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एमजीएम अस्पताल में बच्ची की मौत के मामले में मानवाधिकार आयोग ने दर्ज किया केस, प्रबंधन के खिलाफ शुरू होगी जांच

राशिफल

मामले की जांच करने पहुंचे जेएचआरसी के पदाधिकारी.

जमशेदपुर : एमजीएम अस्पताल में कुपोषण एवं खून की कमी के कारण आठ माह की नवजात बच्ची उषा रानी महाली की मौत के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केस दर्ज कर लिया है. यह जानकारी आयोग के सह सचिव ने झारखण्ड हयूमन् राईट्स कॉन्फ्रेन्स के केन्द्रीय अध्यक्ष मनोज मिश्र को मोबाइल पर दी है. आयोग द्वारा दर्ज मामले का केस संख्या 1014/34/6/2019 है, जिसे आयोग के वेबसाइट के स्टेट्स पर भी देखा जा सकता है. अब जल्द ही मामले मे आयोग की उच्चस्तरीय टीम जांच शुरू करेगी. 21 अगस्त 2019 को आदिवासी जनजाति से जुड़ी पटमदा के बोड़ाम थाना स्थित पोटकाडीह गांव के गोपीनाथ महाली एवं सस्ताबाला महाली की आठ माह की नवजात बच्ची उषा रानी महाली की मृत्यु कुपोषण एवं खून की कमी के कारण उस अवस्था मे हो गयी थी, जब उन्हे टेल्को के खंड़गाझार स्थित कुपोषण उपचार केन्द्र से रक्त की कमी के कारण एमजीएम अस्पताल रेफर किया गया था. खून चढ़ाने के क्रम मे एमजीएम अस्पताल में नवजात की दर्दनाक मौत हो गयी थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इसे अत्यंत गंभीरता से लिया है. पूरे मामले की जांच को लेकर मनोज मिश्र ने जेएचआरसी स्तर पर एक टीम का गठन किया था, जिसकी जांच रिपोर्ट आयोग को भेजी गयी है. जांच मे जेएचआरसी ने पाया कि मृतक बच्ची उषा रानी महाली की माता सस्ताबाला महाली को पटमदा स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र से ही गर्भवती अवस्था के दौरान ही सही मात्र मे पोषण आहार प्रदान नही किए गए हैं. इतना ही नही, लागातार आंगनबाड़ी केन्द्र एवं साहिया के संपर्क व चिकित्सकीय जांच मे रहते हुए भी बच्चे का जन्म अस्पताल के बजाय घर में हुआ, जो अत्यंत गंभीर एवं जानलेवा साबित हो सकता था. आंगनबाड़ी केन्द्र पोटकाडीह के सेविका गुलाबी महतो ने जेएचआरसी की टीम को बताया कि पोषण आहार नियमित उपलब्ध नही होता है. उन्होने बताया कि बच्ची का जन्म 9 नवम्बर 2018 को हुआ था, जिसका वजन 2.5 किलोग्राम था, जो अप्रैल 2019 तक बढ़ते क्रम मे 5 किलोग्राम तक पहुंचा. बाद मे मई 2019 से बच्ची का वजन लागातार घटने लगा तथा बुखार रहने लगा. वह कुपोषण की श्रेणी मे पहुंच गयी. बच्ची के माता-पिता के अनुसार लागातार तीन माह तक वजन के घटते रहने व बुखार के बने रहने के बावजूद आंगनबाड़ी सेविका एवं साहिया द्वारा कोई सहयोग प्रदान नही किया गया. बच्ची की माता-पिता ने प्राइवेट चिकित्सकों से बच्ची का इलाज कराया, जो असफल साबित हुआ. लगातार बुखार रहने एवं वजन के घटते क्रम को देखते हुए आंगनबाड़ी सेविका ने अंतत: 13 अगस्त 2019 को बच्ची को जमशेदपुर स्थित खंड़गाझार स्थित कुपोषण उपचार केन्द्र मे को भर्ती करा दिया गया. केन्द्र के प्रोजेक्ट ऑफिसर ए भट्टाचार्य ने बताया कि बच्ची एवं उनकी माता को पौष्टिक आहार के साथ तुरंत प्रभाव से उपचार भी आरंभ कर दिया गया. भर्ती के समय बच्ची का वजन 5 किलोग्राम था. उपचार के क्रम मे जानकारी मिली की बच्ची को खून की बेहद कमी है, जिस कारण 2019 अगस्त को एमजीएम अस्पताल भेजा गया, जहां रक्त चढ़ाने के क्रम मे बच्ची की मौत हो गयी. एमजीएम अस्पताल मे लागातार दो दिनों तक माता एवं बच्ची को कोई पौष्टिक आहार तक नही दिया गया, जो कुपोषण उपचार केन्द्र मे प्रदान किया जाने वाला डायट चार्ट भी मेंटेने नही किया गया. बच्चे को जेनरल बेड मे रखा गया. संभवत: रक्त चढ़ाने मे चिकित्सकीय मानको का ध्यान भी नही रखा गया होगा. मनोज मिश्र ने आयोग को पूरे मामले की रिपोर्ट भेजते हुए उच्चस्तरीय जॉच की मांग की है. मामले की जानकारी मुख्यमंत्री जनसंवाद को भी भेजी गई है. जेएचआरसी की जॉच टीम मे मनोज मिश्र के साथ अधिवक्ता सलावत महतो, रेणु सिंह, ऋषि गुप्ता एवं गुरमुख सिंह शामिल थे.

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