संतोष कुमार
वैश्विक महामारी के इस दौर ने जहां देश ही नहीं पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया. कोरोना महामारी ने दुनिभर में लाखों को लील लिया. लाखों को बेरोजगार कर दिया. वहीं भारत भी इससे अछूता नहीं रहा. यहां भी कोरोना काल की त्रासदी लाखों मजदूरों ने झेला. यहां भी लोगों ने मजदूरों के पलायन का वो मंजर देखा. तपती धूप में पैदल ही अपने वतन वापसी को विवश प्रवासी मजदूरों के करूण मंजर रोंगटे खड़े कर देनेवाले थे. केंद्र औऱ राज्य सरकारें विवश बस इसे नियती मान चुके थे. इन सबके बीच बिहार के भागलपुर के एक युवक ने कोरोना महामारी काल को अवसर में बदलने की ठानी और लिख दिया इतिहास. आज युवक द्वारा कोरोना महामारी काल के दौरान शुरू किया गया संघर्ष फलीभूत हो रहा है. वहीं युवक के संघर्ष की चर्चा भागलपुर ही नहीं बिहार के अन्य जिलों के साथ झारखंड में भी हो रही है. (नीचे भी पढ़ें)
चलिए अब आपको युवक का परिचय कराते हैं (नीचे भी पढ़ें)
बेहद ही साधारण सा दिखनेवाला यह युवक बिहार के भागलपुर जिले के सन्हौला प्रखंड के एक छोटे से गांव पोठिया का रहनेवाला है. जिसका नाम सुमित आनंद चौधरी है. लॉकडाउन से पहले सुुमित भागलपुर के एक निजी मोटर व्हीकल शोरूम में काम कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था. चार बीघा की पैतृक संपत्ति औऱ निजी कंपनी में नौकरी कर किसी तरह परिवार का गुजर बसर कर रहा था. सबकुछ ठीक- ठाक ही चल रहा था. अचान वैश्विक महामारी कोरोना ने देश में अपना जाल फैलाया और देश के बाकी राज्यों के मजदूरों की तरह सुमित को भी अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, और उसने भी वापिस अपने गांव का रूख किया. परिवार का बोझ और सीमित संसाधन के बीच उसे ये नहीं सूझ रहा था कि आखिर आगे की जिदगी कैसे कटेगी. सवर्ण जाति का होने के कारण उसे सरकारी सुविधाएं मिलनी तो दूर उसे किसी प्रकार का कोई आर्थिक सहयोग भी नहीं मिल रहा था. (नीचे भी पढ़ें)
संयुक्त परिवार के कारण बदली किस्मत (नीचे भी पढ़ें)
बतौर सुमित उसके पिता एक किसान हैं, चार बीघा पैतृक संपत्ति में उसके बड़े पिताजी की भी हिस्सेदारी बनती है, लेकिन वे चुंकि सरकारी नौकरी करते थे औऱ उसके दो चचेरे भाई भी बाहर ही सेटल हैं, लेकिन हमेशा से परिवार के हर सुख- दुःख में खड़ा होने के साथ आर्थिक मदद भी किया करते हैं. सेवानिवृत हो चुके बड़े पिताजी के कहने पर बड़े भैया (चचेरे भाई) ने दो बीघा जमीन गांव में ही खरीदा. सुमित ने बताया कि वह नहीं चाहता था कि भैया भी पारंपरिक खेती करें. ऐसे में उसने अपने चचेरे भाई को सवा बीघा जमीन पर तालाब खुदवाकर मछली पालन करने की सलाह दी. लक्ष्य बड़ा था, पूंजी का अभाव, लेकिन बड़े भाई ने हामी भर दी. फिर क्या था सुमिन ने कोरोना महामारी के भीषण दौर यानी अप्रैल- मई के महीने में प्रचंड गर्मी औऱ कोरोना के कहर के बीच तालाब खुदाई में जुट गया और एक महीने के भीतर सवा बीघा के खेत में तालाब खुदवा कर मछली पालन के शुरू कर दिया. औऱ देखते ही देखते सुमित के इस धंधे ने आज पारंपरिक खेती करनेवाले किसानों के सामने एक नजीर पेश कर दी. आज सुमित द्वारा पाले गए सीलन मछली लगभग एक से सवा टन के आसपास हो चुके हैं, जिसका उत्पादन शुरू हो चुका है. सुमित के अनुसार लागत से तीन गुणा मुनाफा होने का अनुमान है. (नीचे भी पढ़ें)
पूंजी बन रही था बाधा, इसलिए कम बजट के साथ शुरू किया कारोबार (नीचे भी पढ़ें)
