जमशेदपुर : झारखंड आंदोलन से जुड़े रहे पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो ने विधायक सरयू राय के खिलाफ हमला बोला है. सरयू राय पर श्री महतो ने तल्ख टिप्पणी कर दी है. उन्होंने सरयू राय के बयान की आलोचना की है और उनके उस कथन का विरोध किया है, जिसमें सरयू राय ने कहा था कि झारखंड के अंदर भी एक बिहार बसता है, उसे हटाया नहीं जा सकता है. सरयू राय के इस बयान का शैलेंद्र महतो ने विरोध करते हुए कहा है कि विधायक सरयू राय को झारखंड का इतिहास, भुगोल तक मालूम नहीं है क्योंकि वे खुद झारखड के एक अतिक्रमणकारी हैं. जो अतिक्रमणकारी होता है, उसे उस राज्य का या उस देश के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, सभ्यता से कोई मतलब भी नहीं होता है. शैलेंद्र महतो ने आगे लिखित अपने बयान में कहा है कि 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था, उसी समय भाजपा ने सरयू राय को बिहार से लाकर झारखंड में प्लांट कर दिया और वे जमशेदपुर के विधायक बन गये. 2019 के विधानसभा के चुनाव में वे जमशेदपुर पूर्वी के उम्मीद भी थे, जिसमें उन्होंने खुलकर उन्होंने बिहारीवाद को बढ़ावा दिया. जमशेदपुर में जमीन का अतिक्रमणकारी लोग अब मालिकाना हक मांग रहा है और उसका राजनीतिकरण किया गया है. शैलेंद्र महतो ने कहा कि सरयू राय को बताना चाहिए कि झारखंड का वह कौन सा हिस्सा है, जहां बिहार बसता है. उन्होंने कहा कि झारखंड की भाषा, स्थानीय नीति, नियोजन नीति लागू करने की मांग झारखंड के लोगों का हक और अधिकार की लड़ाई है. इस पर टांग अड़ाने वाले व्यक्ति झारखंड के दुश्मन है, दिकू हैं. उन्होंने कहा कि 1981 में तत्कालीन बिहार राज्य के मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र ने झारखंड की पांच जनजातीय भाषा संथाली, हो, मुंडारी, उरांव, खड़िया और चार क्षेत्रीय भाषा कुड़माली, पंचपरगनिया, खोरठा और नागपुरी को मान्यता दे दी थी. इसके अलावा कोई भी भाषा जारखंड की नहीं है. भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका भाषा बिहार की मूलभाषा है. इन भाषाओं को झारखंड में थोपना झारखंडी भाषाओं के साथ अन्याय है, कोई भी झारखंडी इसको किसी भी हाल में बरदाश्त नहीं करेगा.
सरयू राय बोले-शैलेंद्र महतो का हर बयान मेरे को लाभ ही पहुंचाता है
विधायक सरयू राय ने पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो के बयान पर परिपक्व नेता के तौर पर अपना जवाब दिया है. सरयू राय ने अपना बयान जारी कर कहा है कि शैलेंद्र महतो उनके शुभचिंतक हैं. मौक़ा-बेमौका वे जो भी बोलते हैं उसमें उनकी (सरयू राय की) भलाई की भावना निहित रहती है. उन्होंने जो प्रेस वक्तव्य के माध्यम से, जो अर्द्ध सत्य कहा है वह उन्होंने उनके (सरयू राय) फ़ायदे के लिये कहा है. लगता है उनको (सरयू राय) फ़ायदा पहुंचाने का अवसर वे ढूंढते रहते हैं. श्री राय ने कहा है कि दो वर्ष पहले जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में उन्होंने उनका जमकर विरोध किया था. इसका उनको बड़ा फ़ायदा हुआ था. वे कठिन चुनाव जीत गया था. उनके चुनाव जीत जाने के बाद लगता है उनके मन में कोई ग्रंथि बैठ गई है. इस ग्रंथि से ग्रस्त होकर वे उनके बारे में जहां-तहां बोलते रहते हैं. वे जब कभी उनके बारे में बोलते हैं उसका लाभ मुझे मिल जाता है. इसलिये उनका विरोध में उनके द्वारा बोलने का वे कभी बुरा नहीं मानता. सरयू राय ने कहा कि आज भी उन्होंने जो कुछ कहा है, उसके लिये उन्हें धन्यवाद देते हैं और उम्मीद करते हैं कि उनके मन में व्याप्त आक्रोश आज नहीं तो कल अवश्य समाप्त हो जायेगा. वस्तुस्थिति उनकी समझ में आ जायेगी, मन में बैठी ग्रंथि दूर हो जायेगी. सरयू राय ने कहा है कि एक अंतर्मुखी स्वघोषित बुद्धिजीवी की तरह ऐसे विषयों पर उनके संबंध में वे जो भी बोलते लिखते हैं, उसका स्वाभाविक लाभ उनको यह मिलता है कि वे ऐसे विषयों पर गहराई से सोचता, विचारता हैं, आत्म चिंतन और आत्म मंथन करते रहते हैं. उन्होने कहा कि शैलेंद्र महतो ने उनको (सरयू राय को) दिकू कहा है. इसका उनको मलाल नहीं है. उनको जानने वाले उनका यह प्रमाण पत्र ख़ारिज कर देते हैं. सरयू राय ने कहा कि शैलेन्द्र महतो यह नहीं जानते कि झारखंड अलग राज्य बनने और राज्य के आगे बढ़ने के बार में उनके विचार पहले क्या रहे हैं और आज क्या हैं तो वे उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के सिवाय और क्या कर सकते हैं. श्री राय ने कहा कि वे शैलेंद्र महतो को बता देना चाहते है कि इस बारे में उनके विचार पूर्ववत हैं. उनके (शैलेंद्र महतो के) विचार तो सुबह शाम बदलते रहते हैं. शैलेंद्र महतो को बता दें कि कई उपयुक्त मौक़ों पर वे ज़ाहिर कर चुके है कि स्थानीयता के लिये 1932 के खतियान से उनका कोई विरोध नहीं है. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के समय से इस बारे में उनके विचार जगज़ाहिर हैं. वे इतना ही कहते है कि 1932 के खतियान के साथ-साथ देश के संविधान द्वारा तय की गई सीमा और मर्यादा को भी ध्यान में रखा जायेगा, तभी इसे लागू किया जा सकता है. श्री राय ने शैलेंद्र महतो पर कटाक्ष किया और कहा कि शैलेंद्र महतो से उनकी एक ही अपेक्षा रहती है कि वे चित्त स्थिर रखें, समय के साथ अपने राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विचार नहीं बदलें. वे बुद्धिजीवी हैं तो संवाद की मानसिकता रखें, विवाद की नहीं.