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Jamshedpur-Ram-Katha : श्रीराम कथा में केवट प्रसंग एवं भरत मिलाप के मार्मिक वर्णन से नम हुई आंखें

राशिफल

जमशेदपुर : सिदगोड़ा सूर्य मंदिर कमिटी द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के द्वितीय वर्षगांठ के अवसर पर संगीतमय श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच राकेश चौधरी और उनकी धर्मपत्नी, विजित कुमार ने सपत्नीक, राकेश सिंह एवं उनकी धर्मपत्नी एवं दीपक विश्वास ने धर्मपत्नी संग कथा व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया। पूजन पश्चात हरिद्वार से पधारे कथा व्यास परम् पूज्य साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी का स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन केवट प्रसंग एवं भरत मिलाप का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया। व्यास साध्वी डॉ विश्वेश्वरी देवी जी ने प्रसंग सुनाते हुए बताया कि “प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा” के विरद को पूर्ण करने के लिए भगवान केवट के समीप आए। गंगा जी का किनारा भक्ति का घाट है और केवट भगवान का परम भक्त है किन्तु वह अपनी भक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहता अतः वह भगवान से अटपटी वाणी का प्रयोग करता है। केवट ने हठ किया कि आप अपने चरण धुलवाने के लिए मुझे आदेश दे दीजिए तो मैं आपको पार कर दूंगा केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा उसने तो भगवान से उनके चरणों का प्रछालन मांगा। केवट की नाव से गंगा जी को पार करके भगवान ने केवट को उतराई देने का विचार किया। श्रीसीता जी ने अर्धागिनी स्वरूप को सार्थक करते हुए भगवान की मन की बात समझकर अपनी कर मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया किन्तु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरणों को पकड़ लिया। जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है ऐसे भगवान के श्रीचरणों की सेवा से केवट धन्य हो गया। भगवान ने उसके निःस्वार्थ प्रेम को देखकर उसे दिव्य भक्ति का वरदान दिया तथा उसकी समस्त इच्छाओं को पूर्ण किया। चित्रकूट पर भगवान का आगमन हुआ यहां से भील राज ( निषाद) भगवान को प्रणाम करके अपने गृह के लिए वापस हुए। मार्ग में सोकातुर सुमन्त जी को धैर्य देकर उन्होंने अवध में भेजा। सुमन्त के द्वारा रामजी का वन गमन सुनकर महाराज दशरथ ने प्राणों का त्याग कर दिया राम विरह में प्राणों का त्याग करके अवधेश संसार में सदा के लिए अमर हो गये। (नीचे भी पढ़ें)

श्रीमरत का अयोध्या में आगमन हुआ कैकयी के द्वारा मांगे गये वरदानों के सत्य से परिचित होकर उन्होंने माता कैकयी का सदा के लिए त्याग कर दिया क्योंकि राम प्रेमियों के लिए राम विरोधी का त्याग आवश्यक है। जो भगवतकर्मों में सहयोगी न वने ऐसे व्यक्ति का त्याग भक्तजनों के द्वारा किया जाता है। कैकयी का त्याग करके श्रीभरत मां कौशल्या के भवन में आए माता कौशल्या ने भरत जी को पूर्ण वात्सत्य प्रदान किया एवं राम वनवास और दशरथ मरण की सम्पूर्ण घटना को सुनाया। भरत जी ने मां के सामने शपथ पूर्वक कहा- मां मैं आपको भगवान श्रीराम से पुनः मिलाउंगा। कथा में आगे वर्णन करते हुए पूज्य साध्वी जी ने बताया कि श्रीभरत ने चित्रकूट यात्रा के लिए सम्पूर्ण अयोध्यावासियों को तैयार कर लिया। राजतिलक की सामिग्री को साथ लेकर गुरूदेव की अनुमति से श्रीभरत सभी को साथ लेकर भगवान की खोज में चल पड़े। संकेत यह है कि जन्म जन्मांतर से भटके हुए जीव को तब तक परम शान्ति नहीं मिल सकती जब तक कि वह भगवान की खोज न कर ले। मार्ग की अनेक बाधाओं को पार करते हुए श्रीभरत चित्रकूट तक पहुंचे। सच्चे साधक के मार्ग में अनेक बाधाएं आती हैं किन्तु राम प्रेम के बल पर वह सम्पूर्ण बाधाओं को पार कर लेता है। भाई-भाई के प्रेम को दर्शन कराने के लिए ही श्रीराम और भरत जी के मिलन का प्रसंग आया। चित्रकूट में श्रीमरत की राम प्रेममयी दशा को देखकर वहां के पत्थर भी पिघलने लगे। भगवान ने भरत जी केरेको स्वीकार करते हुए चित्रकूट की सभा में उन्हीं को निर्णय करने के लिए कहा तो भरत जी ने भगवान को वापस अयोध्या लौटने के लिए प्रार्थना की तथा स्वयं पिता के वचन को मानकर वनवासी जीवन बिताने का संकल्प लिया किन्तु भगवान को यह स्वीकार नहीं था। दोनों भाई एक दूसरे के लिए सम्पत्ति और सुखों का त्याग करने के लिए उद्यत थे और विपत्ति को अपनाना चाहते थे। यही भ्रातृप्रेम है। आज वर्तमान में भाई भाई की सम्पत्ति को बांटता है विपत्ति को नहीं। यदि भाई भाई की विपत्ति को बांटने लगे तो संसार भर के परिवारों की समस्याओं का समाधान हो जाये। भाई-भाई का प्रेम आज न जाने कहां चला गया। श्रीराम-भरत के प्रेम से प्रत्येक भाई को भाई से प्रेम का संदेश लेना चाहिए। (नीचे भी पढ़ें)

