रामगोपाल जेना / चक्रधरपुर : टीएमसी नेता सन्नी सिंकू ने स्वर्गीय बागुन सुंब्रई की चौथी पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि वे झारखंड के गांधी थे. जिस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी ने कोर्ट उतारकर धोती पहन देश की आजादी की लड़ाई लड़ी. उसी प्रकार गांधी को आदर्श मानकर स्वर्गीय सुंब्रई कुर्ता पायजामा त्यागकर धोती पहन झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी थी. जिनका बुधवार को चौथा पुण्यतिथि है और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते है. इस अवसर पर स्व: सुंब्रई की कृत्य पर संक्षेप में विवरण प्रस्तुत करना चाहेंगे. जिनके जीवन और कार्य से आज के युवा पीढ़ी और भावी पीढ़ी को प्रेरणा मिल सके. जिसने स्व: सुंब्रुई के राजनीतिक जीवन को देखा और अनुभव किया, वे उनके जीवंत और संवेदनशीलता को सहज ही स्वीकार कर लेंगें. लेकिन भावी पीढ़ी को उनका इतिहास पढ़ सुनकर ही ज्ञान हासिल हो सकेगा. बात उन दिनों की है जब देश आजाद हुआ और देश में भाषा और संस्कृति के आधार पर राज्य का गठन हो रहा था. जबकि अलग झारखंड राज्य की आंदोलन देश आजादी के पूर्व से चल रहा था. झारखंड के आदिवासी मूलवासियों की सह अस्तित्व विशेष संस्कृति और विशेष भौगोलिक भूभाग के आधार पर झारखंड अलग राज्य की आंदोलन चल रही थी. बहुआयामी प्रतिभा के धनी संविधान सभा के सदस्य रहे मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. (नीचे भी पढ़ें)
झारखंड पार्टी द्वारा अलग झारखंड राज्य की आंदोलन में बागुन सुंब्रुई कूद गए और उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक अलग झारखंड राज्य का गठन नहीं हो जाता तब तक फिर से कुर्ता पायजामा नहीं पहनना है. वे आंदोलनकारी के रूप में प्रवासियों पर तीखा प्रहार करते थे. बेबाकी से अपनी बात को रखते हुए बोलते थे कि देश के मानचित्र में अलग-अलग भूभाग में रहने वाले, अपनी भाषा बोलने वाले, अपनी संस्कृति मानने वाले लोगों को अलग पहचान के साथ राज्य दे दी गई है. झारखंड के जल, जंगल, जमीन तैयार करने वाले खुटकट्टी आदिवासी मूलवासियों की अपनी भूभाग भाषा और विशेष आपसी सह अस्तित्व संस्कृति है. इसलिए इन झारखंडियों को भी अपनी पहचान के साथ अलग झारखंड राज्य दी जाय. अलग झारखंड राज्य की मांग करते हुए उसने बंगाल,ओडिशा तक अखिल भारतीय झारखंड पार्टी का विस्तार किया था. जिस पार्टी ने तत्कालीन बिहार के छोटा नागपुर,संथाल परगना,बंगाल,ओडिशा से अपना जनप्रतिनिधि जीताकर दिया था. आगे चलकर वे राजनीति में कदम रखे. (नीचे भी पढ़ें)
झारखंड पार्टी सहित विभिन्न राजनीतिक दल से राजनीति की. लेकिन फिर से कुर्ता पायजामा नहीं पहने. वे जीवन भर खुला शरीर और धोती पहनकर ही रहे. हालांकि उनके रहते हुए जब अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ था तब उनसे कुर्ता पायजामा पहनने की निवेदन की गई थी. पर वे तैयार नहीं हुए. राज्य बनने के ठीक पहले जब वे 2000 में सदर चाईबासा विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए थे तब राजद कांग्रेस गठबंधन का बिहार में सरकार और वे कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. लेकिन झारखंड अलग राज्य की गठन करने के प्रस्ताव पर वे मंत्री पद त्याग दिए थे. इस प्रकार वे बिहार विधानसभा में चार बार और संसद में पांच बार निर्वाचित होकर प्रतिनिधित्व किया. खुला शरीर रहने के कारण सदन में उनकी अलग पहचान रहा है. एक व्यक्ति के रूप में वे बहुत सहज, सरल व्यक्तित्व के मालिक थे. वहीं राजनीतिज्ञ के रूप में कुशल,संवेदनशील,पारदर्शी,जनता के लिए सुलभ उपलब्धता उनकी विशेषता रही है. राजनीतिक जीवन में उनके ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं लगा. लगभग 50 वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद भी एक साधारण दो कमरे के घर में जीवन बिता दिए. वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य में स्व: बागुन सुंब्रुई का जीवन और कृत्य युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है.