कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर रोज नए नए समीकरण बन रहे है. चुनाव के समय नेताओं का पार्टी को छोड़ने की बात नयी नहीं है. बंगाल में राजनीतिक पार्टियों में हलचल जारी है. इस क्रम में पूर्व भाजपा के कद्दावर नेता यशवंत सिंह अचानक तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. पूर्वमंत्री को टीएमसी सांसद सुदीप बंद्दोपाध्याय व मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कोलकाता के पार्टी दफ्तर में सदस्यता दिलाई. भारतीय राजनीति में कुछ भी संभव है. टीएमसी का झंडा बुलंद करते हुए कहा कि बंगाल में एक बार फिर टीएमसी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी. इसके लिए भाजपा को अभी और कड़ी मेहनत करनी होगी. इसके बाद ही बंगाल की सत्ता मिल सकती है.
श्री सिन्हा ने कहा कि प्रजातंत्र की ताकत प्रजातंत्र की संस्थाएं होती है. और आज ये सभी संस्थाएं कमजोर नजर आ रही है, इसमें देश की न्यायपालिका भी शामिल है. हमारे देश के लिए ये सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है. उन्होंने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच भयानक संघर्ष की बात कही और कहा, ‘भाजपा का आज देश में एक ही मकसद है, हर चुनाव को येन-केन-प्रकारेण जीतना. उन्होंने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल की चर्चा करते हुए कहा कि अटल जी के समय भाजपा सर्वसम्मति पर विश्वास करती थी लेकिन आज की सरकार कुचलने और जीत हासिल करने में विश्वास करती है.
जिसके कारण उनके सहयोगी उनका साथ छोड दिए है. जैसे पंजाब में अकाली दल, महाराष्ट्र में शिव सेना और ओड़िशा में बीजेडी. आज के दौर मे भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन सहयोगी कोई नही. श्री सिन्हा 1994 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर जनता पार्टी में शामिल हुए. 1994 में ही राज्यसभा चुने गए. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री बने. इन्होंने झारखंड के हजारीबाग संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया. 2004 में हजारीबाग सीट से लोकसभा चुनाव हार गए थे. इसके बाद 2005 में एक बार फिर हजारीबाग से ही सांसद चुने गए. इसके बाद 2009 में भाजपा के उपाध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया. इसके कुछ समय बाद वे पूरी तरह से राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी. इसके बाद वे सामाजिक संगठन से जुड़े रहे.