श्रीमरत ने भगवान की चरण पादुकाओं को सिंहासनारूढ़ किया और चौदह वर्ष तक उनकी सेवा की। यह भ्रातृ प्रेम की पराकाष्ठा है। श्रीभरत ने भाई का भाग कभी स्वीकार नहीं किया बल्कि अपना भाग भी भगवान को देकर सदैव दास बनकर उनकी सेवा करते रहे। भगवान श्रीराम वन में रहकर वनवासी तपस्वी जीवन व्यतीत करते हैं किन्तु भरत तो नंदीग्राम में रहकर भी सम्पूर्ण नियमों का पालन करते हुए भी सम्पूर्ण अयोध्यावासियों का ध्यान भी रखते हैं। सब प्रकार से भरत का चरित्र रामजी से बड़ा प्रतीत होता है। भरत जी के नाम का अर्थ ही है- ‘भ’ अर्थात् भवित, र अर्थात् रति, ‘त’ अर्थात् त्याग । अर्थात् भगवान की भक्ति, रति और त्याग का अद्भुत उदाहरण हैं “श्री भरत”। कथा के दौरान चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष विजय आनंद मुनका, वरिष्ठ समाजसेवी कमल किशोर अग्रवाल, प्रेस क्लब जमशेदपुर के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार संजीव भारद्वाज, वीरेंद्र ओझा, सत्येंद्र कुमार, ब्रजेश सिंह, समाजसेवी विकास सिंह, उदित अग्रवाल, ए के श्रीवास्तव, अनिल मोदी, हन्नु जैन, संदीप शर्मा बौबी समेत सूर्य मंदिर कमेटी के अध्यक्ष संजीव सिंह, महासचिव गुँजन यादव, श्रीराम कथा के प्रभारी कमलेश सिंह, संजय सिंह, मांन्तु बनर्जी, विनय शर्मा, अखिलेश चौधरी, राजेश यादव, शशिकांत सिंह, दीपक विश्वास, दिनेश कुमार, भूपेंद्र सिंह, मिथिलेश सिंह यादव, रामबाबू तिवारी, सुशांत पांडा, पवन अग्रवाल, अमरजीत सिंह राजा, राकेश सिंह, कुमार अभिषेक, प्रेम झा, कंचन दत्ता, संतोष ठाकुर, सुरेश शर्मा, सतवीर सिंह सोमू, बिनोद सिंह, रमेश नाग, नीलू झा,  ज्योति अधिकारी, रूबी झा, रश्मि भारद्वाज, बिमला साहू, रीता शर्मा, मृत्युंजय यादव, रंजीत सिंह, पंकज प्रिय, ज्योति, मिथिलेश साव, मुकेश कुमार समेत अन्य उपस्थित थे।

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