जमशेदपुर : बिन पानी सब सून यह कहावत बागबेड़ा के लिए बिल्कुल चरित्रार्थ है. जमशेदपुर के बागबेड़ा के कई इलाके, रानीडीह, मतलाडीह, सोमाय झोपड़ी, गुल्टु झोपड़ी, गिद्दी झोपड़ी, घाघीडीह, करनडीह में सालों भर पानी की समस्या बनी रहती हैं. गर्मी के दिनों की शुरुआत हो गई है और पानी के लिए लंबी लंबी लाइनें रोज सुबह और देर शाम तक लगी रहती हैं. महिलाएं, बच्चें और घर के पुरुष हर रोज अपने दिन का दो घंटा पानी की व्यवस्था करने में लगाते हैं. (नीचे भी पढ़ें)
इन सभी इलाकों के लोगों के लिए दिन के 24 घंटे नहीं होते, 22 घंटे ही होते है. क्योंकि औसतन हर व्यक्ति का दो घंटा पानी की व्यवस्था करने में चला जाता है. गिद्दी झोपड़ी वृहद ग्रामीण जलापुर्ति योजना से इन सभी इलाकों में पानी पहुंचाने की योजना थी. 237.21 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली यह योजना अभी तक पूरी नहीं हो सकी है. 2015 में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार में योजना को स्वीकृति दी गई थी और 2018 तक घरों तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य था. जो अभी तक पूरा नहीं हो सका है. (नीचे भी पढ़ें)
विदित है कि 22 पंचायत के 113 गांव, रेलवे क्षेत्र की 33 बस्तियों को इस परियोजना से लाभ मिलता. कई बार धरना प्रदर्शन, संबंधित विभाग का घेराव, जमशेदपुर से रांची तक पदयात्रा, भूख हड़ताल और न जाने क्या क्या ग्रामीणों और बागबेड़ा विकास समिति ने किया है पर आज तक समस्या जस की तस बनी हुई है. लोग पानी के लिए हर रोज लाइनों में लगे रहते हैं. गर्मी के दिनों में स्थिति बद से बदत्तर हो जाती है. स्थानीय स्तर पर कुछ स्थानों पर चापानलों में समरसेबल मोटर की व्यवस्था की हैं, पर इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए यह अपर्याप्त हैं. (नीचे भी पढ़ें)
लगभग 4000 लोगों पर एक समरसेबल मोटर हैं. इन चापानलों पर सुबह से शाम तक लोगों का तांता लगा रहता है. गर्मी के दिनों में लगातार चलने के कारण कई बार समरसेबल मोटर खराब हो जाती है. इसके मरम्मत पर भी किसी का ध्यान नहीं होता. स्थानीय लोगों से बात करने पर जानकारी मिली की वे हर पानी भरने वालों से 30 रुपए महीने लेते है और इन्हीं पैसों से मोटर के खराब हो जाने पर खुद ही इसकी मरम्मत करवाते हैं. क्योंकि विभाग और पदाधिकारियों का इंतजार काफी लंबा होता हैं. लोगों का कहना है कि प्रशासन का इंतजार करेंगे तो सालों भर प्यासे ही रहना होगा. बेहतर है कि अपनी व्यवस्था खुद ही की जाए. (नीचे भी पढ़ें)
बागबेड़ा के कई चापानल हैं खराब, ग्रामीण है परेशान
बागबेड़ा के विभिन्न सड़कों पर ऐसे कई चापानल दिखते हैं जिनमें पानी नहीं आती. गर्मियों के दिनों में भूगर्भ जलस्तर गिर जाने के कारण ये सभी चापानल बेकार हो जाते है. साथ ही काफी कम बोरिंग होने के कारण बरसात में कुछ दिन ही इनमें पानी आती है. स्थानीय पंचायत स्तर पर भी इनकी कोई सुध नहीं लेता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हर सड़क पर चापानल लगवाने से बेहतर तो यह है कि सरकार गिद्दी झोपड़ी वृहद ग्रामीण जलापुर्ति योजना को जल्दी पूरा करें और लोगों की प्यास और बरसों के इंतजार को खत्म करें. (नीचे भी पढ़ें)
विदित है कि बागबेड़ा समेत 113 गांव के लोग बरसों से पानी का इंतजार कर रहे हैं. कपड़ा साफ करना, गाड़ी धोना जैसे काम जिसमें पानी की बहुत ज्यादा जरुरत होती है, ऐसे कामों के लिए ग्रामीणों के पास नदी के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. गर्मी के कारण नदी का जलस्तर भी कम हो जाता हैं. जिससे ग्रामीणों को दोहरी मार झेलनी पड़ती हैं.