जमशेदपुर : टाटा स्टील के कर्मचारियों का वेज रिवीजन समझौता होने जा रहा है. वेज रिवीजन के चक्कर में कर्मचारियों का बोनस समझौता भी लंबित है. इसको लेकर कई दौर की वार्ता हो रही है. टाटा स्टील मैनेजमेंट और यूनियन के बीच करीब सौ साल पुराना रिश्ता है. सौ साल की टाटा वर्कर्स यूनियन भी हो चुकी है. इतनी परिपक्व मैनेजमेंट और यूनियन शायद ही देश में कहीं हो, लेकिन हाल के दिनों में यूनियन इतनी याचना यानी गिड़गिड़ाने की स्थिति में क्यों दिख रही है, यह सवाल जरूर मजदूरों के जेहन में आ रही होगी. ऐसा लिखना भी बुरा लग रहा है और पढ़ने वाले को भी बुरा लग रहा होगा, लेकिन यह हकीकत है. टाटा स्टील कंपनी को चलना चाहिए. जमशेदपुर ही नहीं बल्कि पूरे झारखंड के लिए कंपनी संजीवनी है. लेकिन कंपनी के सामने जो वर्तमान संकट है, उसको ध्यान में रखते हुए वेज रिवीजन जैसे संवेदनशील समझौता को आनन-फानन में सिर्फ मैनेजमेंट की हां में हां मिलाकर कर लेना बुद्धिमानी नहीं होगी. इस पूरे प्रकरण में ‘याचक’ की भूमिका में यूनियन दिख रही है. मैनेजमेंट के अधिकारी, वहीं कर रहे है, जो उनके जेहन में होती है. यूनियन की ओर से शायद ही अपने डिमांड को लेकर कोई आवाज उठायी जाती हो या कोई ऐक्शन लिया गया हो. मेडिकल एक्सटेंशन जैसे अहम चीज को बंद कराने वाले अध्यक्ष आर रवि प्रसाद कम से कम कंपनी को इतना बड़ा फायदा पहुंचाने के बदले मजदूरों का बेहतर वेज रिवीजन समझौता ही करा लेते और बोलते कि ‘एक हाथ से देने और लेने’ की परिपाटी के तहत मेडिकल एक्सटेंशन जब बंद किया गया तो वेज रिवीजन समझौता यूनियन यानी मजदूरों के हितकर फैसला लिया जाये. एक तो डीए जैसे इतने वर्षों पुरानी चीज के साथ बदलाव कर कर्मचारियों के अस्तित्व को ही समाप्त करने जैसा कदम उठाया जा रहा है जबकि आने वाले दिनों में कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ को सीमित कर देने के तहत कदम उठाये जा रहे है और यूनियन मूकदर्शक बन याचक की भूमिका में आखिर क्यों है. आखिर ऐसा क्या है, जो उनको मैनेजमेंट की ही हां में हां मिलाने को मजबूर कर दे रहा है. सात साल का अगर समझौता होने जा रहा है तो डीए को बदला नहीं जाना चाहिए. एक ही बार के समझौता में सबकुछ बदल देना और एकतरफा फैसला लिया जाना, शायद मजदूरों के लिए आने वाले भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. लेकिन हां, यूनियन और मैनेजमेंट के बीच वार्ता का रास्ता खुला रहना चाहिए, लेकिन यह वार्ता दो तरफा हो, एकतरफा होता रहेगा तो शायद मजदूरों में असंतोष बढ़ेगा, जिसको नियंत्रित कर पाना मैनेजमेंट या यूनियन के बस की बात नहीं रह जायेगी.