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hul-revolution-आदिवासी संघर्ष की ये कहानी, अंग्रेजों हुकूमत के खिलाफ पहली लड़ाई, जानें हूल क्रांति का इतिहास

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जमशेदपुर : संताल में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह के दिन को याद करने के लिए हूल दिवस मनाते हैं. इस वर्ष कोरोना को देखते हुए हूल दिवस पर केवल माल्यार्पण का कार्यक्रम किया जाएगा. इसे अंग्रेजों के खिलाफ किये गये पहले विद्रोह की लड़ाई माना जाता है. 30 जून 1855 को सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में मौजूदा साहेबगंज जिले के भोगनाडीह गांव से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का आगाज हुआ था. (नीचे भी पढ़ें)

आंदोलन का कारण : मौजूदा संथाल परगना का इलाका बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन पहाड़ियों एवं जंगलों से घिरा क्षेत्र था. इस इलाके में रहने वाले सभी निवासी खेती-बाड़ी करके जीवन-यापन करते थे. वहीं जमीन से जुड़ी किसी भी प्रकार का राजस्व किसी को नहीं देते थे. वहीं जबरदस्ती ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व बढ़ाने के मकसद से उन जमींदार की फौज तैयार कर जुर्माना वसूलने लगी. जमीन की लगान देने के लिए उनलोगों को साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता था. तभी चार भाइयों में सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. आंदोलन शुरू होते ही चारों भाइयों को गिरफतार करने के पुलिस दरोगा को तैयार किया गया, परंतु जिस पुलिस दरोगा को वहां भेजा गया था, संथालियों ने उसकी गर्दन काट कर हत्या कर दी थी. इस दौरान सरकारी अधिकारियों में भी इस आंदोलन को लेकर भय प्राप्त हो गया था. (नीचे भी पढ़ें)

इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज़ों द्वारा इस आंदोलन को दबाने के लिए इस क्षेत्र में सेना भेज दी गई और जमकर आदिवासियों की गिरफ़्तारियां की गई और विद्रोहियों पर गोलियां बरसाई गई. आंदोलनकारियों को नियंत्रित करने के लिए मार्शल लॉ भी लगाएं गये. आंदोलनकारियों की गिरफ़्तारी के लिए अंग्रेज़ सरकार द्वारा पुरस्कारों की भी घोषणा की गई. बहराइच में अंग्रेज़ों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए. वहीं उनके साथियों को पैसे का लालच देकर सिद्धू और कान्हू को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भोगनाडीह ग्राम में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फ़ांसी दे दी गई. इस प्रकार सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव, ये चारों भाई सदा के लिए भारतीय इतिहास में अपना अमिट स्थान बना गए. इस वर्ष कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस वर्ष हूल दिवस पर किसी प्रकार के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन और भीड़ जुटाने के लिए प्रतिबंध लगाया गया है.

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