चाकुलिया : कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा की है. लॉक डाउन होने से झारखंड और सीमा से सटे बंगाल के सबरों का भी बुरा हाल है. झारखंड और बंगाल के सबर पूर्ण रूप से जंगल पर आश्रित हैं. लाक डाउन ने उनके रोजगार पर भी ताला लटका दिया है. झारखंड सीमा से सटे बंगाल के कोसाफलिया गांव निवासी बंकिम सबर अपने कंधे पर लकड़ी का बोझ उठाये झारखंड के कानिमहुली गांव पहुंचकर लकड़ी बेचने पहुंचा था. बंकिम सबर ने बताया कि लाक डाउन होने से उन्हें रोजगार नही मिल पा रहा है.
उन्होंने बताया कि वह लकड़ी बेचने के लिए घंटों से कंधा पर लकड़ी का बोझ उठाये बंगाल से झारखंड सीमा के गांव पहुंचे हैं, ताकि लकड़ी बिक जाये. बंकिम सबर ने कहा कि सरकार से चावल तो मिल रहा है, परंतु तेल और नमक समेत अन्य जरूरत की सामग्री कहां से मिलेगी. अपनी जरूरत को पूर्ण करने के लिए दिनभर जंगल में घूमकर सूखी लकड़ी ढूंढ़ कर काटकर बोझा बनाते हैं और गांव-गांव, टोला-टोला में घूम-घूमकर लकड़ी बेचकर अपनी जरूरत की सामग्री खरीद करते हैं. बंकिम सबर ने कहा कि लाक डाउन ने सबर परिवारों के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न कर दी है. सबर परिवार जीवन यापन करने के लिए रोजाना संघर्ष कर रहे हैं.