जमशेदपुरः एक आश्रम में गुरू शिष्य रहा करते थे. गुरू अपनी कुटिया में गाय रखा करते थे. नित्य सुबह उठकर वे अपना कार्य करते थे और तपस्या के लिए बैठ जाते थे. शिष्य भी प्रातः उठकर गाय की सफाई करता और गुरू जी के साथ भिक्षा मांगने चल देते थे. भिक्षा में जो भी उन्हें मिलता, वे उसे खा लेते थे. एक दिन गुरू जी ने अपने शिष्य की परीक्षा लेनी चाहि. सुबह उठकर नित्य कर्म करने के बाद गुरू जी ने शिष्य से कहा चलो आज गरीबों की झोपड़ी में चलते है और भिक्षा मांगते है. वे दोनो भिक्षा मांगने के लिए निकल गये. उन्होंने भिक्षा मांगनी शुरू की. भिक्षा में उन्हें सुखा भूजा दिया गया. भूजा देख शिष्य बोला भला ये भी कोई खाने की चीज है,सुखा भूजा कोई कैसे खा सकता है. शिष्य का मन जलेबी खाने का था, पर उसे जलेबी तो दूर की बात मिट्ठे में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ. उसने गुरू जी से कहा, आज मुझे जलेबी खाने का मन कर रहा है. गुरू जी ने उत्तर दिया चिन्ता मत करों शिष्य जल्द ही भूजा जलेबी में बदल जाएगा. शिष्य ने पूछा, वो कैसे गुरू देव. गुरू देव ने कहा सब्र करों शिष्य सब पता चल जाएगा. बड़ी निष्ठा से शिष्य यह सोचकर अपनी कुटिया में जानें लगा की भूजा जलेबी बन जाएगी. उसने सोचा गुरू जी जप तप करके भूजा में तब्दील कर जलेबी बना देंगे. एक बार की बात है जब गुरू जी विदेशी व्यक्ति के पेट दर्द को पल भर में अपनी विद्या शक्ति से ठीक कर दिया था. उसी तरह आज भी कुछ चमकार करेंगे. गुरू ने अपने शिष्य से बोला, प्लेट में भूजें को परोस कर मेरे सामने रख दे और दो घंटा के बाद बदलाव देखना. शिष्य ने ठीक वैसा ही किया. दो घंटे में उसने गायों को चारा दे डाला, कुटिया की साफ-सफाई कर डाली और समय कैसे बितता गया, उसे पता भी नहीं चला. दो घंटे पार हो गये, किन्तु अब भी गुरू जी तपस्या में लिंन थे. जब उन्होंने अपनी आंखे खोली तो शिष्य उनके बगल में बैठा हुआ था. गुरू जी ने बोला थाल से कपड़ा हटा दो. शिष्य ने गुरू की आज्ञा का पालन करते हुए थाल से कपड़ा हटाया, तो देखा थाल में भूजा ही है. भूजा देख कर उसका भुख और बढ़ता गया. गुरू जी ने कहां लगता है मैंने गलत मंत्रो की तपस्या कर दिया है, और पांच थोड़ी देर रूक जाओं. शिष्य पहले से ही काफी भुखा था और भुख बर्दाश करने की उसकी क्षमता नहीं थी. उसने गुरू जी से कहा, अब और सब्र नहीं हो सकती है मुझसे. उसने भूजा का थाल उठाया गुरू जी को पहले परोसा फिर उसने स्वमं खाना शुरू कर दिया. तभी उसने गुरू जी से कहा की इन सुखे भूजों का स्वाद सच में जलेबी जैसा ही लग रहा है. तब गुरू देव ने कहा की हम साधवी लोग है हम भोजन में विभिन्न प्रकार के आवश्यकता नहीं होती, रूखा सुखा खाकर ही जीवन गुजारना पड़ता है.
Story- गुरू और शिष्य के बीच का तालमेल,भूजा जलेबी में तब्दील
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