जमशेदपुर : आदिवासी सोसियो एजुकेशनल व कल्चरल एसोसिएशन, झारखंड (आसेका) की ओर से झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस से राजभवन में भेंटकर संताली को झारखंड राज्य की राजभाषा की मान्यता के लिए मांग पत्र सौंपा गया. राज्यपाल से मुलाकात के दौरान बहुत ही सौहार्दपूर्ण वातावरण में बातचीत हुई. राज्यपाल ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि इस मांग पर वह विचार विमर्श कर आगे की कार्रवाई करेंगे. मांग पत्र में मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान आकर्षित किया गया कि झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है, जिसमें संताल आदिवासी बहुसंख्यक है. इनकी मातृभाषा संताली है, जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त है. संताली की अपनी लिपि ओलचिकी लिपि है. इसमें झारखंड राज्य की राजभाषा होने के सारे मानदंड पूरा करने का तत्व मौजूद है. इसके अलावे झारखंड तथा भारत के कई राज्यों के आदिवासियों का एक स्वतंत्र धर्म है, जिसे ‘सारना ‘ धर्म कहते है. आदिवासी मूलत: प्रकृति के बहुत करीब रहते है और वह प्रकृति के बगैर जी नही सकते है. वह अपने को प्रकृति के पुजारी मानते है और उसी में आस्था रखते है. जब सभी अलग-अलग धर्म के मानने वालों के लिए उनकी धर्म का मान्यता है, तब आदिवासियों के लिए भी अलग सारना धर्म कोड होना चाहिए. इस प्रतिनिधिमंडल में आसेका के अध्यक्ष सुभाष चंद्र मार्डी, महासचिव शंकर सोरेन, चेयरमैन स्पोटर्स डॉ हरीश चंद्र मुर्मू, चेयरमैन सोशल सुरेंद्र टुडू, सलाहकार रोड़ेया सोरेन मुख्य रूप से उपस्थित थे.