रांची : भाजपा के समक्ष मुश्किलें बढ़ चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के झारखंड विकास मोरचा को भंग कर भाजपा में विलय को भले ही चुनाव आयोग ने मंजूरी दे दी हो, लेकिन हकीकत यह है कि अब तक विधानसभा अध्यक्ष ने बाबूलाल मरांडी को विपक्ष का नेता नहीं बनाया है. बाबूलाल मरांडी को विपक्ष का नेता बनाने के लिए भाजपा ने भी अपनी एड़ी-चोटी एक कर दी है, लेकिन उनको मंजूरी नहीं दी गयी है. अब इस मामले की सुनवाई विधानसभा अध्यक्ष का न्यायाधिकरण करेगा. इसको लेकर मुश्किलें बढ़ चुकी है क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष का न्यायाधिकरण बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने के मामले को दल बदल कानून के दायरे में लेकर सुनवाई करने वाला है. इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ चुकी है. भाजपा के पास अब सीमित विकल्प है. भाजपा या तो बाबूलाल मरांडी की जगह किसी और को अपना विपक्ष का नेता बनाये या फिर बाबूलाल मरांडी को अपनी सीट छोड़कर दुमका से चुनाव लड़ाये, जहां मध्यावदि चुनाव होना है. यह सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की है, जहां की सीट को हेमंत सोरेन ने छोड़ दी है और वहां चुनाव होना है. बाबूलाल मरांडी को विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में सुनवाई का इंतजार करना भी एक विकल्प है, लेकिन जैसे झाविमो के छह विधायक के मामले को लेकर भाजपा की सरकार ने इसको लटकाकर रखा था, उसी तरह वर्तमान झामुमो के कोटे से बने विधानसभा अध्यक्ष इस मामले को लटकाये रखेंगे और विपक्ष का नेता की मान्यता ही नहीं देंगे. आपको बता दें कि झाविमो के छह विधायक के भाजपा में शामिल होने के मामले में बाबूलाल मरांडी ने करीब चार साल तक विधानसभा में सुनवाई में अपने तर्क दिये थे, लेकिन बाद में चार साल के बाद फैसला आया तो उनकी दलील को खारीज कर दी गयी थी, जिसके बाद चुनाव हो गया. राज्यसभा के चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के लिए ही अपना वोट दिया था, लेकिन खुद विधानसभा अध्यक्ष ने अब तक उनको भाजपा का सदस्य नहीं माना है और दल बदल कानून को लेकर सुनवाई शुरू करने की तैयारी कर ली है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी को लेकर भाजपा मुश्किलों में घिरती दिख रही है. पार्टी को या तो अपना फैसला बदलना होगा या फिर इस मसले पर संघर्ष करना होगा, लेकिन तब तक क्या विपक्ष के नेता की सीट खाली रहेगी, यह भी देखने वाली बात होगी. वैसे खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश यह कह चुके है कि वे लोग इस मसले को लेकर चुनाव में जनता के बीच ले जाने का काम करेंगे. वैसे इस रणनीति को तय करने के लिए भाजपा की कोर कमेटी की मीटिंग फिर से हो सकती है, जिसमें इसको लेकर आगे की रणनीति तय होगी. वैसे झारखंड विधानसभा का सत्र तीन दिनों का ही होने जा रहा है, जो 18 सितंबर से शुरू होगी. ऐसे में यह मुद्दा भी झारखंड विधानसभा में एक बार फिर से हंगामेदार हो सकता है.
क्या है भाजपा के पास विकल्प :
विकल्प 1-बाबूलाल मरांडी खुद भाजपा को इस मुश्किलों से निकालकर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को कहकर दूसरे किसी विधायक को पार्टी विधायक दल का नेता चुनने की अपील करें. हालांकि, यह करना मुश्किल लगता है क्योंकि इससे भाजपा की साख गिर सकती है. भाजपा के लिए यह मुश्किलें पैदा कर सकती है और बाबूलाल मरांडी को विपक्ष का नेता बनाने का जो उद्देश्य था, उसकी पूर्ति होता नजर नहीं आयेगा.
विकल्प 2-भाजपा में झारखंड विकास मोरचा के विलय को विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में साबित करें. हालांकि, इसके लिए बाबूलाल मरांडी और भाजपा को लंबा इंतजार करना होगा. यह मामला तीन साल से ज्यादा भी चल सकता है. वैसे न्यायाधिकरण में बाबूलाल मरांडी यह कह सकते है कि भाजपा में विलय करने के पहले उनके दो विधायक को उन्होंने पार्टी से निष्कासित कर दिया था. इस कारण उनका दलील वैद्य है. लेकिन यह दलील विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष मान्य ही हो जाये, यह संभव कम है.
विकल्प 3-भाजपा दुमका सीट से बाबूलाल मरांडी को चुनाव लड़ाये और फिर भाजपा हेमंत सोरेन को संथाल विरोधी करकार देकर भाजपा मनोवैज्ञानिक तरीके से भी लाभ ले सकती है. हालांकि, भाजपा के लिए यह सीट जीत पाना मुश्किल होगा और एक बड़ा रिस्क होगा.