जमशेदपुर : आयुष्मान भारत योजना गरीबों के लिए वरदान साबित होती, लेकिन इसका सिस्टम फेल होता नजर आ रहा है. हालात यह है कि लोगों का इलाज नहीं हो पा रहा है. अगर आप अपना इलाज कराने या डायलिसिस कराने के लिए आयुष्मान कार्ड के भरोसे निजी अस्पतालों में चले गये तो हो सकता है आपकी जान भी चली जाये और आपको इलाज भी नहीं मिल सके. ऐसा देखने को मिल रहा है किडनी रोगियों के साथ. आयुष्मान भारत योजना के तहत डायलिसिस करा रहे मरीजों के लिए डायलसिस पेंचीदा हो गयी है. जहां पिछले एक हफ्ते से आयुष्मान भारत के तहत डायलसिस कराने अस्पताल पहुंच रहे मरीजों को घंटों या तो इंतजार करना पड़ रहा है या बेबस होकर पैसे चुकाकर डायलसिस कराना पड़ रहा है. कई गरीब मरीज तो पैसों के अभाव में बगैर डायलिसिस कराएं वापस लौट रहे हैं. वैसे नयी व्यवस्था की जानकारी न तो सिविल सर्जन को है और न ही मरीजों को. बताया जा रहा है कि 16 दिसम्बर से आयुष्मान योजना से डायलसिस की सुविधा ले रहे मरीजों के लिए आयुष्मान से पहले अनुमति लेना जरूरी है. आयुष्मान अस्पताल प्रबंधन को अनुमति के रूप में मरीजों के लिए ओटीपी जारी करेगा तब अस्पताल मरीजों का डायलसिस करेगा.
मतलब अगर ओटीपी विलंब से आया, तो मरीजों को या तो अपने पैसों से डायलसिस करना होगा, या इंतजार करना होगा, अथवा बगैर डायलिसिस कराएं वापस लौटना होगा. ऐसे में जिन मरीजों के लिए डायलिसिस निहायत जरूरी है, उन मरीजों की जान जोखिम में है. अब इसकी जिम्मेवारी कौन लेगा. वैसे इसकी जानकारी तब लगी, जब सरायकेला- खरसावां जिला के आदित्यपुर स्थित मेडीट्रीना अस्पताल में मंगलवार को सुबह से ही डायलिसिस कराने पहुंच रहे मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ा. सूचना के पड़ताल में जब हमारी टीम में मेडिट्रीना अस्पताल पहुंची, तो यहां के मरीजों का बुरा हाल था. सुबह 5:00 बजे से ही मरीज ओटीपी के लिए आवेदन कर अपनी बारी के इंतजार में बैठे नजर आए. कुछ मरीज जिन्हें डायलिसिस की नितांत आवश्यकता थी, वे पैसे देकर डायलिसिस कराते देखे गए. कुछ मरीज दोपहर तक ओटीपी आने के इंतजार में बैठे नजर आए. इस संबंध में अस्पताल प्रशासन से पूछने पर उनके द्वारा बताया गया कि नई व्यवस्था के तहत अब ओटीपी के बिना किसी भी मरीज का डायलिसिस करना उनके वश में नहीं. मेडिट्रीना अस्पताल के मैनेजर शाहिद आलम ने बताया कि पहले से ही आयुष्मान योजना के तहत किए गए इलाज के मद में डेढ़ करोड़ से भी अधिक का बकाया हो चुका है. ऐसे में हम और अधिक रिस्क नहीं ले सकते. वही इस संबंध में हमने जब जिले के सिविल सर्जन से बात करनी चाही, तो उन्होंने इसकी जानकारी नहीं होने की बात कही. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है, कि आखिर केंद्र सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना, जिसकी चर्चा देश में ही नहीं विदेश में भी हो रही है, तो क्या झारखंड में इस योजना के तहत हो रहे परेशानी को नजरअंदाज किया जा रहा है. बहरहाल मामला चाहे जो भी हो. कुल मिलाकर गंभीर मरीजों के लिए ओटीपी सिस्टम जी का जंजाल बन गया है.