जमशेदपुर : झारखंड में शिक्षा जगत के लिए शनिवार का दिन मातम भरा रहा। इस दिन राज्य के शिक्षा जगत की दो बड़ी हस्तियां दुनियां को अलविदा कह गयीं। रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ शीन अख्तर का निधन हो गया। वहीं लंबी बीमारी के बाद कोल्हान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ आरपीपी सिंह का निधन हो गया। डॉ सिंह कोल्हान विश्वविद्यालय के तृतीय कुलपति रहे थे। वह आईएसएम पुंदाग के एकेडमिक काउंसिल मेम्बर होने के साथ ही कई महत्वपूर्ण संस्थानों से जुड़े थे। वह एक अच्छे अर्थशास्त्री थे। (नीचे भी पढ़ें)
कोल्हान विश्वविद्यालय में शोक
कोल्हान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो (डॉ) आरपीपी सिंह के निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने घर शोक जताया है। विश्वविद्यालय की ओर से जारी शोक संदेश में कहागया है कि कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए उनका विश्वविद्यालय के विकास में विशेष योगदान रहा है। विविध सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों में प्रतिष्ठित पदों पर रहते हुए उन्होंने सामाजिक एकता और सौहार्द के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। कोल्हान विश्वविद्यालय एवं झारखंड के लिए यह अपूरणीय क्षति है। शोक सन्तप्त एवं मर्माहत विश्वविद्यालय परिवार उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ उनकी आत्मा की सद्गति हेतु ईश्वर से प्रार्थना करता है। (नीचे भी पढ़ें)
आईएसएम पुंदाग ने जताया शोक
रांची स्थित आईएसएम पुंदाग के निदेशक डॉ गंगा प्रसाद सिंह ने प्रो आरपीपी सिंह के निधन पर पूरे संस्थान परिवार की ओर से गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि डॉ आरपीपी सिंह बहुत ही सरल और सहज व्यक्ति थे। ऊंचे पद पर रहते हुए भी वह जमीन से जुड़े रहे। उनका निधन झारखंड में शिक्षा जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। डॉ गंगा प्रसाद सिंह ने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति एवं दुख की इस घड़ी में शोक संतप्त परिवार को सहनशक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है। (नीचे भी पढ़ें)
राजेश शुक्ल ने शोक जताया
झारखंड स्टेट बार कौंसिल के वाईस चेयरमैन राजेश कुमार शुक्ल ने कोल्हान विश्वद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ प्रोफेसर आर पी पी सिंह और रांची यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति डॉ प्रोफेसर शीन अख्तर के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है तथा इन दोनों शिक्षाविदों के निधन को झारखंड शिक्षा जगत के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है। श्री शुक्ल ने अपने शोक संदेश में कहा है कि कोल्हान विश्वद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ आर पी पी सिंह के साथ विश्वद्यालय के सिंडिकेट सदस्य के रूप मे उन्हें काम करने का अवसर मिला था। वे बराबर विश्वविद्यालय की प्रगति के लिए उनसे नियमित परामर्श करते थे यहा तक कि कानूनी राय भी लेते थे। उनके निधन से एक अच्छा शिक्षविद हमसे अलग हो गया है।