मुक्तिक्षेत्र (नेपाल) : अयोध्या में भगवान श्रीराम का निर्माणाधीन मंदिर तो कई कारणों से अपने आप में लोगों के बीच चर्चा का कारण है ही, उसके गर्भगृह में भगवान श्रीराम एवं माता जानकी की प्रतिमाएं भी उतनी ही खास होंगी, क्योंकि ये मूर्तियां नेपाल की गंडकी नदी से मिले विशेष पत्थरों को तराश कर बनाया जायेगा, जिन्हें शालिग्राम के नाम से जाना जाता है. गंडकी नदी, जिसे नेपाल के लोग नारायणी के नाम से भी जानते हैं, वहां के मुक्तिनाथ इलाके से दो बड़ी शिलाएं मूर्ति निर्माण के लिए अयोध्या भेजी गयी हैं. बताते चलें कि शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु का प्रतिरूप भी माना जाता है. (नीचे भी पढ़ें)
अयोध्या में भगवान श्री राम एवं माता जानकी की प्रतिमाएं इन्हीं शालिग्राम शिलाओं से निर्मित की जानी हैं तथा उनके अगले वर्ष जनवरी में मकरसंक्रांति तक बन कर तैयार होने की उम्मीद जतायी जा रही है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार माता सीता नेपाल नरेश राजा जनक की पुत्री थीं, जिनका विवाह भगवान श्रीराम के साथ हुआ. प्रति वर्ष चैत्र मास में भारत में जह भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव रामनवमी के रूप में मनायी जाती है, उससे चार दिन पूर्व, चैत्र शुक्ल पंचमी तिथि को श्रीराम एवं माता सीता के विवाह का जश्न मनाया जाता है. (नीचे भी पढ़ें)
ऐसी बनेगी भगवान श्रीराम की मूर्ति
श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि भगवान श्रीराम की प्रतिमा तैयार करने के लिए देश के तीन मशहूर मूर्ति शिल्पियों का दल काम कर रहा है. इसके लिए भगवान श्रीराम की खड़ी मुद्रा के कई छोटे मॉडल मंगाये जा चुके हैं, मंदिर ट्रस्ट को उनमें से किसी एक का चयन करना है. उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम की प्रतिमा साढ़े पांच फीट ऊंची होगी, जिसके नीचे लगभग तीन फीट ऊंचा स्टैंड होगा. मंदिर ट्रस्ट के लोग खगोलशास्त्रियों से ऐसी व्यवस्था कराने में जुटे हैं जिससे रामनवमी के दिन दोपहर में ऐन जन्म-काल में भगवान श्रीराम के ललाट पर सूर्य की किरणें पड़ कर उसे प्रकाशमान कर सकें. (नीचे भी पढ़ें)
हिंदुओं में शालिग्राम पत्थर की है बहुत मान्यता
बता दें कि हिंदू धर्म में शालिग्राम पत्थर बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. यह जीवाश्म पत्थर नेपालके मुक्तिनाथ, काली गंडकी नदी के किनारे मिलता है. बताते हैं कि शालिग्राम पत्थर 33 प्रकार के होते हैं, जिनमें से 24 प्रकार भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जुड़े माने जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शालिग्राम पत्थर हो, उस घर में सुख-शांति और आपसी प्रेम बना रहता है. इसके साथ ही माता लक्ष्मी की कृपा भी उस घर पर बनी रहती है. माना जाता है माता लक्ष्मी शालिग्राम पत्थर की ओर सहज ही आकर्षित होती हैं.(नीचे भी पढ़ें)
