गालूडीह: उल्दा में चल रहे सात दिवसीय शिव पुराण कथा के तीसरे दिन शिव पुराण श्रवण करने आये श्रद्धालुओं ने मां भगवती के अष्ठभुजा का अर्थ जाना.कथा के दौरान स्वामी हिदयानंद गिरी महाराज बताया कि शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी पर ब्रह्म काल ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की. इसके अंदर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ. तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है. परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म. परम अक्षर ब्रह्म. वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है. एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह शरीर से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी. साथ ही बताया कि असुरों का सामना करने के लिए सभी देवताओं की थोड़ी-थोड़ी शक्ति संगृहित करके मां दुर्गा अर्थात संघशक्ति का निर्माण किया और उसके बल पर शुंभ-निशुंभ, मधुकैटभ, महिषासुर आदि राक्षसों का अंत हुआ. (नीचे भी पढे)
मां भगवती की अष्टभुजा का मतलब आठ प्रकार की शक्तियों से है. शरीर-बल, विद्याबल, चातुर्यबल, धनबल, शस्त्रबल, शौर्यबल, मनोबल और धर्म-बल इन आठ प्रकार की शक्तियों का सामूहिक नाम ही भगवती है. मां भगवती ने इन्हीं के सहारे बलवान राक्षसों पर विजय पायी थी. उन्होंने कहा कि उक्त आठ शक्तियों से संपन्न समाज ही दुष्टताओं का अंत संभव है, समाज द्रोहियों को विनष्ट कर सकता है. दुराचारी षड्यंत्रकारियों का मुकाबला कर सकता है.