संतोष कुमार
जमशेदपुर : हाथी आया… नाम ही काफी है किसी मे खौफ पैदा करने के लिए. लेकिन सरायकेला जिला के दलमा सेंचुरी में एक ऐसा इंसान है, जिसने अपना और अपने परिवार के पेट की आग बुझाने के लिए वो रास्ता चुना जो कभी भी उसे मौत की तरफ ले जा सकता है. रवि सिंह सरदार बतौर दिहाड़ी मजदूर के रूप में साल 1982 में दलमा वन्य प्राणी आश्रयी में हिरणों के लिए मलूकोचा चेकनाका में बने हिरण पार्क में हिरणों की देखभाल के लिए लाया गया. जहां आज न केवल हिरणों का बल्कि चार- चार गजराजों के देखरेख का जिम्मा रवि के ही कंधों पर आ गया है. बगैर महावती का प्रशिक्षण लिए रवि साल 2008 से प्रशिक्षित महावत रोजन अंसारी के मौत के बाद इन गजराजों की देखभाल कर रहा है.
कभी- कभी ये गजराज नाराज होकर रवि पर हमला भी करते हैं, मगर पापी पेट के लिए रवि को ये सब करना पड़ता है. महज 9 हजार की मासिक मजदूरी के लिए रवि सरदार हर दिन अपनी जान हथेली पर रखकर, पगली, रजनी, बसंती और चम्पा के हर सुख- दु:ख का ख्याल रखता है. मलूकोचा चेकनाका में बने इन गजराजों के बाड़े से हर दिन इन्हें दलमा के बीहड़ों में ले जाकर चराना फिर समय पर इन्हें पानी पिलाने से लेकर इनकी हर जरूरतों का ख्याल रखने में रवि अब माहिर हो चुका है. अब सवाल ये उठता है कि महज़ 9 हजार मजदूरी के लिए हर दिन जान जोखिम में डालने वाले रवि किसी दिन अगर इन गजराजों के कोपभाजन का शिकार बन गया तो उसकी जिम्मेवारी लेगा कौन ? वन विभाग या सरकार !
बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर इतने सालों से रवि अनवरत दलमा वन्य प्राणी आश्रयी में जंगली जानवरों की सेवा में लगा है, आज तक विभाग ने इसके सेवा को नियमित क्यों नहीं किया. 193.22 वर्गमीटर क्षेत्र में फैला दलमा वन्य प्राणी आश्रयी का उदघाटन वर्ष 1976 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के सुपुत्र स्वर्गीय संजय गांधी ने किया था. आज दलमा जंगली जानवरों से भरा हुआ है. हाथी, हिरण, जंगली सूअर, भेड़िया आदि खतरनाक जीवों से भरा पड़ा है. जहां पग- पग पर मौत से सामना होने का खतरा बना रहता है. इस दलमा वन्य प्राणी आश्रयी में बाबुओं की तैनाती सरकार करती है, जिनका वेतन और सुविधा लाखों में होता है, लेकिन इन बाबुओं के नौकरी की रक्षा करने वाले मातहत ऊपरवाले से यही दुआ करता है कि दलमा वन्य प्राणी आश्रयी में आनेवाले सैलानी को जानवर कोई नुकसान न पहुंचाए.