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cait-कैट का प्रयास रंग लाया, फुटवियर पर बीआईएस मानकों की बाध्यता को केंद्र सरकार ने एक वर्ष तक के लिए किया स्थगित, एक जुलाई 2023 के बाद होगा विचार

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जमशेदपुर : कन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज़ (कैट) की पहल तथा देश के फुटवियर व्यापार के बड़े संगठन इंडीयन फ़ुटवियर एसोसिएशन के सतत प्रयासों से दिल्ली सहित देश भर के फुटवियर व्यापारियों की केंद्र सरकार ने एक बड़ा लाभ दिया है. केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के ज़रिए फ़ुटवियर व्यापारियों एवं निर्माताओं पर बीआईएस मानकों की बाध्यता के आदेश को 1 वर्ष के लिए स्थगित किया है. अधिसूचना के मुताबिक अब यह आदेश देश में 1 जुलाई से लागू होगा. इसी क्रम में शुक्रवार को कैट के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष विवेक जौहरी से भी मुलाकात कर फुटवियर पर 5 फीसदी जीएसटी कर लगाने की जोरदार वकालत की है. (नीचे भी पढ़ें)

ज्ञातव्य है की कैट ने इस मुद्दे को बड़े प्रमुख रूप से केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ पिछले दिनों उठाया था और दलील दी थी की देश भर में बड़ी संख्या में फुटवियर बनाने वाले छोटे निर्माता और व्यापारी जो सस्ते जूते एवं चप्पल बनाते और बेचते हैं और उन्हें देश के 85 फीसदी से अधिक लोग पहनते हैं, के लिए बीआईएस के मानकों का पालन करना असम्भव है और यदि इस बाध्यता को समाप्त नहीं किया गया तो बड़ी मात्रा में फुटवियर का व्यापार हमारे छोटे व्यापारियों के हाथ से निकल जाएगा और जिसके स्थान पर विदेशी जूते चप्पल बिकेंगे तथा इसी क्रम में चीनी सामान भी बड़ी मात्रा में बिकेगा. कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल और राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोन्थालिया ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गोयल ने फुटवियर पर कैट द्वारा उठाए गए मुद्दों को समझा और देश के व्यापार के जमीनी हकीकत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत देश के फ़ुटवियर निर्माताओं और व्यापारियों को बीआईएस की बाध्यता से फ़िलहाल एक वर्ष के लिए मुक्ति दी है. कैट ने बताया की फ़ुटवियर व्यापार के सबसे बड़े संगठन अखिल भारतीय संगठन इंडीयन फ़ुटवियर एसोसिएशन ने गोयल को विश्वास दिया है कि बेशक बीआईएस की बाध्यता न हो किंतु फिर भी देशभर में फ़ुटवियर निर्माता अच्छी गुणवत्ता का सामान बनाएंगे जिससे भारत के फुटवियर उत्पादों का दुनिया भर में बड़ी मात्रा में निर्यात हो सके. (नीचे भी पढ़ें)

सोन्थालिया ने बताया की भारत में 85 फीसदी फुटवियर का उत्पादन बड़े पैमाने पर छोटे और गरीब लोगों द्वारा किया जाता है या घर में चल रहे उद्योग एवं कुटीर उद्योग में किया जाता है. इस वजह से भारत में फुटवियर निर्माण के बड़े हिस्से पर बीआईएस मानकों का पालन करना बेहद मुश्किल काम है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फुटवियर निर्माता है. पूरे भारत में फैली दस हजार से अधिक निर्माण इकाइयां और लगभग 1.5 लाख फुटवियर व्यापारी 30 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं जिनमें ज्यादातर फुटवियर बेहद सस्ते और पैरों की केवल सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं. मकान और कपड़े की तरह फुटवियर भी एक आवश्यक वस्तु है जिसके बिना कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता है. इसमें बड़ी आबादी घर में काम करने वाली महिलाएं, मजदूर, छात्र एवं आर्थिक रूप से कमजोर और निम्न वर्ग के लोग हैं. देश की 60 फीसदी आबादी 30 रुपये से 250 रुपये की कीमत के फुटवियर पहनती है. वहीं लगभग 15 फीसदी आबादी रुपये 250 से रुपये 500 की कीमत के फुटवियर का इस्तेमाल करती और 10 फीसदी लोग 500 रुपये से 1000 रुपये तक के जूते का उपयोग करते हैं. शेष 15 फीसदी लोग बड़ी फुटवियर कंपनियों अथवा आयातित ब्रांडों द्वारा निर्मित चप्पल, सैंडल या जूते खरीदते हैं. (नीचे भी पढ़ें)

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बृजमोहन अग्रवाल ने कहा की भारत में फुटवियर के निर्माण में क्योंकि 85 फीसदी निर्माता बहुत छोटे पैमाने पर निर्माण करते हैं एवं निर्माण की बुनियादी जरूरतों से भी महरूम हैं इसलिए उनके लिए सरकार द्वारा फुटवियर के लिए निर्धारित बीआईएस मानकों का पालन करना असंभव होगा. साधू संतों की खड़ाऊं, पंडितों द्वारा उपयोग की जाने वाली चप्पल, मजदूरों द्वारा पहने जाने वाले रबड़ और प्लास्टिक के फुटवियर पर क्या बीआईएस मानकों का पालन संभव है. इस पर विचार करना बहुत जरूरी है. इन मानकों का पालन केवल बड़े स्थापित निर्माताओं या आयातित ब्रांडों द्वारा ही किया जा सकता है. भारत विविधताओं का देश है जहां गरीब तबके, निम्न या मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के लोगों के विभिन्न वर्ग अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार विभिन्न प्रकार के फुटवियर पहनते हैं, ऐसी परिस्थितियों में केवल एक लाठी से सबको हांकना फुटवियर उद्योग के साथ बड़ा अन्याय होगा.

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