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Jamshedpur student suicide for mobile game – जमशेदपुर में भी अब मोबाइल गेम लेने लगी जान, साकची में स्कूल स्टूडेंट ने लगायी फांसी, मोबाइल गेम खेलते हुए की आत्महत्या, जानिये क्या कह रहे चिकित्सक

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जमशेदपुर : जमशेदपुर में भी अब ऑनलाइन गेम के चक्कर में बच्चे मौत को गले लगाने लगे है. सोमवार की आधी रात को जमशेदपुर के बेल्डीह चर्च स्कूल के आठवीं के छात्र ने अपने घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उक्त बच्चा सौर्य प्रताप सिंह है, जिसकी उम्र 13 साल है. उसके पिता रविकांत सिंह है और वह साकची काशीडीह लाइन नंबर 12 में अपने नानी के घर में रहता था. बताया जाता है कि उसकी मां तीज का उपवास की हुई थी. सोमवार की रात को उसकी मां सरगही (व्रत के पहले दिन उपवास को लेकर खाने वाली संस्कृति) खाने के लिए रात करीब ढाई बजे उठी. उनके बेटे के कमरे में ढाब रखा हुआ था. ढाब लेने के लिए वह उसके कमरे को खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन बेटा नहीं जागा. इसके बाद मां चिल्लाने लगी. आसपास के लोगों ने दरवाजा को तोड़ दिया. इसके बाद बेटा को देखा कि गमछा के सहारे फांसी पर लटका हुआ है. इसके बाद उसको उतारकर लोग टीएमएच ले गये, जहां चिकित्सकों ने उसको मृत घोषित कर दिया. इसके बाद उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज भेज दिया है. पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक, बच्चा कोई ऑनलाइन गेम खेलता था. वह रात के वक्त भी गेम खेलते हुए ही सोया था. गेम के दौरान ही ऐसा कुछ हुआ कि वह फांसी लगा लिया. इस घटना के बाद से क्षेत्र में सनसनी है. यह लोगों के लिए चिंता बढ़ा दी है. (नीचे भी पढ़ें)

क्या कहते है चिकित्सक
नौनिहालों के बचपन के वो पांच साल, जब बच्चों का बौद्धिक विकास होना होता है, लेकिन इस समय में ऑनलाइन गेम के कारण उसका विकास रुक जाता है. वहीं 5 से 20 साल तक गेम और गैम्बलिंग के चक्कर में बदलाव आता है. मनोवैज्ञानिक दीपक गिरी के मुताबिक, बच्चों को मोबाइल स्क्रीन टाइम कुछ समय से बढ़ता जा रहा है. इससे धीरे धीरे बच्चों में बढ़ती उम्र के साथ कई हारमोन के बदलाव के कारण एक घंटे तक मोबाइल स्क्रीन रोज देख रहे है या मोबाइल गेम खेल रहे है. इससे बच्चे चिड़चिड़ा हो रहे है. अकेलापन और ऑनलाइन गेम खेलने से मानसिक बीमारी गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार होने का खतरा बढ़ रहा है. कई बार बच्चे हिंसक हो जाते है. बच्चों के दिमाग में हैप्पी हार्मोन के फारुख डोपामाइन का ज्यादा रिलीज होने लगता है. इससे बच्चों के दिमाग को इसकी आदत लग जाती है. उसके बाद बच्चों को सब कुछ अच्छा ही चाहिए होता है. थोड़ी सी भी परेशानी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. ऐसे में बच्चों को दूसरे कामों में इंगेज करने के लिए दिमाग लगाने की जरूरत है.

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