रामगोपाल जेना/चक्रधरपुर: झारखंड, ओडिशा और बंगाल अंतर्गत छोटानागपुर पठार में रहने वाले लगभग 4 करोड़ जनसंख्या वाले गुष्टीधारी कुड़मी जनजाति समुदाय के लोग 6 सितंबर 1950 से पहले अबोरजीनल ट्राईब, प्रीमिटीव ट्राईब लिस्ट में अन्य कुल 12 जनजाति समुदाय के साथ सूचीबद्ध थी. 72 सालों से लंबित मांग को लेकर मंगलवार को पूरे झारखंड के सभी कुड़मी सामाजिक संगठनों द्वारा खरसावां जिला अंतर्गत नीमडीह रेल्वे स्टेशन में अनिश्चितकालीन रेल चक्का जाम किया गया. कुडमी समाज के लोगों का कहना था कि जब तक समाज को लिखित आश्वासन नहीं मिलता तब तक समाज के लोग रेल लाइन को बंद करके रखेंगे. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में और ओडिशा के मयूरभंज में रेल चक्का जाम किया गया. मंगलवार को हुआ रेल चक्काजाम कुड़मी समाज का अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक आंदोलन था जिसे झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में एक साथ किया गया. (नीचे भी पढ़े)
आंदोलन में समाज को एकजुट करने में सोनुआ कुड़मी समाज की अहम भूमिका : डॉक्टर महतो
सोनुआ प्रखंड के सोनुआ वन विश्रामालय में 16 सितंबर कोल्हान प्रमंडल स्तरीय कुड़मी समाज के प्रतिनिधि मंडल की बैठक पश्चिम सिंहभूम जिला अध्यक्ष डॉक्टर महतो की अध्यक्षता में संपन्न हुई . इस ऐतिहासिक बैठक में युवा क्रांतिकारी और समाजसेवी अमित महतो की पहल और सोनुआ समाज के बुजुर्गों के आशीर्वाद से ही झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के नेतृत्वकर्ताओं से फोन द्वारा बात कर रणनीति बनाई गई कि अगर समाज एक है तो आंदोलन के दौरान एक ही दिन में रेल चक्का जाम किया जाय अन्यथा प्रस्तावित और पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत 20 सितंबर 2022 को पश्चिम बंगाल और ओडिशा में एवं 25 सितंबर को झारखंड में रेल चक्का जाम निर्धारित था. अमित महतो ने समाज को एकजुट कर इस आंदोलन में समाज को एक शक्ति प्रदान किया हैं. समाज के लोग इस पहल की वजह से एक हुए जिससे समाज में काफ़ी खुशी देखी गई. (नीचे भी पढ़े)
कुड़मी महतो समाज की व्यथा :- अमित महतो
झारखंड, ओडिशा और बंगाल अंतर्गत छोटानागपुर पठार में रहने वाले लगभग 4 करोड़ जनसंख्या वाले गुष्टीधारी कुड़मी जनजाति समुदाय के लोग 6 सितंबर 1950 से पहले अबोरजीनल ट्राईब, प्रीमिटीव ट्राईब लिस्ट में अन्य कुल 12 जनजाति समुदाय के साथ सूचीबद्ध थी. जब 1950 में आजाद भारत का संविधान बना तभी 6 सितंबर 1950 में अबोरजीनल ट्राईब, प्रीमिटीव ट्राईब को बदल कर शिड्यूल ट्राईब/ अनुसूचित जनजाति कर दिया था. तत्कालीन नेहरू सरकार के आदेश के अनुसार, इस लिस्ट में कुड़मी ( महतो) समाज के साथ उन सभी बारह अन्य जनजातियों को सूचीबद्ध करना था, लेकिन कुड़मी ( महतो) समाज को बिना किसी कारण बताएं इस सूची में शामिल नहीं किया गया. भारत सरकार द्वारा प्रेषित पत्रांक संख्या 26/12/50-आरजी, दिनांक 15/02/1951 तत्कालीन सांसद हृदय नाथ कुजूरू द्वारा संसद में उठाए गए सवाल की कुड़मी ( महतो) समाज को एसटी लिस्ट में क्यों शामिल नहीं किया गया के जवाब पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने इसे सरकारी भूल कही जिसे उन्होंने सुधारने की बात कहीं थी. लेकिन आज 72 साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई सकारात्मक सरकारी पहल नहीं किया गया हैं. (नीचे भी पढ़े)
2014 में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की अगुवाई में कुड़मी समाज को धोखा दिया गया और एक गंदा मज़ाक करते हुए झारखंड के सभी विधायकों द्वारा होम मिनिस्ट्री के आरजीआई विभाग को एक सरकारी अनुशंसा करते हुए कुड़मी समाज को एसटी लिस्ट में शामिल करने की बात लिखित में दिया गया. जो कि बाद मे इसे सरकारी प्रोसेस का हवाला देते हुए साज़िश के तहत ट्राई झारखंड से रिपोर्ट मांगी गई और ट्राई झारखंड ने बीसी-2 में लिस्टेड कुर्मी महतो जो कि गुष्टीधारी नहीं हैं और झारखंड के खतियान धारी भी नहीं हैं उनका रिपोर्ट होम मिनिस्ट्री के आरजीआई विभाग को गलत तरीके से भेजा गया. अर्जुन मुंडा के इस घटिया हरकत से गुष्टीधारी कुड़मी जनजाति समुदाय ने काफी ठगा हुए महसुस किया. परिणिती के रुप में 2019 चुनाव में समाज ने बीजेपी को छोड़ अपनी झामुमो पार्टी को वोट किया जिसकी वज़ह से झारखंड में झामुमो की सरकार आई लेकिन अब हेमंत सोरेन की सरकार को तीन साल बीत जाने के बाबजूद भी अभी तक इस दिशा में कदम नहीं उठाया गया है जिससे समाज को 72 सालों का पुराना अधिकार नहीं मिल पाया हैं. (नीचे भी पढ़े)
आंदोलन के नेतृत्वकर्ता: आंदोलन में झारखंड का नेतृत्व शीतल ओहदार, अमित महतो, डॉक्टर महतो, संजीव महतो, जयराम महतो, दीपक महतो, सपन महतो, अरुण महतो, पदमलोचन महतो आदि झारखंड कुड़मी समाज के लोग कर रहें थे. बंगाल का नेतृत्व अजित महतो, शशांक शेखर महतो, डॉ सुजीत महतो और बंगाल कुड़मी समाज के लोग कर रहें थे. ओडिशा राज्य का प्रतिनिधित्व संसोधर महानता, दलगोविंद महानता, मनोज महानता और ओडिशा कुड़मी समाज की पूरी टीम कर रही थी.