


जमशेदपुर : भले केंद्र और राज्य सरकार दिव्यांगों के नाम पर बड़े- बड़े दावे करती है, लेकिन झारखंड के चाकुलिया प्रखंड के कांटाबनी की एमए पास दोनों पैरों से लाचार सुलाता पॉल की दास्तान आपको सोचने को विवश कर देगी. जरा सोचिए एमए तक की पढ़ाई दिव्यांग सुलता ने कैसे की होगी… सुलता बीएड करना चाहती है ताकि शिक्षक बनकर लोगों में शिक्षा का अलख जगा सके. उसे खैरात के पैसों पर जीना नागवार गुजरा और पड़ोस की महिला के सहारे सोमवार को पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय जिले के उपायुक्त से मिलने पहुंच गई, लेकिन उसे क्या पता बड़े बाबुओं और अधिकारियों में आज भी कोरोना का खौफ है… सो उसे उपायुक्त के मातहतों ने उपायुक्त से कोरोना जांच का बहाना बनाकर मिलने देना तो दूर कलेक्टेरिएट के गेट के भीतर तक प्रवेश करने नहीं दिया. बेचारी दिव्यांग सुलता बैरंग ही वापस लौट गई. सुलता यहां इस उम्मीद से आयी थी कि जिलाधिकारी उसकी अनुशंसा कर देंगे और उसका बीएड में नामांकन हो जाएगा. अभागी को ये कहां पता था कि बदनसीबी उसके किस्मत में ऊपरवाले ने ही लिखकर भेजी है. इंसान तो केवल कागजों पर ही योजनाएं लाते हैं और वाहवाही लूटते हैं. इसके लिए सरकार, सरकारी तंत्र या सुलता के भाग्य को दोषी ठहराया जाए…!