जमशेदपुर : जमशेदपुर को झारखंड ही नहीं बल्कि एकीकृत बिहार में राजनीतिक सक्रियता और राजनेताओं से ही जाना जाता है. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद तो पूरे राज्य में जमशेदपुर के नेताओं का ही राज रहा है. दो दो मुख्यमंत्री इस शहर ने दिये है. यहां का व्यक्ति केंद्रीय मंत्री बना. राज्य में मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित करने के अलावा यहां से चुनाव जीतने वाला व्यक्ति विधानसभा अध्यक्ष, मंत्री से लेकर कई पदों को सुशोभित किया है. लेकिन हाल के दिनों में यानी झारखंड के गठन के 23 साल के बाद यह हालात है कि यहां राजनीतिक शून्यता हो चुकी है. बड़े से बड़े जनमुद्दे उठने के बावजूद यहां के नेता किसी तरह का मुखर कार्रवाई या कदम नहीं उठाते है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, हर कोई एक साथ मिल चुके है और यहां राजनीतिक तौर पर शून्यता आ चुकी है. जाहिर सी बात है कि इसका खामियाजा जमशेदपुर के लोगों को ही उठाना पड़ रहा है. इसमें हर पार्टी के लोग शामिल है. कोई भी मुद्दे को लेकर किसी तरह का कोई आंदोलन नहीं हो पा रहा है. यहीं वजह है कि यहां की आम जनता पर बोझ डाला जाता रह रहा है. कारपोरेट कंपनियां हो या सरकार, हर स्तर पर आम लोगो को पीसा जा रहा है, लेकिन यहां के राजनीतिक दलों के लोग चुप बैठे हुए है. यहीं वजह है कि कारपोरेट कंपनियां भी बेलगाम हो चुकी है. सरकारी महकमा, अपराधी, पुलिस सारे लोग बेलगाम हो चुके है. राजनेता आपस में ऐसे मिल चुके है कि मानो यह तय हो गया हो कि तुम जब सत्ता में हो तो हम भी सत्ता में हिस्सेदार बनायेंगे और आप चुप रहो या फिर विपक्ष के लोग डर से डंडवत हो चुके है. (नीचे भी पढ़ें)
जमशेदपुर शहर में हाल ही में कई ऐसी घटनाएं, जनविरोधी फैसले हुए, लेकिन इसको लेकर राजनेताओं ने किसी तरह की आवाज तक नहीं हो पायी. जमशेदपुर में पानी, बिजली का रेट बढ़ा दिया गया है. पानी का रेट दूसरी बार दो साल में बढ़ा दिया गया. बिजली का रेट पहले बढ़ाया गया और एक बार फिर से बढ़ाने की तैयारी की गयी है. वहीं, दुर्गा पूजा को रोका जा रहा है तो कई सारे आयोजनों को रोका गया है. अपराधियों के अपराध बढ़ते गये, लेकिन कोई एक आवाज तक नहीं उठाता. जिसके साथ बितता है, वह अपनी लड़ाई खुद लड़ रहा. जनता का नेतृत्वकर्ता कहीं खो सा गया है. प्रदूषण का लेवल हो, सड़को मनमाने तरीके से तोड़ने और मरोड़ने का मुद्दा हो, हर कोई चुप है. मीडिया की आवाज उठती है, लेकिन चूंकि, हर कोई आपस में मिल चुका है, इस कारण इस नेक्सस में मीडिया की आवाज भी कहीं धुमिल हो जा रही है. जो व्यक्ति सत्ता में है, उनसे विपक्ष डरा रह रहा है. हर कोई सहमकर राजनीति कर रहा है. ऐसे में 2024 का चुनाव आने वाला है. 2024 झारखंड के लोगों के लिए काफी अहम है. उनके हाथों में पावर आने वाला है. 2024 में लोकसभा का चुनाव है. विधानसभा का चुनाव भी है. ऐसे में जनता को हिसाब लेने का समय आ चुका है. सिर्फ पानी, बिजली और सड़क को सरकारी योजना के जरिये पहुंचाने और फोटो खींचाने तक कौन नेता सीमित है, कौन लोग उनकी आवाज बनते है या बने है, इन सारी चीजों को देखने के बाद ही जनता को फैसला लेना चाहिए और खुद जनता को पूछना चाहिए कि जब जनता को खुद की लड़ाई खुद लड़नी है तो फिर नेताओं को वोट या सुविधाएं क्यों मिलनी चाहिए.