घाटशिला / जमशेदपुर : वो कहते है न, जब मन में कुछ कर गुजरने का इरादा हो तो लाख परेशानियां भी आपका रास्ता नहीं रोक पाती. कुछ ऐसी ही प्रेरक कहानी है जमशेदपुर के ग्रामीण क्षेत्र घाटशिला प्रखण्ड के सुदूरतम पंचायत झांटीझरना की छात्रा मंजूरी मार्डी की. प्रखण्ड मुख्यालय घाटशिला से लगभग 25 किलोमीटर दूर बंगाल सीमा पर स्थित बलियाम गांव की रहने वाली मंजूरी घाटशिला कॉलेज में संथाली स्नातक की छात्रा है. उसके गांव के बच्चों के लिए पढ़ाई कर पाना यूं भी कोई आसान बात नहीं, रही सही कसर भी कोविड ने ख़त्म कर दी. कोविड और आवागमन की सुविधा ना होने से मंजूरी का कॉलेज जाना छूट गया, लेकिन उसने फिर भी हार नहीं मानी. ऑनलाइन पढ़ाई करने हेतू स्मार्टफोन खरीदने के लिए उसने मेहनत करने की ठानी, इसके लिए मंजूरी ने गांव के आस पास उगने वाले मुंबई घास से रस्सियां बनाकर हाट बाज़ारों में बेचने का प्रयास किया. मंजूरी के जज्बे को देखते हुए स्थानीय अख़बारों ने उसकी कहानी को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, लेकिन सोशल मीडिया पर भी उसकी कहानी वायरल होने के दो हफ़्तों बाद भी मंजूरी को कोई मदद नहीं मिल सकी थी. फिर फॉलोअप करते हुए सामाजिक संस्था निश्चय फाउंडेशन ने मंजूरी की मदद करने की कोशिश की, निश्चय की पहल पर राजस्थान के अलवर जिले में कार्यरत गम्हरिया के शुभोजीत बख्शी ने अपनी सैलेरी से 10 हज़ार की बचत कर मंजूरी मार्डी को स्मार्टफोन देने की पेशकश की. शुभोजीत की मदद से रविवार को निश्चय फाउंडेशन के संस्थापक तरुण कुमार, वैद्यनाथ हांसदा, हेवेन्स ऑफ चिल्ड्रेन एजुकेशन के रामचंद्र सोरेन सुदूरतम गांव बलियाम पहुंचकर मंजूरी को सैमसंग एम2 स्मार्टफोन का उपहार दिया, जिसके लिए मंजूरी काफी समय से मेहनत कर रही थी. शुभोजीत बक्शी ने बताया कि “गांव ही देश की बुनियादी इकाई है, अगर गांव के बच्चे पढ़ाई ना कर सके, फिर हमारी उन्नति के कोई मायने नही रह जाता। मंजूरी की मदद करने का मौका पाकर मैं सौभाग्यशाली महसूस कर रहा हूं. हर किसी को बच्चों की हर सम्भव मदद करने को आगे आना चाहिए.” फोन मिलने पर मंजूरी, उसके घरवाले और उसकी सहेलियों के खुशी देखते हुए बन रही थी. उन्होंने बताया कि उनका गांव इतना दूर है कि उन्हें छोटी-छोटी चीजों के लिए भी बहुत परेशानियां उठानी पड़ती है. उनके गांव उनकी मदद करने के लिए भी कोई नहीं आता. अब फोन मिल गया है तो हम सभी बच्चे नेटवर्क के अनुसार थोड़ी बहुत ऑनलाइन पढ़ाई कर सकेंगे. (नीचे पढ़े पूरी खबर)
गांव के बच्चों को मिलकर पढ़ाएंगी मंजूरी और सहेलियां
सुदूरतम गांव की ज्यादातर बच्चियां कस्तूरबा विद्यालय में दाखिला मिलने पर ही पढ़ाई कर पाती है. कोविड के कारण काफी समय से विद्यालय बंद है, इस कारण बच्चों की पढ़ाई छूट गयी है. मंजूरी की सहायता करने गांव पहुंचे सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने मंजूरी एवं सहेलियों को शिक्षा के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें अपने गांव के बच्चों को नियमित रूप से पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया. इससे प्रेरित होकर मंजूरी और सहेलियों ने बालियाम के बच्चों को पढ़ाने हेतु प्रयास करने का निर्णय लिया. अब वो नियमित रूप से बच्चों को अलग-अलग विषय पढाएंगी. इसमें संस्था की तरफ से उन्हें हर संभव सहायता की जाएगी. मौके पर बच्चियों को माहवारी स्वच्छ्ता के प्रति भी जागरूक किया गया. बच्चियां एक पैड, एक पेड़ अभियान से जुड़कर माहवारी स्वच्छ्ता एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी काम करेंगी. (नीचे पढ़े पूरी खबर)
नन्हें रचनाकार डिजिटल क्लासरूम से ग्रामीण इलाके के बच्चों को सिखलाया जाएगा स्मार्टफोन का गुणवत्तापूर्ण उपयोग
कोविड काल मे ऑनलाइन एजुकेशन के लिए कंप्यूटर और मोबाइल उपकरणो पर हमारी निर्भरता बढ़ी है. ग्रामीण इलाके में बड़ी संख्या में बच्चे उपकरणो के अभाव में पढ़ाई नही कर पा रहे, वही जिन बच्चों के पास उपकरण है, वह भी जानकारी के अभाव में उसका गुणात्मक उपयोग नहीं कर पाते. बच्चे पढ़ाई व स्वविकास के लिए मोबाइल का ज्यादा बेहतर उपयोग किस तरह करे, इसे लेकर निश्चय जल्द ही नन्हें रचनाकार डिजिटल क्लासरूम की शुरुआत करने की योजना पर कार्य कर रहा है. संस्था नियमित रूप से अलग-अलग कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित कर भी शहर एवं गांव के बच्चों को जोड़ने एवं उनके बीच का फर्क मिटाने का प्रयास करती रहती है.