराधीकरण की धाराएं भारतीय व्यापार परंपराओं का उल्लंघन करता है. महाभारत से लेकर अर्थशास्त्र तक प्राचीन भारत में व्यवसायों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई कभी भी दंडात्मक कार्रवाई का हिस्सा नहीं थी -केवल वित्तीय दंड थे जिससे लोगों में क़ानून का भय रहता था लेकिन उसके बाद कानूनों में कारावास के प्रावधान हो गए जिसका सहारा लेकर अधिकारी व्यापारियों का उत्पीड़न करते हैं. सोंथालिया ने ओआरएफ का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आजादी के बाद पहली बार इस मुद्दे पर किसी संगठन ने रिसर्च की है. उन्होंने कहा कि कैट जल्द ही इस विषय पर ओआरएफ के साथ मिलकर देश में एक राष्ट्रीय बहस चलाएगा और केंद्र एवं राज्य सरकारों से मांग करेगा की जो क़ानून वर्तमान में अप्रासंगिक हो गए हैं, उनको समाप्त किया जाए और सभी कानूनों की समीक्षा की जाए. केवल ऐसे क़ानून जिनके उल्लंघन से किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य की हानि होती है या देश की सम्प्रभुता को चोट पहुंचती है, केवल उन्ही में कारवास के प्रावधान रखे जाएं और शेष सभी कानूनों में गलतगी पर आर्थिक दंड लगाया जाए. 

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