अनिल कुमार / बोकारो : इस दुनिया में आप चाहे कुछ भी कर ले, ज्ञान बिना कुछ नहीं और बिन शिक्षा ज्ञान नहीं, आज के दौर में शिक्षा का अधिकार सभी को है. चाहे वह गरीब हो या चाहे अमीर हो शिक्षा हर किसी की जरूरत है और शिक्षा के बिना जीवन में सफलता पाना नामुमकिन सा है. आज के दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरूरत हर कोई जानता है. एक दौर वह भी था जब अज्ञानता वश गरीबों में शिक्षा का स्तर काफी नीचे था. उस वक्त लगभग 28 साल पहले राजमिस्त्री का काम करने वाले सातवीं पास परशुराम राम ने मन में ठान लिया कि हर गरीब तबके और असहायों के बच्चों को शिक्षित करेंगे वह भी निशुल्क. आज हम बताने जा रहे हैं 68 वर्षीय सातवीं कक्षा पास राजमिस्त्री परशुराम राम के बारे में जो बस्ती में रहने वाले गली, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं और समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का काम कर रहे हैं. (नीचे भी पढ़ें)
आज से लगभग 28 साल पहले बोकारो के सेक्टर 12 में झोपड़ी नुमा स्कूल बिरसा मुंडा नि:शुल्क विद्यालय की स्थापना की जिसमें गरीबों के बच्चे नि:शुल्क पढ़ते हैं. परशुराम के द्वारा इस कार्य को करने के पीछे वह बताते हैं कि उनके माता पिता अत्यंत ही गरीब थे और मजदूरी करते थे वह इतना कमा नहीं पाते थे कि अपने बच्चे को पढ़ा सके किसी तरह परशुराम ने अपनी सातवीं की पढ़ाई पूरी की जिसके बाद राजमिस्त्री का काम करने लगा एक दिन काम के दौरान एक महिला लेबर काम को बीच में रोककर रोते बिलखते अपने बच्चे को स्तनपान कराने लगी तभी ठेकेदार वहां आया और उस महिला लेबर को फटकार लगाई और स्तनपान कर रहे बच्चे को मां से अलग कर दिया और कहां काम नहीं रुकना चाहिए तभी परशुराम ने यह देखा और मन में ठान ली कि हर गरीब के बच्चे को अच्छी शिक्षा दूंगा ताकि पढ़ लिखकर वह अच्छा काम करें तभी से उसने राजमिस्त्री का काम छोड़कर अपनी सारी जमा पूंजी विद्यालय खोलने में लगा दी. शुरुआत में ही उन्होंने 17 बच्चों को शिक्षा दिलाने का काम शुरू कर दिया और अब तक लगभग 9 हजार बच्चे यहां से नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, इतना ही नहीं यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए जो शिक्षक-शिक्षिका है वह भी अपनी सेवा भाव से नि:शुल्क योगदान दे रहे हैं यानी वे बिना वेतन के ही बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना पूरा समय समर्पित कर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर रहे है. (नीचे भी पढ़ें)
महिला शिक्षिका ने कहा कि परशुराम अपना पूरा जीवन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने में लगा दी है. उन्होंने 2006 में जनकल्याण सामाजिक संस्था के नाम से मान्यता भी मिल गयी है. परशुराम बताते हैं कि बच्चों को पढ़ने के लिए कॉपी, किताब, कपड़े और स्कूल में बैठने के लिए टेबल आदि लोगों के सहयोग से तथा कुछ सामाजिक संगठनों के द्वारा मदद का सहयोग समय-समय पर मिलता रहता है लेकिन बच्चे आज भी झोपड़ी नुमा विद्यालय में पढ़ रहे हैं अगर सरकार कुछ मदद करती है तो जो सुविधाओं का अभाव है उसको दूर करते हुए शिक्षा के स्तर को और बेहतर बनाया जा सकता है. (नीचे भी पढ़ें)
आपको बता दें कि परशुराम हमेशा बच्चों की पढ़ाई को लेकर अपने विद्यालय की निगरानी में रहते हैं और खाली समय मिलने पर वह फावड़ा लेकर खेतों में भी चल पड़ते हैं. साथ ही साथ आसपास के जितने भी झुग्गी झोपड़ी बस्तियां है जहां ठेला चालक रिक्शा चालक दैनिक मजदूरी करने वाले लोग रहते हैं उन्हें शिक्षा को लेकर जागरूक भी करते हैं और बच्चों को स्कूल में भेजने के लिए प्रेरित भी करते हैं. वहां आसपास के लोग भी परशुराम के काम से काफी प्रभावित है और खुशी मन से अपने बच्चों को उनके विद्यालय भेजकर शिक्षा दिला रहे हैं. वहीं अगर हम विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की बात करें तो इस विद्यालय में सभी गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं. बच्चों का कहना है कि वे कचरा चुनने का काम करते थे तभी परशुराम ने उन्हें देखा और कहा कि तुम पढ़ना नहीं चाहते हो. तब उसने कहा कि वो पढ़ना चाहता है पर उसका परिवार अत्यंत गरीब है, जिस कारण उसे कचरा चुन्ना पड़ता है. इसके बाद वे उस लड़के को अपने साथ अपनी स्कूल में लेकर गये. (नीचे भी पढ़ें)
वहां उन्होंने उसका दाखिला करवाया, जो अब भी वहां शिक्षा ले रहा है. वहीं दूसरी ओर एक छात्रा ने बताया कि उसके पिताजी ठेले पर गोलगप्पे बचते है. वह भी बहुत मुश्किल से अपने परिवार का भरन पोषण कर पाते है. उन्होंने यह भी बताया कि जब भरन पोषण ही नहीं हो पाता था तो वो स्कूल में दाखिला कैसे ले सकती थी. जब बचपन में वह बच्चों को स्कूल जाते देखती थी तो उसकी भी इकछा होती स्कूल जाने की. जिसका सपना परशुराम ने पूरा किया है. वहीं परशुराम को भी इन गरीब बच्चों को पढ़ाने की बेहद खुशी है. वहीं उन्होंने कहा कि वे इस अज्ञानता रुपी अंधेरे को खत्म करना चाहते है. वहीं इसमें अगर सरकार की मदद मिल जाती तो और अच्छा होता.