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Jharkhand-State-Co-operative-Bank : 100 करोड़ का सॉफ्टवेयर घोटाला, तिजोरी साफ, सहकारिया अध्ययन मंडल के अध्यक्ष ने की जांच की मांग

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जमशेदपुर : झारखंड स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक, रिजर्व बैंक तथा नाबार्ड के अधिकारियों की मिलीभगत से बैंक के अधिकारी बैंक को बेरहमी से लूटे जाने का मामला प्रकाश में आया है. जानकारी के अनुसार बैंक के ऑडिटर ने वर्ष 2019-20 के ऑडिट रिपोर्ट के प्रारम्भ में ही लिख दिया है कि बैंक का एसेट और लाइबिलिटी केवल कागज पर है, तिजोरी साफ है. बैंक के पास डाटा सेन्टर खोलने योग्य भवन नहीं है, न ही कोई जरुरत है. बैंक का मुख्यालय मिट्टी के गारे की जुड़ाई पर खड़ा है. इस भवन में डाटा सेन्टर के नाम पर एक सॉफ्टवेयर कम्पनी को 9 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान दो वर्षों में कर दिया है. 3 करोड़ 76 लाख का भुगतान तो 12 मार्च 2020 को एक निदेशक के लिखित तथा बैंक अध्यक्ष के टेलीफोनिक आदेश पर महाप्रबंधक ने कर दिया. बाजार में चार से पांच हजार रुपये में बिकने वाली पॉश मशीन 20 से 25 हजार रुपये में बिना जरूरत खरीदी गयी. 7 हजार पॉश मशीनों की खरीद में 15 करोड़ से अधिक का भुगतान कर दिया गया। ये सभी मशीने 2जी हैं, जो कि पांच वर्ष पहले ही आउटडेटेड हो गयी है, अब तो 4जी भी पुराना पड़ने लगा है. अब ये सारी मशीने झारखण्ड स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक की शाखाओं में सड़ रही है. बाजार में होलसेल में तीन सौ तथा रिटेल में 450 में मिलने वाला बायोमैट्रिक मशीनों की खरीद 1250 रुपये में भारी संख्या में की गयी और ये मशीन सड़ रही है. (नीचे भी पढ़ें)

एक दूसरी सॉफ्टवेयर कम्पनी से ऑटोमेटिक चेक क्लियरिंग के नाम पर डूब-उतरा रहे यश बैंक से टाई अप करने के नाम पर 68 लाख का अग्रीम भुगतान कर दिया गया, जिसकी कोई आवश्यकता बैंक को नहीं थी. ऑटोमेटिक ए.टी.एम. रिकन्सिलिएशन सॉफ्टवेयर खरीदने के नाम पर सॉफ्टवेयर कम्पनी को 90 लाख रुपये का अग्रीम भुगतान कर दिया गया. आज तक यह काम पूरा नहीं हुआ. बैंक में बिना जरूरत केवल कमीशनखोरी के लिए बड़ी संख्या में माइक्रो ए.टी.एम. की खरीद पर कई करोड़ रुपये खर्च कर दिया, जो अब कबाड़ बन गया है. बैंक के अधिकांश ए.टी.एम. खराब पड़े हैं या काम नहीं कर रहे हैं, जबकि ए.टी.एम. के ए.एम.सी. के नाम पर रखरखाव व संचालन के लिए सॉफ्टवेयर कम्पनी को भारी राशि का भुगतान हर वर्ष किया जा रहा है. कम्प्युटर सॉफ्टवेयर घोटाला की राशि सौ करोड़ से ऊपर पहुंच गयी है. सरकार, सहकारिता विभाग रिजर्व बैंक, नाबार्ड, लाचार हैं या बैंक के लुटेरों के मददगार, यह बैंक के ग्राहकों को समझ में नहीं आ रहा है. सहकारिता अध्ययन मंडल के अध्यक्ष तथा बैंक के निर्वाचित डेलीगेट बिजय कुमार सिंह ने इस पूरे घोटाले की जानकारी भारत सरकार के वित्तमंत्री को देते हुए बैंक डूबने की विधिवत घोषणा से पहले इस बैंक को बचाने तथा रिजर्व बैंक, नाबार्ड, सहकारिता विभाग तथा बैंक प्रबंधन की मिलीभगत की जांच की मांग की है.

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