जमशेदपुर : इन दिनों वैश्विक महामारी को लेकर देश भर में लॉकडाउन चल रहा है. लोग अपने-अपने घरों में दुबके हुए हैं, लेकिन समाज का एक ऐसा भी तबका है, जो दो जून की रोटी जुटाने के लिए हर मौसम में मेहनत-मशक्कत करता रहता है. गर्मी के मौसम में अमीरों के घरों में भले ही फ्रीज का पानी मिल जाये, लेकिन गरीबों के घर में इन्हीं की बदौलत ठंडा पानी नसीब होता है. ये हैं कुम्हार, जिनकी मेहनत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. गर्मी का मौसम शुरू हो गया है. इसे लेकर शहर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले कुम्हारों ने भी तैयारी कर ली है. तैयारी भी ऐसी कि इनकी मेहनत उसमें साफ झलकती है. सोमवार की सुबह जुगसलाई में साइकिल पर घड़े लेकर घूमता हरि पद शहर से करीब 20-25 किलोमीटर दूर रहता है. उसने बताया कि इन दिनों भी उसका चाक चल रहा है. मिट्टी के घड़े बना कर वह शहर लाता और बेचता है.
हरिपद ने बताया कि घड़े लेकर शहर आने के लिए वह भोर 3.00 बजे पोटका स्थित अपने घर से निकलता है. साइकिल पर घड़े लेकर पैदल चलते हुए सुबह करीब आठ बजे पहुंता है. साइकिल पर 14-15 घड़े लदे रहने के कारण उस पर बैठ कर चलाना संभव नहीं है. इसलिए पैदल ही आना पड़ता है. घड़े की कीमत के संबंध में बताया कि 90-100 रुपये में एक घड़ा बिक जाता है. उसके परिवार के सदस्य जमशेदपुर के अलावा चाईबासा व आसपास के अन्य हिस्सों में भी घड़े लेकर बेचने जाते हैं. जबकि घर से थोक मूल्य पर 60 रुपये प्रति घड़े के हिसाब से बिक्री होती है. महीने में करीब 300 घड़े तैयार करता है. इसमें परिवार के कम से कम चार सदस्यों का योगदान होता है. तब जाकर कुल खर्च काट कर महीने में करीब 17-20 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है. हरिपद ने बताया कि सुबह 8.00 बजे शहर पहुंचने के बाद दोपहर 2.00 बजे तक फेरे करता है. इस तरह सारे घड़े बेच कर वापस अपने गांव लौटता है. फिर घर पहुंच कर वही दूसरे दिन की तैयारी करनी पड़ती है.