टाटा स्टील : एमडी की खासियत, अपने वीपी के फैसले के साथ रहते है, उसकी अनदेखी नहीं करते, सौ साल की पुरानी कंपनी से नवजात प्लांट से तुलना करना कितना जायज!

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टाटा स्टील

जमशेदपुर : टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन का वर्ककल्चर या वर्किंग स्टाइल काफी अलग है. पहले के एमडी के स्तर पर अगर यूनियन जाती थी तो वीपी एचआरएम के फैसलों को एमडी के स्तर पर बदल भी दिया जाता था, लेकिन एमडी अपने अधीनस्थ वीपी की अनदेखी नहीं करते है. वे उनके फैसलों के साथ ही रहते है और अगर कोई बदलाव भी करना होता है तो वे वीपी के पास ही वापस मामले को भेज देते है. ऐसा बोनस से लेकर हर वार्ता में यूनियन और मजदूर भी देख चुकी है. यहीं वजह है कि कोई बेहतर रास्ता नहीं निकल पा रहा है.
सौ साल की पुरानी कंपनी से नवजात प्लांट से करना कितना जायज!

टाटा स्टील में वेज रिवीजन समझौता की पेंच लग गयी है. मैनेजमेंट ने एक दलील दी है कि जमशेदपुर के प्लांट में प्रोडक्टविटी (उत्पादकता) काफी कम है. कलिंगानगर प्लांट हो या फिर अन्य सारे प्लांट की अपेक्षा जमशेदपुर के प्लांट में प्रोडक्टिविटी यानी कर्मचारियों द्वारा प्रति टन स्टील का उत्पादन करने की क्षमता कम है और खर्च काफी ज्यादा है. लेकिन यह भी नहीं भुला जाना चाहिए कि अभी तीन साल पुरानी अत्याधुनिक कलिंगानगर प्लांट की तुलना सौ से भी अधिक साल पुरानी टाटा स्टील के जमशेदपुर प्लांट से नहीं किया जाना चाहिए. यहां की मशीन भी पुरानी है और यहां की व्यवस्था भी पुरानी है, जिसमें बदलाव भी हुआ है और उत्पादकता साल दर साल बढ़ता गया है. आगे भी उत्पादकता बढ़ता ही जायेगी, लेकिन इसी जमशेदपुर प्लांट की बदौलत दुनिया में टाटा स्टील पहुंची है, जिसको नहीं भुलकर मजदूर हित और कंपनी हित, दोनों को देखकर फैसला लिया जाना चाहिए. वैसे अगर प्रोडक्टिविटी की बात है तो टाटा स्टील के जमशेदपुर प्लांट में वित्तीय वर्ष 2018-2019 में प्रोडक्टिविटी यानी उत्पादकता 748 टन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है जबकि टाटा स्टील के कलिंगानगर प्लांट में प्रोडक्टिविटी वित्तीय वर्ष 2018-2019 में 1054 टन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है. यह आंकड़ा जरुर जमशेदपुर प्लांट को पीछे बता रहा होगा, लेकिन मशीन से लेकर निवेश की बात की जाये या फिर प्लांट के साइज की बात की जाये तो टाटा स्टील का जमशेदपुर प्लांट मदर प्लांट है और यहां उतना निवेश नहीं हुआ, जितना कलिंगानगर में अभी हुआ है. निवेश के अलावा पुराने प्लांट की नये प्लांट से तुलना उसी तरह की बात होगी कि बेटा अपने पिता से बराबरी करने लगे. हालांकि, मैनेजमेंट और यूनियन को संयुक्त रुप से फैसला ऐसा लिया जाना चाहिए कि कंपनी भी बेहतर तरीके से चल सके और मजदूरों को भी आत्मसम्मान का बोध हो सके.

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