जमशेदपुर : जमशेदपुर के भाजपा नेता अभय सिंह ने शुक्रवार को सोनारी स्थित आर्मी कैंप के पास की जमीन का मुद्दा उठाया है. इस जमीन के मुद्दे के बहाने सरयू राय पर निशाना साधने की कोशिश की गयी है और इसके बहाने भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के धुर विरोधी कहे जाने वाले भाजपा नेता अमरप्रीत सिंह काले पर भी निशाना साधने की कोशिश की है. लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग है. इसकी तफ्तीश में यह बातें सामने आयी है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपना निजी बदला लेने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद कानून को ताक पर रखते हुए अपने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करते हुए भाजपा नेता अमरप्रीत सिंह काले पर निशाना साधते हुए उनके भाई दलजीत सिंह द्वारा खरीदी गयी सोनारी आर्मी कैंप के बगल की 5.26 एकड़ की जमीन की जमाबंदी तक रद्द कराने की कोशिश की जबकि निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक में अमरप्रीत सिंह काले के भाई दलजीत सिंह के पक्ष में ही फैसला आया. दलजीत सिंह के पक्ष में फैसला आने के बाद टाटा स्टील ने इसके खिलाफ एक एलपीए हाईकोर्ट के डबल बेंच में दाखिल किया, जो अभी भी विचाराधीन है और कोर्ट ने स्टेटस को ( STATUS QUO ) यानी यथास्थिति बहाल रखने का आदेश निर्गत कर रखा है. इस स्टेटस को के बीच में एक खेल जमशेदपुर के तत्कालीन डीसी अमित कुमार (धनबाद के डीसी भी रहे है) द्वारा खेला गया, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगायी और केस को लेकर कड़े निर्देश जारी करते हुए सरकार या प्रशासन के साथ टाटा स्टील को किसी तरह का कोई कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है. और उनके ख़िलाफ़ CONTEMPT OF COURT भी दाखिल किया गया, जिसमें अमित कुमार को नोटिस भी हुई है, वैसे इस मामले को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री और भाजपा नेता रघुवर दास ने नियमों को ताक पर रखते हुए कुछेक अधिकारियों की मिलीभगत से इस मामले में दलजीत सिंह की जमीन को निजी होने के बावजूद कभी सेना की जमीन तो कभी दलजीत सिंह के नाम से की गयी जमाबंदी को ही रद्द कराने का षड़यंत्र रचते रहे. भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री सरयू राय ने सच का साथ दिया था और एक पत्र तत्कालीन मुख्य सचिव से लेकर राजस्व सचिव तक को लिखा था, जिसको अब मुद्दा बनाया जा रहा है और अब वहीं खेल कुछ भाजपा के नेताओं के माध्यम से खेलने की साजिश चल रही है. वैसे आपको बता दें कि वह जमीन सेना की नहीं है क्योंकि करीब सौ एकड़ की जमीन में से 5.26 एकड़ जमीन को छोड़कर करीब 95 एकड़ जमीन जमशेदपुर के प्रशासन ने लीजमुक्त कराने को लेकर एक अनुशंसा की है ताकि सेना वहां अपने अनुसार उसको विकसित कर सके.ऐसे जाने क्या है सेना की तथिकथित जमीन का खेल और क्या है सच : नीचे पढ़े
- यह जमीन सोनारी के पास आर्मी कैंप से सटे हुए एरिया में है, जिसकी चौहद्दी 5.26 एकड़ है.
- यह जमीन पहले एक महिला के नाम पर थी, जो टाटा लीज की जमीन कर दी गयी थी, लेकिन उक्त महिला रैयतधारी थी. उक्त जमीन की रजिस्ट्री भाजपा नेता अमरप्रीत सिंह काले के भाई सीएच एरिया निवासी दलजीत सिंह ने खरीदी थी. 1993 में इसकी बिक्री नामा की गयी थी.
- इसके बाद वर्ष 2000 में जमशेदपुर के सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी के कार्यालय से वर्ष 2000 में रैयत के पक्ष में फैसला आया और आदेश आया कि यह जमीन रैयतधारी का ही है ।
- इस आदेश के खिलाफ टाटा स्टील हाईकोर्ट चली गयी और एक याचिका दायर कर दी.
- इस याचिका पर सुनवाई करते हुए वर्ष 2012 में हाईकोर्ट का आदेश आया और सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी के आदेश को सही करार देते हुए दलजीत सिंह के पक्ष में फ़ैसला दिया।
- इस आदेश के खिलाफ टाटा स्टील फिर से झारखंड हाईकोर्ट के डबल बेंच में एलपीए दाखिल की, जिसमें डबल बेंच ने स्टेटस को लगा दिया और यथास्थिति बहाल रखने को आदेश दिया, जो अब तक लंबित है.
