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Jharkhand-न्यायालय के आदेश को नहीं मान रहा वन विभाग, कोर्ट अवमानना का हो सकता है मामला

राशिफल

रांची : झारखंड वन विभाग में पदस्थापित दैनिक वेतनभोगी अस्थायी कर्मचारियों के स्थायी नियुक्ति के मामले में विभाग की मुश्किलें बढ़ सकती है. बता दें कि 2014 में विभाग की ओर स्टाफ सलेक्शन कमीशन (एसएससी) के माध्यम से चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के लिए नियुक्ति निकाली गई थी. जिसमें उम्र की बाध्यता के साथ शैक्षणिक बाध्यता भी निर्धारित की गई थी. जिस पर पूर्व से काम कर रहे दैनिक वेतन भोगी मजदूरों ने आपत्ति जतायी थी. इस संबंध में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संघ ने पूर्व में ही राज्यपाल को अवगत कराया था, ताकि जब भी विभाग में बहाली निकले उन्हें प्राथमिकता देते हुए उन्हें नियमित किया जाए. तत्कालीन राज्यपाल ने इन्हें आश्वासन दिया था, कि जब भी विभागीय स्तर पर बहाली निकलेगी तो उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी.मगर 2014 में जब बहाली निकली तब इनकी मांगों को दरकिनार करते हुए उम्र एवं शैक्षणिक बाध्यता निर्धारित कर दी गई. जिससे कई मजदूरों के भविष्य एवं अस्तित्व पर संकट आ गया. पूरे राज्य के लगभग 97 दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को विभाग ने बैठा दिया. इसको लेकर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संघ ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए झारखंड हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 466/ 2015 दाखिल किया. जिसपर संज्ञान लेते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने अपने 20/01/ 2017 के फाइनल जजमेंट में विभाग को इनके स्थायीकरण का आदेश दिया था. जिसमें साफ तौर पर यह निर्देशित किया गया, कि ऐसे सभी अस्थाई दैनिक वेतन भोगी मजदूर जिन्होंने विभाग में नियमित 26 दिन काम किया है, या नियमित 10 साल या उससे अधिक समय तक विभाग में सेवा देते आए हैं, एवं जब तक उनकी उम्र सीमा 60 वर्ष पूर्ण नहीं हो जाती है, वैसे मजदूरों का नियमितीकरण किया जाए. इस संबंध में झारखंड हाई कोर्ट की ओर से विभाग को चिट्ठी प्रेषित कर दी गई है. मगर विभाग की ओर से हाईकोर्ट के आदेश को नहीं माना जा रहा है.(नीचे भी पढ़े)

इस मामले की पैरवी कर रही एडवोकेट अमृता कुमारी ने संबंधित विभाग के पदाधिकारियों को 15 से 60 दिनों के भीतर हाईकोर्ट के आदेश के आलोक में दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को स्थायीकरण करने की अपील की है. साथ ही नहीं मानने के पीछे कारण बताने की भी मांग की है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा है, कि यदि विभाग की ओर से किसी तरह का स्पष्टीकरण नहीं आता है, तो वह न्यायालय में न्यायालय के आदेश का अवमानना के तहत मुकदमा दर्ज करने लिए स्वतंत्र होंगी ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि पिछले 5 सालों से झारखंड हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे विभागीय पदाधिकारियों पर क्या असर होता है.दरअसल अधिवक्ता अमृता कुमारी 2019 में दैनिक वेतन भोगी मजदूर पदमलोचन गोप की सड़क दुर्घटना में मौत मामले में क्षतिपूर्ति को लेकर सिविल कोर्ट जमशेदपुर में मामला दर्ज कराया था. पदमालोचन गोप वन विभाग में माली के पद पर कार्यरत थे. मगर ना तो वन विभाग की ओर से उन्हें मुआवजा दिया गया ना ही परिजनों को किसी तरह का सहयोग राशि उपलब्ध कराया गया, जबकि नियमतः वे नियमित भी हो चुके थे. मगर विभाग सारे फाइल को दबाए रखा था. इस संबंध में अधिवक्ता अमृता कुमारी ने बताया कि यदि पूरे मामले की जांच कराई जाए तो पूरा मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हो सकता है.उन्होंने बताया कि विभाग के बड़े अधिकारी कर्मचारियों की हकमारी रहे हैं.

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