जमशेदपुर : चाहे कोई भी पर्व या त्योहार हो, आम लोग शांति चाहते हैं. पर्व में दिमाग की शांति, आत्मा की शुद्धि उद्देश्य होता है. लेकिन आम तौर पर यह देखा जाता है कि शहर में किसी भी पर्व-त्योहार के अवसर पर बड़े-बड़े लाउडस्पीकर व साउंड सिस्टम की सड़कों पर बाढ़ आ जाती है. बेतरतीब आवाज ध्वनि प्रदूषण तो करता ही है, लोगों का जीना भी हराम हो जाता है. कोराना काल में मनाये जा रहे छठ महापर्व के अवसर पर भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है. उदाहरण के लिए जुगसलाई के विभिन्न मुहल्लों में स्थित गलियों को सड़कों को लें, वहां व्रतियों की सुविधा के लिए विद्युत सज्जा तो समझ में आती है, लेकिन लाउडस्पीकरों का क्या काम. (आगे की खबर नीचे पढ़ें)
पिछले दो दिनों से लाउडस्पीकरों की कानफाड़ू आवाज ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. लेकिन इनके व्यवस्थापकों से उलझे कौन. प्रशासन चुप है और आम आदमी इनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. इसी का फायदा उठा कर ऐसे अवसरों पर ये व्यवस्थापक मुहल्ले व बस्तियों की शांति भंग करने को तैयार रहते हैं. जरूरत है, ऐसे अवसरों के मद्देनजर प्रशासनिक स्तर से गाइडलाइन जारी करने की. ताकि यदि लाउडस्पीकरों का प्रयोग किया भी जाये, तो उसकी आवाज की भी एक सीमा तय हो, ताकि लोगों को किसी तरह की परेशानी न हो. क्योंकि यह भी सोचना होगा कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी हर व्यक्ति एक समाज नहीं होता, कोई बीमार भी हो सकता है. ऐसे में कुछ लोगों का यह भी मानना है कि प्रशासन को इसे गंभीरता से लेते हुए अविलंब कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि पर्व-त्योहारों को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराया जा सके.