रांची/जमशेदपुर : कर्नाटक के चुनाव का रिजल्ट आ चुका है. इस रिजल्ट में कांग्रेस को जीत मिली है जबकि भाजपा को शिकस्त मिली है. उससे पहले भाजपा को हिमाचल प्रदेश में भी हार का मुंह देखने पड़ा था. केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के चेहरे के बदौलत भाजपा अपनी वैतरणी पार करना चाहती है, लेकिन हकीकत यह दिखी कि सिर्फ दो लोगों की बदौलत भाजपा नहीं जीत सकती है. राज्यों में लगातार भाजपा को मिल रही शिकस्त यह बताती है कि सरकारों को चलाने के लिए राज्यों को भी मजबूत करना होगा. ऐसी स्थिति को लेकर अन्य राज्यों में भी भाजपा को ध्यान देने की जरूरत है. खास तौर पर झारखंड में भाजपा बिखरी हुई है. भाजपा खुद बिखराव की स्थिति में है. हालात यह है कि यहां पार्टी पूरी तरह संभल नहीं पायी है. करीब एक साल के बाद लोकसभा चुनाव होना है जबकि 2024 के दिसंबर तक नयी सरकार झारखंड में भी बनना है. (नीचे पढ़ें पूरी खबर)
लेकिन अब तक भाजपा बीच मंझधार में ही है. प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. लेकिन अब तक यहां प्रदेश अध्यक्ष नया होगा या दीपक प्रकाश ही बने रहेंगे. इसको लेकर फैसला नहीं हो रहा है. झारखंड भाजपा में अब भी पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की ही पकड़ है. ऐसे में भाजपा रघुवर दास से अलग नहीं हो पा रही है, जो अभी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है. वही, भाजपा में वापसी करने के बाद विधायक दल का नेता तो बाबूलाल मरांडी को बनाया गया, लेकिन वे ज्यादा खुलकर पार्टी में काम नहीं कर पा रहे है. प्रदेश अध्यक्ष के साथ उनकी बेहतर ट्यूनिंग तो है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष रघुबर दास के साथ भी अपनी तारतम्यता बनाने के चक्कर में कहीं न कहीं समन्वय नहीं बना पाते है. दूसरी ओर, केंद्रीय मंत्री और आदिवासी का बड़ा चेहरा अर्जुन मुंडा का झारखंड में अब तक बेहतर तरीके से गतिविधि बढ़ाने को नहीं कहा गया है. इस कारण वे कभी कभी दिखते तो है, लेकिन ज्यादा सक्रियता बढ़ा नही पाते है. (नीचे भी पढ़ें)
सरयू राय और कई बड़े नेताओं की दूरियां भी पहुंचा रहा है नुकसान
भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री रहते हुए रघुबर दास को हरा देने वाले विधायक सरयू राय पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल बन सकते है. उनका कई विधानसभा में पकड़ है. उनके साथ दूरियां भी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि उनकी भाजमो भाजपा की ही बी पार्टी के रुप में जानी जाती है. ऐसे में उनसे दूरियां भी नुकसान पहुंचा सकता है. झारखंड में ऐसे कई बड़े नेता है, जो अंदरखाने काफी बिखराव की स्थिति में है. वहीं, कार्यकर्ता भी मायूस है. कार्यकर्ताओं में निराशा देखी जा रही है. ऐसे में चाहिए कि झारखंड भाजपा को नये सिरे से संभालने की नहीं तो भाजपा तार तार होगी और एक बार फिर से 2024 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में भाजपा को कर्नाटक चुनाव दोहराता नजर आ सकता है.