मान्यताओं के अनुसार 33 प्रकार के शालिग्राम पत्थरों में 24 प्रकार भगवान विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित हैं और ये साल की 24 एकादशियों से भी जोड़े जाते हैं. पुराणों के अनुसार शिवलिंग एवं शालिग्राम की भगवान विष्णु एवं भगवान शिव के विग्रह के रूप में पूजा होती है. हिंदू धर्म में आज मूर्ति पूजा भले होती हो, किन्तु मूर्ति पूजा से पूर्व भगवान ब्रह्मा की शंख, भगवान विष्णु की शालिग्राम एवं भगवान शिव की शिवलिंग के रूप में ही पूजा होती रही थी.(नीचे भी पढ़ें)
क्या है शालिग्राम की पौराणिक कथा
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विग्रह, अनंत एवं निराकार स्वरूप को शालिग्राम मना गया है. जिस प्रकार भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है उसी प्रकार भगवान विष्णु की शालिग्राम के रूप में पूजा की जाती है. पद्म पुराण में श्री विष्णु के शालिग्राम रूप की चर्चा आयी है. पुराणों में कथा आती है कि भगवान विष्णु की वृंदा नाम की एक भक्त थी, जिसका विवाह जलंधर नाम के राक्षस के साथ हुई थी. जलंधर भगवान शिव के अंश से उत्पन्न माना जाता है, किन्तु राक्षस वंश का होने के कारण वह देवताओं का विरोधी हो गया था एवं देव लोक पर कब्दा कर देवताओं को बहुत पीड़ित कर रहा था. यही नहीं, एक बार उसने अपने अहंकार में चूर होकर माता पार्वती को ही अपनी पत्नी बनाने का हठ ठान बैठा और इसके लिए उसने कैलाश पर्वत पर धावा बोल दिया. वृंदा जानती थी कि वह भगवान शिव से जीत नहीं पायेगा. इसलिए वह अपने पातिव्रत के बल पर यह संकल्प लेकर तपस्या करने लगी कि जलंधर जब तक युद्ध जीत कर नहीं लौटते तब तक वह अटल रह कर व्रत जारी रहेगी. उसके पातिव्रत के कारण देवताओं के लिए जलंधर को हराना मुश्किल हो गया. ऐसे में भगवान विष्णु जलंधर का रूप लेकर वृंदा के पास पहुंच गये. बताया जाता है कि वृंदा ने अपने पति को लौटा देखा और उसने पूजा से उठ कर उनके पैर छू लिये. लेकिन इससे उसका संकल्प टूट गय़ा और जलंधर युद्ध में मारा गया. देवताओं ने जलंधर का सिर काट कर वृंदा के पास पहुंचा दिया. वृंदा पति जलंधर का कटा सिर और भगवान विष्णु को पति के रूप में देख कर बहुत क्रोधित हुई. भगवान विष्णु भी अपराधी के रूप में वृंदा के समक्ष अपने वास्तविक रूप में खड़े रहे. क्रोध में वृंदा ने उन्हें पत्थर का हो जाने का शाप दे दिया. उसके शाप के कारण भगवान विष्णु काले पत्थर में तब्दील हो गये. उधर भगवान विष्णु के पत्थर बनते ही पूरे विश्व में हाहाकार मच गया. व्याकुल होकर भगवान शिव सहित सारे देवी-देवताओं ने देवी वृंदा के पास पहुंच कर शाप वापस लेने की विनती की. इसके बाद वृंदा ने शाप वापस ले लिया एवं खुद को अग्नि को समर्पित कर भस्म हो गयी. उसी भस्म से देवी वृंदा तुलसी के रूप में प्रकट हुईं. भगवान विष्णु ने कहा कि आज से मेरा एक रूप शालिग्राम भी होगा एवं देवी वृंदा तुलसी रूप में मेरे माथे पर सुशोभित होंगी. इसीलिए शालिग्राम को भगवान विष्णु का साक्षात रूप माना जाता है. बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने देवी वृंदा को वरदान दिया कि तुम धरती पर हमेशा गंडकी नदी के रूप में बहती रहोगी और तुम्हारा एक नाम नारायणी भी होगा. तुम्हारी जल धारा में ही मैं शालिग्राम के रूप में निवास करूंगा और तुम सदैव मेरी प्रिय रहोगी. भगवान विष्णु के इस वरदान के कारण गंडकी नदी से ही शालिग्राम पत्थर प्राप्त होते हैं.