तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की मांग को लेकर किसान आंदोलन के तीन महीने बीत चुके हैं, देश के लाखों किसान आंदोलित हैं, जगह-जगह महापंचायतें हो रही हैं, जिनमें लाखों किसान जुट रहे हैं और अपना समर्थन दे रहे हैं. ग्यारह दौर की वार्ता भी सरकार के साथ हुई,लेकिन परिणाम सिफर ही निकला. और पिछले एक माह से अधिक दिनों से सरकार और किसानों के बीच संवाद भी खत्म हो गया. आगे क्या होगा फिलहाल कुछ कहना कठिन है. सरकार ने इस मुद्दे पर घूंघट ओढ़ लिया है. यानी अपना चेहरा छुपा लिया है. अब आते हैं दूसरे और अहम मुद्दे पर हाल के दिनों में जिस तेजी से पेट्रोल, डीजल और इंधन गैस के दाम बढ़े हैं, वह न केवल चौंकानेवाले हैं, बल्कि हैरान करनेवाले भी हैं. पेट्रोल शतक पार कर चुका है और डीजल भी कमोवेश वहीं पहुंचनेवाला है. इसे लेकर जनता आंदोलन रत है, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन कर विरोध जताया जा रहा है. इंधन गैस का तो और भी बुरा हाल है, करीब नौ सौ के पास पहुंचनेवाला है. सिर्फ दो महीने में ही गैस के दाम डेढ़ सौ रुपये से अधिक बढ़ गये. पता नहीं आगे क्या होनेवाला है. शायद गैस के दाम हजार पार कर जाये, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा. जनता इसे लेकर भी आंदोलित है. देश के हर कोने से आवाजें उठ रही हैं. लेकिन इस मुद्दे पर भी सरकार ने घूंघट ओढ़ लिया है और अपना चेहरा छुपा लिया है. अब आते हैं बेरोजगारी पर. जी हां, प्रति वर्ष दो करोड़ बेरोजगार देने का वादा कर चुनाव जीतनेवाली मोदी सरकार ने पिछले सात सालों में बरोजगारों की फौज ही बना डाली, जाहिर है कि यह एक चुनावी जुमला ही था. आज बेरोजगारी की महामारी पूरे देश में फैली हुई है. सरकार इसको लेकर कत्तई गंभीर नहीं है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सिर्फ सरकारी नौकरियों के 28 लाख पद खाली पड़े हैं. वो भी स्वीकृत पद. मीडिया रिपोर्ट की माने, तो करीब इतने ही पद और भी सृजित किये जा सकते हैं, जिसकी जरूरत है, ताकी सरकारी काम-काज सुचारू रूप से चल सके. निजी क्षेत्रों की तो बात ही छोड़ दें. वहां कितने पद खाली हैं, इसका कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. कहा जा सकता है कि वहां भी लाखों पद रिक्त होंगे. लेकिन पूंजीपति परस्त सरकार शायद ही इसका जवाब दे. जाहिर है देश में मुक्कमल रोजगार नीति नहीं होने के कारण देश के करोड़ों युवा बेरोजगार हैं. और ये युवा भी आंदोलन रत हैं, कभी थाली बजा कर मोदी सरकार का विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, तो कहीं धरना-जुलूस निकाल कर. इतना ही नहीं जब सरकार इसे भी अनदेखा किया, तो मोदी रोजगार दो हैसटैग भी चलाया, जिसमें साठ लाख से भी अधिक युवाओं ने साथ दिया. पर इस पर भी सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. मानो सरकार ने घूंघट ओढ़ लिया हो और अपना चेहरा छुपा लिया हो. सरकार देश के बेरोजगारी पर बात नहीं करती, लेकिन गृह मंत्री अमित साह पांडीचेरी में जा कर सवाल उठाते हैं, वहां चार में तीन युवा बेरोजगार है. वहां चुनाव जो हैं. यानी फिर जुमले क राजनीति,अब इसे आप क्या कहेंगे. जाहिर है सरकार देश की हर ज्वलंत समस्या पर घूंघट ओढ़ कर बैठ गयी. जी हां, गांव को वो दूल्हन जो घूंघट काढ़ कर बैठी तो रहती है, लेकिन बोलती कुछ नहीं है. देश की केंद्र सरकार ने भी कुछ वैसा ही कर लिया है. किसान दहाड़ रहे हैं, कोई सुनवाई नहीं, पेट्रोल, डीजल और गैस के बढ़ते दाम से जनता चिल्ला रही है, कोई राहत की बात नहीं, बेरोजगार युवा खून के आंसू लिये घूम रहे हैं, कोई सुनवाई नहीं. सरकार घूंघट काढ़े बैठी है. लेकिन साहब सात साल पुरानी दुल्हन तो महीने-छह महीने में ही घूंघटच हटा देती है, पता नहीं ये सरकार अपना घूंघट कब हटायेगी. वैसे सरकार पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है, मस्त है और जनता त्रस्त है. जय श्रीराम.—–लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
column-क्या सरकार ने घूंघट ओढ़ लिया है, वरिष्ठ पत्रकार विनोद कुमार शरण की नजरिये से जानिये सरकारों का खेल
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