घाटशिला : विगत 21 सितंबर की रात घाटशिला अनुमंडल के मुसाबनी और धालभूमगढ़ प्रखंड क्षेत्र में माओवादियों के नाम पर हुई वृहद रूप से पोस्टरबाजी माओवादियों की नई पौध की दस्तक का संकेत है या फिर क्षेत्र में सक्रिय पत्थर और रेत माफियाओं की करतूत है, पर सस्पेंस बना हुआ है। पोस्टरबाजी उन्हीं इलाके में हुई है, जिन इलाकों के रास्ते माफिया स्वर्णरेखा नदी से बालू और गुड़ाबांदा के पहाड़ों से पत्थर और अवैध लकड़ी की ढुलाई करवाते हैं। इस पोस्टर बाजी के संबंध में पुलिस का मानना है कि यह शरारती तत्वों का काम है।
जानकारी होगी 15 फरवरी 2017 को गुड़ाबांदा और इसके आसपास के इलाके में सक्रिय नक्सली कमांडर कान्हू मुंडा और उसके साथियों ने सरेंडर कर दिया था। इसके साथ ही यह इलाका नक्सल मुक्त हो गया था। यह सच है कि नक्सल मुक्त होने के बाद इस इलाके में माफिया राज कायम हुआ। स्वर्णरेखा नदी से बड़े पैमाने पर अवैध रूप से बालू का उत्खनन होने लगा। वहीं गुड़ाबांदा के पहाड़ों से पत्थरों का अवैध खनन होने लगा। इस इलाके हर दिन 50 डंपर से अधिक पत्थर टपाए जाने लगे। क्षेत्र में लकड़ी का अवैध धंधा भी होने लगा। हाल के महीनों में प्रशासन ने पत्थर और रेत माफियाओं की नाक में नकेल डालने के लिए छापामारी अभियान शुरू किया। इस दौरान अवैध पत्थरों तथा बालू से लदे डंपर जप्त किए गए और इस अवैध धंधे पर काफी हद तक प्रशासन रोक लगाने में सफल हुआ। चूकी, क्षेत्र नक्सल मुक्त हो चुका था और प्रशासनिक पदाधिकारी निडर होकर दिन – रात क्षेत्र में छापामारी अभियान चला रहे थे। ऐसे में विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि माफिया तत्वों ने माओवादियों के नाम पर माओवादियों के अंदाज में पोस्टरबाजी कराई। ताकि प्रशासनिक पदाधिकारी भयभीत हो क्षेत्र में नहीं जाएं और पत्थर बालू और लकड़ी का अवैध कारोबार फलता- फूलता रहे। बहरहाल, इस पोस्टरबाजी को पुलिस माओवादी चश्मे से नहीं देख रही है। ऐसे में यह पोस्टरबाजी किसने और किस मकसद से की ? पुलिस के लिए जांच का अहम विषय है।