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jamshedpur-sikh- samaj- उलाहनो मैं काहू ना दिओ, मन मीत तुहारो किओ…सिखों के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी दिहाड़ा शुक्रवार को, आमजन को शांति का उपदेश देते हुए मीठे ठंडे शरबत पिलाने की परंपरा को निभा रहे हैं सिख, श्री गुरुग्रंथ साहिब के सन्मुख नतमस्तक होगी संगत

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जमशेदपुर:मानवता के उच्च आदर्शों और मानवीय मूल्यों की रक्षा के सिलसिले में पहले सिख शहीद हरमन प्यारे श्री गुरु अर्जुन देव जी का शुक्रवार को शहीदी दिहाड़ा श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाएगा. श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरजात भी कहा जाता है. उनके शहीदी दिहाड़े को लेकर कोल्हान के सभी 34 गुरुद्वारों में विशेष तैयारियां की जा रही हैं. गुरुवार को गोलपहाड़ी समेत कई गुरुद्वारों में पिछले 40 दिनों से चल रहे श्री सुखमणि साहिब के पाठ का बीबीयों (सिख स्त्री सत्संग सभा) ने समाप्ति की. हर दिन गुरुद्वारों में प्रसाद के रुप में चना व मीठे ठंडे शर्बत का वितरण किया गया. शुक्रवार को सबसे पहले गुरुद्वारों में श्री अखंड पाठ साहिब का समापन होगा. उसके उपरांत कीर्तन समागम सजेंगे. जहां गुरु जी की जीवनी से संगत को रु-ब-रु कराया जाएगा. साथ ही गुरुद्वारों के बाहर व विभिन्न चौक चौराहों में शबील लगाई जाएगी. गुरुद्वारा कमेटियों के साथ सिख नौजवान शबील की तैयारियों में लगे हुए हैं.

जानिए कब से लगाई जाती है शबील, क्या है मकसद
सन 1606 में सिख धर्म के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी को समय की सरकार द्वारा भयानक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया. गुरु अर्जुन साहिब जी के समय तक सिख धर्म काफी प्रफुल्लित हो चुका था. अब तक गुरु स्थान गुरुद्वारा के रुप में नहीं उभरे थे. गुरु अर्जुन साहिब जी द्वारा श्री दरबार साहिब अमृतसर बनाया गया, जिसे आजकल हरिमंदिर साहिब या स्वर्ण मंदिर कहते हैं और अभी तक गुरु साहिबान द्वारा रचित वाणी जो अलग अलग पुस्तकों या ग्रंथों में थी. गुरु अर्जुन साहिब जी द्वारा उस सारी वाणी को जिसमें पांचे गुरु साहिब, भक्तों की वाणी, भट्‌टों की वाणी और कछ प्रमुख सिखों की वाणी संपादना करते हुए एक ग्रंथ में एकत्रित कर दिया गया. समय की सरकार चाहे कोई भी हो वो नहीं चाहती कि उसके राज्यकाल में कोई ऐसी शक्ति उभरे जिससे उसकी सल्तनत या राज्य को खतरा हो और वो ऐसी किसी भी शक्ति को हर हालत में दबाने व समाप्त कर देने का पूर्ण प्रयास करती है. उसके लिए प्रचलित शाम,दाम, दंड, भेद अपनाकर उनकी ताकत को कमजोर करना धेय होता है. उसी अनुसार समय के मुगल शासक जहांगीर तक जो रिपोर्ट उसके सरकारी तंत्र द्वारा पहुंची. इसके अलावा कुछ कट्‌टरपंथियों द्वारा इस नए धर्म को दबाने के लिए जो प्रयत्न किए गए वे भी सरकार की कानों तक पहुंचाए गए. किसी भी तरह इस उभरती शक्ति सिख धर्म को खत्म करने के लिए जहांगीर के मन में भी सोच पैदा हुई. उसने अपने रोजनांचा तुल्ग-ए-जहांगीरी में लिखा कि एक ऐसी शक्ति जो पंजाब में एक व्यक्ति या संत के रुप में शक्ति उभर रही है. उस झूठ की दुकान को समाप्त करने के विचार बने. सारी रिपोर्ट और विचार को एक साथ करने के बाद उसने हुक्म दिया कि इस शक्ति को दबा दिया जाए और गुरु अर्जुन देव जी की गिरफ्तार व कड़ी सजा देने का आदेश दे दिया.(नीचे भी पढ़े)

उन्हें ये सजा दी गई कि इनको यातनाएं दी जाए और खत्म कर दिया जाए. परंतु इनके शरीर का रक्त जमीन पर नहीं गिरना चाहिए. ऐसी दशा में पहले गुरु साहिब को बहुत ही विशाल बर्तन में बैठाकर उसमें पानी डालकर खौलाया गया. इस तरह करने से जब शरीर पूरा पपोलों से भर गया तो उनको दोबारा लोहे की प्लेट (तवे) पर बैठाया गया. नीचे आग जला दी गई और सिर के ऊपर से गर्म रेत डाली गई. गर्म पानी में खोलने के बाद पपोलों से भरे शरीर और जलती प्लेट पर बैठे गुरु जी का शरीर लगभग अपने अंतिम स्वांसों पर था तो उन्हें नदी में डूबा दिया गया, जिससे उनकी शहीदी हो गई. गुरु अर्जुन साहिब की भयंकर यातनाओं द्वारा हुई उनकी शहीदी को सिखों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए आम जनता को शांति का उपदेश मीठे ठंडे जल को पिलाकर लगातार उनकी शहीदी पर्व को समर्पित किया और आज भी ऐसा ही किया जा रहा है. गुरु साहिब जी रचित वाणी की ये दो पंक्तियां उद्धित की जा रही हैं, जिसमें वो परमात्मा का शुक्राना ही अदा कर रहे हैं.
उलाहनो मैं काहू ना दिओ, मन मीत तुहारो किओ
तेरा किआ मीठा लागै, हर नाम पदार्थ नानक मांगै…

जानें कब और कहां हुआ था जन्म
गुरु अर्जुन देव जी की अमर गाथा आज भी पंजाब के हर घर में सुनाई जाती है. उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था. उनके पिता गुरु राम दास थे, जो सिखों के चौथे गुरु थे और माता का नाम बीवी भानी था. गुरु अर्जुन देव बचपन से ही धर्म-कर्म में रुचि लेते थे. उन्हें अध्यात्म से भी काफी लगाव था और समाज सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म और कर्म मानते थे. सिर्फ 16 साल की उम्र में ही उनका विवाह माता गंगा से हो गया था. वहीं, 1582 में उन्हें सिखों के चौथे गुरु रामदास ने अर्जुन देव जी को अपने स्थान पर पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया था.

क्यों शहीद हुए गुरु अर्जुन देव

गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था. मुगलकाल में अकबर, गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे, लेकिन जब अकबर का निधन हो गया तो इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में इनके रिश्तों में खटास पैदा हो गई. ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला का आदेश दिया था, तो गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी. यही वजह थी कि जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी. गुरु अर्जुन देव ईश्वर को यादकर सभी यातनाएं सह गए और 30 मई, 1606 को उनका निधन हो गया. जीवन के अंतिम समय में उन्होंने यह अरदास की. तेरा कीआ मीठा लागे। हरि नामु पदारथ नानक मांगे…

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