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West-Singhbhum : चाईबासा में याद किये गये ओत गुरु कोल लाको बोदरा, हो भाषा 3500 ईसा पूर्व की : देवेंद्र नाथ चांपिया

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Chaibasa : हो भाषा वरंग क्षिति लिपि के जनक सह प्रवर्तक ओत् गुरु कोल लाको बोदरा की जयन्ती सामाजिक दूरलूस्त के साथ आदिवासी हो समाज महासभा, आदिवासी हो समाज युवा महासभा, आदिवासी हो समाज सेवानिवृत संगठन के तत्वाधान में महासभा भवन हरिगुटू, चाईबासा में मनायी गयी। कार्याक्रम को सधारण तरीके से लाको बोदरा की जीवनी की कहानी, कविता, लोकगीत, आधुनिक गीत एवं हो भाषा के इतिहास पर विभिन्न कार्याक्रम प्रस्तुत किया गया। प्रात: लगभग आठ बजे तस्वीर पर पुष्प अर्पित किया गया और सुड़िता जलाकर उन्हें नमन किया गया है।

आदिवासी हो समाज महासभा के अध्यक्ष सह बिहार विधानसभा पूर्व डिप्टी स्पीकर देवेन्द्र नाथ चाम्पिया ने लोगों को जानकारी देते हुए कहा कि हो भाषा लगभग 3500 ईसा पूर्व की भाषा है। संस्कृत और हिन्दी के पूर्व से प्रयोग की जानेवाली भाषा है। हो भाषा का लिपि वारंगक्षिति की मान्यता हेतु अविभाजित बिहार के समय में लालू-राबड़ी की सरकार में कई बार प्रस्ताव रखा गया, परंतु झारखण्ड अलग राज्य के गठन के चलते यह लंबित रहा। इसके बाद ट्राईबल एडवाइजरी काउंसिल में भी प्रस्ताव रखा गया।

महासभा के महासचिव घनश्याम गागराई ने कहा कि लाको बोदरा जैसा समाज में हम सबको और भी सामाजिक योगदान देना होगा,प्रकृति में सबकुछ हमें विरासत मिली है। हमारी जिम्मेदारी है कि हो भाषा वारंग क्षिति लिपि हम सभी सीखें और समाज में प्रचार-प्रसार करें। कार्यक्रम में युवा महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ बबलू सुन्डी, महासचिव इपिल सामड, जिलाध्यक्ष गब्बर सिंह हेम्ब्रम, उपाध्यक्ष गोबिन्द बिरूवा, सेवानिवृत संगठन से शिवशंकर कालुन्डिया, दासो हेम्ब्रम, केरसे देवगम, हरिश्चंद्र सामड, अंजू सामड, राम लक्ष्मण सामड, जगन्नाथ हेस्सा, शंकर सिधु, सुशीला पिंगुवा, तुलसी बारी, ओएबन सेनगो हेम्ब्रम समेत अन्य लोग उपस्थित थे।

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