- इस बीच हाईकोर्ट के सारे केस में कई सारे शपथ पत्र और प्रति शपथ पत्र सरकार की ओर से दायर किये गये है, जिसमें जमाबंदी और रैयत के जमीन को सही करार दिया है
- वर्ष 2015 में जैसे ही भाजपा की सरकार बनी और मुख्यमंत्री के तौर पर रघुवर दास ने अपना पद संभाला, वैसे ही इसको लेकर अमरप्रीत सिंह काले और उनके परिवार के खिलाफ साजिश शुरू कर दी गयी
- अचानक से वर्ष 2016 में किसी मुंशी रजक और तीन अज्ञात लोगों ने शिकायत की कि उसमें अनियमितता है. इसी पत्र के आलोक में राजस्व सचिव ने आदेश दे दिया कि एक कमेटी जांच करेगी और उक्त कमेटी की अध्यक्षता जमशेदपुर के उपायुक्त करेंगे
- तत्कालीन उपायुक्त डॉ अमिताभ कौशल ने पूरे मामले की जांच की, जिसमें यह पाया गया कि उक्त शिकायतकर्ता मुंशी रजक और तीन लोग के नाम ही फरजी है और उनको कई बार नोटिस किया गया लेकिन वे लोग अपना पक्ष नहीं रखने आये और किसी तरह का कोई पता ही नहीं है
- तत्कालीन उपायुक्त डॉ अमिताभ कौशल ने इस शिकायत को गलत करार देते हुए रिपोर्ट समर्पित कर दी
- इस बीच अचानक से जमशेदपुर के उपायुक्त के तौर पर अमित कुमार का पदस्थापन कर दिया गया, जो धनबाद के भी डीसी रहे है.
- जैसे ही नये डीसी के तौर पर अमित कुमार बनाये गये, वैसे ही राजस्व सचिव के स्तर पर एक और पत्र लिखा गया और उसी मुंशी रजक की शिकायत की फिर से जांच करायी गयी.
- इसकी जांच तत्कालीन डीसी अमित कुमार ने महाधिवक्ता से राय मांगी की कि वे अपने स्तर से हाईकोर्ट में दायर एलपीए में आइए (इंटरलोक्योटरी एप्लीकेशन) दाखिल करना चाहते है, जिसको महाधिवक्ता कार्यालय ने नकार दिया और कहा कि एलपीए में आइए और नये तथ्य नहीं जोड़े जा सकते है. अगर पुराने सपथ पत्र के इतर सपथ पत्र देंगे तो कोर्ट इसे गंभीरता से लेगा और आपके ख़िलाफ़ CRIMINAL CONTEMPT OF COURT भी हो सकता है.
- इस बीच महाधिवक्ता का प्रभार अजीत कुमार को दे दिया गया. अजीत कुमार ने इस मामले में तत्काल एक पत्र लिख दिया, जिसमें यह कहा गया किउनको मौखिक तौर पर ऐक्टिंग चीफ़ जस्टिस ने आदेश दिया है कि उक्त जमीन के मामले में सरकार कुछ भी क सकती है, जिसके आधार पर उन्होंने पत्र निर्गत कर दिया.
- उक्त पत्र के निर्गत होते ही तत्कालीन डीसी अमित कुमार ने एक खास दबाव में आकर उक्त जमीन की जमाबंदी को ही 4-एच के तहत रद्द करने की कार्रवाई शुरू कर दी. एक सितंबर 2017 को अंतिम सुनवाई की तिथि मुकर्रर कर दी.
- इस बीच दलजीत सिंह ने इसको लेकर हाईकोर्ट में फिर से याचिका लगायी. एक सितंबर 2017 को ही हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया है, ऐसे में यथास्थिति को बहाल रखी जाये. 1 सितंबर 2017 को सुनवाई का समय दोपहर साढ़े तीन बजे निर्धारित थी. हाईकोर्ट का संदेशवाहक डीसी से मिलने पहुंचता है और आदेश का कॉपी देने की कोशिश करता है, लेकिन आदेश की कॉपी नहीं ली जाती है और डीसी अपने कोर्ट से जमाबंदी को ही रद्द करने का आदेश जारी कर देते है.
- इसकी शिकायत फिर से दलजीत सिंह ने की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने तत्काल सारी कार्रवाई को रोकने का आदेश दे दिया और डीसी को कड़ी फटकार भी लगायी.
- इस बीच पूर्व मंत्री सरयू राय ने अपने वोटर दलजीत सिंह और भाजपा के ही नेता अमरप्रीत सिंह काले का नाम लेते हुए इस तरह की अनियमितता की लिखित शिकायत कर दी, जिसके बाद से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और हमलावर हो गये और अब नये सिरे से इस मुद्दे को अभय सिंह ने उठाया है.