सुमित ने बताया कि तालाब खुदाई के बाद बोरिंग और अन्य जरूरी तैयारी में भैया के काफी पैसे लग गए. तालाब काफी बड़ा खुद गया उसमें काफी बड़े मात्रा में मछली पालन किया जा सकता है, लेकिन पूंजी के अभाव में केवल साढ़े दस हजार पीस (सीलन) पगास मछली का ही चारा डाल सके. साथ में देसी नस्ल (रेहू, बी ग्रेड औऱ कतला) का चार भी कम मात्रा में डाले. सुमित ने बताया कि बड़े भैया की माली हालत को देखते हुए छोटे मोटे खर्च के लिए तालाब के बांध पर भिंडी की खेती की जिससे अच्छी खासी आमदनी हुई उससे छोटी मोटी जरूरते पूरी की गई. उसने बताया कि मछली के भोजन के रूप में हर दिन सात हजार खर्च आ रहे थे, जो छोटे किसानों के लिए ही नहीं बड़े- बड़े किसानों को भी सोचने पर विवश कर देगा. उसने बड़े भाई के जज्बे की सराहना करते हुए कहा कि वे मेरे आदर्श हैं, उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया मुझे सफल बनाने में. सुमित के अनुसार देसी नस्ल की मचलिया फरवरी मार्च से निकलनी शुरू हो जाएंगी उसके बाद अगले सीजन में सीलन मछली का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाएगा. (नीचे भी पढ़ें)
ग्रामीणों का भी मिला भरपूर सहयोग (नीचे भी पढ़ें)
सुमित ने बताया कि गांव में पहली बार पारंपरिक खेती का ट्रेंड शुरू किया जा रहा था, उसे लगा कि इतना बड़ा रिस्क लेने पर कहीं दांव उल्टा न पड़ जाए, लेकिन ग्रामीणों ने उसे हर कदम पर साथ दिया. रात- रात बर जगकर ग्रामीणों के साथ इस व्यवसाय को लेकर चर्चा करता था. ग्रामीण युवा उसे उत्साहित करते थे. उसके इस व्यवसाय से प्रभावित होकर दो चार औऱ युवा इस व्यवसाय में किस्मत आजमा रहे हैं. तीन- तीन छोटे- छोटे तालाब आज गांव में खुद चुके हैं और उसमें मछली पालन हो रहा है. सबसे बड़ी खुशी वैसे किसानों को हो रही है, जो सिंचाई के अभाव में खेती नहीं कर पाते थे. गांव में तीन-तीन तालाब खुद जाने से किसानों की सिंचाई की समस्या दूर हो गई है. (नीचे भी पढ़ें)
विभाग का नहीं मिला अपेक्षित सहयोग (नीचे भी पढ़ें)
सरकार किसानों को प्रोत्साहित करने का लाख दावा कर ले. मतस्य पालन को बढ़ावा देने का लाख ढिंढोरा पीट ले, लेकिन जमीनी हकीकत सुमित से जब हमने पूछा तो उसने बताया कि भैया ने प्रयास किया था विभाग से सहयोग लेने के लिए लेकिन कागजी प्रक्रिया और इतने बड़े तालाब के लिए जितने का अनुदान विभाग की ओर से मिला वह नाकाफी था. उसने बताया कि महज 65 हजार का अनुदान तालाब खुदाई के लिए मिला. मछली के चारा और उसके भोजन पर सब्सीडी विभाग द्वारा नहीं मिला, न ही अधिकारी एक बार भी तालाब का मुआयना करने ही पहुंचे. उसने बताया कि सरकार को ऐसे प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने के लिए सक्षम अधिकारियों को बहाल करने होंगे, जो मतस्य पालको को समय- समय पर मार्गदर्शन कराने का काम करे. सबसे अहम ये कि जब मछली उत्पादन के लिए तैयार हो जाए तो उसे विभागी स्तर पर बाजार मुहैया करानी चाहिए ताकि किसानों को लागत के अनुसार कीमत मिल सके. खुद से बेचने पर बड़े व्यापारी कम कीमत में मछलियों का सौदा करते हैं. अधिक वक्त बीत जाने पर मछलियों के बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है. कुल मिलाकर सुमित ने पारंपरिक खेती को छोड़ मतस्य पालन कर इलाके में नजीर पेश कर दी है. जो इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. आस- पास के किसान अब सुमित से इस कारोबार से संबंधित जानकारी लेने पहुंच रहे हैं. सुमित भी किसानों को भरपूर सहयोग कर रहा है. अंत में सुमित अपने सफलता के पीछे अपने बड़े भाई को श्रेय देना नहीं भूलता.