सरायकेला : सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड क्षेत्र के महेशकुदर आंगनबाड़ी केंद्र का मामला एक बार फिर तूल पकड़ता नजर आ रहा है. बता दें कि विगत 12 वर्षों से आंगनबाड़ी सेविका शेफाली मुर्मू और ग्रामीणों के बीच चल रहा विवाद अभी तक नहीं सुलझा है. गुरुवार को आंगनबाड़ी केंद्र दोबारा खोलने को लेकर महिला एवं बाल विकास पदाधिकारी सुप्रिया शर्मा की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें बीडीओ डांगुर कोड़ाह, पद्मश्री छुटनी महतो, थाना प्रभारी चंदन कुमार, तुमुंग पंचायत की मुखिया सुनीति मुर्मू, बीससूत्री समिति सदस्य नीबू प्रधान व जनप्रतिनिधि, ग्रामप्रधान एवं महेशकुदर के ग्रामीण उपस्थित थे. 12 वर्षों से बंद पड़े महेशकुदर आंगनबाड़ी केंद्र को सेविका शेफाली मुर्मू द्वारा दोबारा संचालित करने को लेकर अधिकारियों ने ग्रामीणों से बात की, लेकिन ग्रामीणों ने शेफाली मुर्मू के द्वारा आंगनबाड़ी केंद्र संचालन का विरोध किया. अधिकारियों द्वारा काफी समझाये जाने के बाद भी ग्रामीण कुछ सुनने को तैयार नहीं हुए. ग्रामीणों ने दो टूक कहा कि शेफाली मुर्मू को किसी हाल में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित नहीं करने देंगे. यदि इस केन्द्र को संचालित करने का आदेश है तो शेफाली की जगह किसी दूसरे को आंगनबाड़ी सेविका चुना जाय. वे नयी सेविका के चयन के बाद ही आंगनबाड़ी केंद्र खोलने पर सहमति देंगे. ग्रामीण शेफाली मुर्मू को आंगनबाड़ी केंद्र संचालित नहीं करने देने पर अड़े रहे. (नीचे भी पढ़ें)
उधर सेविका शेफाली मुर्मू ने बैठक के दौरान 12 वर्ष पहले अपने साथ हुई ज्यादती की आपबीती सुनाते हुए कहा कि 12 वर्ष पूर्व ग्रामीणों ने उन्हें डायन बताकर गांव से खदेड़ दिया था. यहां तक कि उनका घर भी तोड़ दिया गया और उन्हें डायन बता कर उन्हें पूरे परिवार के साथ प्रताड़ित किया गया एवं उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया. उन्होंने बताया कि इस संबंध में प्राथमिकी भी दर्ज हुई थी जिस मामले में उन्हें कोर्ट से डिग्री मिल गई है और आंगनबाड़ी केंद्र को खोलने का आदेश भी मिला है, परंतु आज भी ग्रामीण उनका विरोध कर रहे हैं.(नीचे भी पढ़ें)
पद्मश्री छुटनी महतो ने पत्रकारों को बताया कि शेफाली मुर्मू का उनके पास आवेदन आया था, जिसमें ग्रामीणों द्वारा डायन के नाम पर उन्हें प्रताड़ित किये जाने की बात कही गई थी. इसके आलोक में उन्हें वहां आना पड़ा. उन्होंने कहा कि शेफाली एवं ग्रामीणों के बीच विवाद इतना गहरा गया है कि पाटना मुश्किल है. अभी भी ग्रामीण शेफाली मुर्मू का विरोध करते नजर आये. ऐसे में शेफाली मुर्मू को जान का भी खतरा है. वहीं उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि ग्रामीण चाहते हैं कि अन्य सेविका का चुनाव हो, लेकिन जब तक शेफाली मुर्मू की सहमति नहीं होगी, शेफाली मुर्मू के हस्ताक्षर के बिना किसी और का आंगनबाड़ी सेविका चुना जाना असंभव है. कुल मिलाकर बैठक में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाया और पदाधिकारियों को बैरंग लौटना पड़ा. उधर 12 वर्षों से आंगनबाड़ी बंद रहने से महेशकुदर गांव की गर्भवती, धात्री माता और बच्चे कई सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं.