राजन सिंह
चाकुलिया : हौसला बुलंद हो तो कोई भी राह कठिन नहीं होती. इस कथन को चरितार्थ कर रहा है चाकुलिया प्रखंड की बड़ामारा पंचायत स्थित नीमडीहा गांव निवासी छात्र लक्ष्मण मुर्मू. लक्ष्मण मुर्मू जन्म से ही किसी अज्ञात बीमारी से पीड़त है. लक्ष्मण मुर्मू के पिता भागमत मुर्मू ने बताया कि लक्ष्मण मुर्मू बचपन से ही अज्ञात बीमारी से पीड़ित है. चलने-फिरने में कठिनाई के बावजूद वह पांच किलोमीटर दूर स्कूल जाता है. उसके इलाज के लिए माता-पिता में अपनी तरफ से भरसक प्रयास किया, लेकिन उसकी यह बीमारी डॉक्टरों के लिए एक अनबुझी पहेली बन कर रह गयी है. लक्ष्मण मुर्मू की जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है उसके शरीर के साथ-साथ उसके दोनों पांव भी बेतरतीब बढ़ रहे हैं. पांव बढ़ने के कारण उसे चलने-फिरने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वह ज्यादा चल फिर भी नहीं पाता है. कुछ दूरी चलने के बाद उसे थकावट महसूस होने लगती है. उसकी बीमारी का इलाज कराने की काफी प्रयास किया, परंतु वह ठीक नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि लक्ष्मण को सरकार की ओर ट्राइसाइकिल मिली है, परंतु उसे चलाने में भी वह असमर्थ है.
लक्ष्मण मुर्मू गांव से 5 किमी दूर बड़ामारा मध्य विद्यालय जाता है पढ़ने
अज्ञात बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद लक्ष्मण मुर्मू में पढ़ने की ललक है. वह रोजाना गांव से साइकिल चलाकर 5 किमी दूर बड़ामारा मध्य विद्यालय पढ़ने जाया करता है. उसने कहा कि उसने इस वर्ष 8वीं बोर्ड परीक्षा दी है. 8वीं की परीक्षा पास करने के बाद उसे पढ़ने के लिए 7-8 किमी दूर मुढ़ाल या चाकुलिया आना पड़ेगा. यह सोचकर ही वह परेशान है कि इतनी दूर वह पढ़ने कैसे जाएगा. लक्ष्मण ने हिम्मत नहीं हारी है. वह कहता है कि वह पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बनेगा. लक्ष्मण मुर्मू ने कहा कि जैसे वह साइकिल चलाकर बड़ामारा गांव पढ़ने जाता था, वैसे ही वह अब आगे की भी पढ़ाई करेगा.
पांव के कारण उसे साइकिल चलाने में भी परेशानी होती है, वह रूक रूक कर चलता है और विधालय पहुंचता है. कहा कि वह पढ़ना चाहता है अगर कोई उसे रोजाना स्कूल पहुंचा दे तो उसे पढ़ाई करने में मदद मिलेगी. लक्ष्मण मुर्मू का पांव दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है, जिस कारण वह फूलपेंट भी नहीं पहन पाता है. उसकी पैंट के नीचे शर्ट की तरह बटन लगा हुआ है. वह पैंट बटन खोलकर पहनता है और फिर बटन बंद करता है. उसने कहा कि पैर के बढ़ने से वह काफी कमजोरी महसूस करता है. इसके बावजूद भी वह हिम्मत नहीं हारा है. वह अब भी औरों की तरह पढ़ना चाहता है.