हां, हां चुनाव भी एक कुरुक्षेत्र ही तो है. उस कुरुक्षेत्र के प्रमुख पात्र मसलन, भगवान कृष्ण, भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, धृतराष्ट्र, धर्मराज, युधिष्ठिर, बलवान भीम, धनुर्धर अर्जुन, दुर्योधन, कर्ण, मामा शकुनी, संजय, बर्बरीक आदि इस कुरुक्षेत्र में भी हैं. उस कुरुक्षेत्र में भी छल कपट प्रभावी था और इस कुरुक्षेत्र में भी रहेगा. चक्रव्यूह की रचना भी होगी. उस कुरुक्षेत्र में कई तरह के वाण चले थे. कुरुक्षेत्र में भी कड़वे शब्दों और गुलाबी तथा हरे रंग के कागज के वाण चलेंगे. उस कुरुक्षेत्र में सूर्यास्त के बाद ( जयद्रथ वध के लिए वक्त से पहले सूर्यास्त का आभास कराया गया था) युद्ध विराम हो जाता था. परंतु इस कुरुक्षेत्र में सूर्यास्त के बाद ही रात के काले अंधेरे में काले खेल होते हैं. मतदान में अभी 15 दिन शेष हैं. मगर चुनाव कुरुक्षेत्र में पात्र नजर आने लगे हैं. टिकट नहीं मिला तो भाजपा के चाणक्य अंकल कर्ण बन गए. अपनी धार ही बदल दी. चुनावी रघुवर से ही बैर ले लिया. घाटशिला के 26 दाढ़ी वाले दादा ने अपने पंजे में केला थाम लिया. लखन ने ही अपने लक्ष्मण को मात दे दी और राम से लड़ने के लिए ताल ठोक रहे हैं. सत्ता के लिए ही बहरागोड़ा के डॉक्टर साहब के बुतरू ने तीर धनुष छोड़कर कमल फूल थाम लिया. अपनी जीत के लिए इस कुरुक्षेत्र में दाढ़ी चाचा और टिकट नहीं मिलने से नाराज बाबा का आवाहन कर रहे हैं. तो इधर, टिकट नहीं मिला तो मरखहवा नेता ने कमल फूल का त्याग कर तीर धनुष थाम लिया. इस कुरुक्षेत्र में साफ तौर पर दिखाई पड़ रहा है कि एक पिता अपने पुत्र को विजयी बनाने के लिए लोगों से अनुनय विनय कर रहा है. एक मां अपने पुत्र के और एक पत्नी अपने पति के सिर जीत का सेहरा बांधने के लिए गुहार लगा रही है और हां अभिमन्यु को घेरने के लिए अपने ही लोग चक्रव्यूह की रचना कर रहे हैं. अब आगे देखें होता है क्या-क्या?